विभाजन का दर्द “वतन की मिट्टी की खुशबू पाकिस्तान जा बसे मेवातियों की दूसरी पीढ़ी को भी परेशान करती है”


देश के विभाजन का वास्तविक दर्द मुझे दो जगहों पर देखने को मिला.. एक बार पंजाब के मलेरकोटला में एक बुज़ुर्ग से बात करते हुए विभाजन का हकीकी दर्द उनकी आंखों से छलका था, ढेरों दर्दनाक किस्से उन्होंने सुनाए थे..

फिर यहां मेवात में भी कई लोगों से बात करते हुए उनका दर्द महसूस किया जा सकता है .आज मॉर्निंग वॉक करते हुए मैं निकट के गांव ‘हैबतका’ के ज़ाकिर साहब के घर चला गया था . अधेड़ उम्र के ज़ाकिर साहब अपने गांव में अपनी पीढ़ी के एकलौते matriculate हैं.  इतिहास और विशेषकर भारत-पाक के विभाजन के इतिहास से बड़ी दिलचस्पी है उन्हें..

लस्सी और दूध से फारिग हो कर मैंने लॉकडाउन की मसरूफ़ियत मालूम की तो कहने लगे कि इस लोकडाउन में उन्होंने यूट्यूब चलाना सीख लिया है, और मेवात से जो लोग विभाजन के समय पाकिस्तान गए थे उनकी बातें और विडियोज़ ढूंढ़ ढूंढ कर खूब देखी-सुनी,बस यही काम था…फिर कई घटनाओं का संवेदनापूर्वक ज़िक्र किया.

मैंने लगे हाथों पाकिस्तान में मेवाती कल्चरल डे के अवसर पर प्रस्तुत किया गया गीत यूट्यूब से ढूंढ कर लगा दिया, जिसमें मेवात के इन इलाकों की मर्मस्पर्शी यादें हैं. मेवाती भाषा में लिखे गए इस गीत को आवाज़ दी है पाकिस्तानी सिंगर रियाज़ नूर ने..

ज़ाकिर भाई जिस इमोशन और संवेदनशीलता के साथ ये लम्बा गीत सुन रहे थे, मै ये सब देख कर स्वयं जज़्बाती हो रहा था…कितनी ही बार उन्हें अपनी पगड़ी के कपड़े से आंखें पोछनी पड़ीं, मूढ़े पर पहलू बदलना पड़ा..

गीत के समापन पर एक लम्बी गहरी सांस के साथ कहने लगे “अरे शिबली  साहब ! वतन की मिट्टी की खुशबू, पाकिस्तान जा बसे मेवातियों की दूसरी नस्ल को भी परेशान रखी हुई है..अपनी मिट्टी तो अपनी मिट्टी होती है…”

शिबली अर्सलान 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *