प्रथम चरण के मतदान के बाद इंडिया गठबंधन मजबूत होने के आसार

अशफाक कायमखानी
भारत मे 1977 व 1989 मे कांग्रेस के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर बने मजबूत गठबंधन ने जीतकर तत्तकालीन समय मे सत्ता पर काबिज हुवा था। उस समय कांग्रेस के खिलाफ बने गठबंधनों मे भाजपा या उसकी मूल पार्टी जनसंघ गठबंधन मे शामिल थी। उस समय के बने गठबंधनों के मुकाबले 2024 के आम चुनाव के लिये भाजपा के खिलाफ मजबूत इण्डिया गठबंधन बना है। जिस गठबंधन मे कांग्रेस शामिल है। 1977 ,1989 व 2024 के बने गठबंधन मे फर्क इतना ही है कि पहले गठबंधन कांग्रेस के खिलाफ और अब भाजपा के खिलाफ गठबंधनों का बनना है।

कांग्रेस के खिलाफ 1977 मे बने गठबंधन ने लोकसभा चुनाव मे नागौर की एक मात्र सीट को छोड़कर बाकी सभी लोकसभा सीटो पर गठबंधन ने कब्जा जमाया था। तब नागौर से एक मात्र नाथूराम मिर्धा कांग्रेस की टिकट पर जीत पाये थे। इसी तरह 1989 मे कांग्रेस के खिलाफ बने गठबंधन ने सभी पच्चीस सीटो पर कब्जा जमाया था। जिनमे 13 भाजपा व 11 जनता दल एवं 01 सीट माकपा ने जीती थी। माकपा के कामरेड श्योपत सिंह बीकानेर सीट से तब चुनाव जीते थे।

2024 का चुनाव परिणाम आयेगा तब बता चलेगा लेकिन इण्डिया गठबंधन को प्रदेश मे दस से तेरह सीट मिलने की सम्भावना जताई जा रही है। जबकि 2014 व 2019 मे मोदी लहर के चलते सभी पच्चीस सीटो पर भाजपा ने कब्जा जमाया। 1989 मे गठबंधन मे माकपा के सहयोग से जनता दल उम्मीदवार चोधरी देवीलाल सीकर से चुनाव जीतकर वीपी सिंह सरकार मे उपप्रधानमंत्री बने थे।


मोदी सरकार द्वारा किसान विरोधी तीन काले कानून लाने के खिलाफ चले किसान आंदोलन के तहत करीब तेरह महीने दिल्ली सीमा पर इण्डिया गठबंधन के सीकर के उम्मीदवार कामरेड अमरा राम के वहां रहकर आंदोलन चलाने से किसान व मजदूर तबके मे उनकी उजली छवि मे काफी इजाफा हुआ है। इस आंदोलन के अलावा राज्य सरकारों के खिलाफ भी अनेक सफल आंदोलन चलाने से अमराराम के प्रति जनता में समर्थन का फायदा उनको इस चुनाव मे मिल रहा है।

कामरेड अमराराम


सीकर लोकसभा क्षेत्र की धोद विधानसभा से तीन दफा लगातार व एक दफा 2008 मे दांतारामगढ़ विधानसभा से कामरेड अमरा राम अपनी पार्टी के दम पर विधायक रहे है। विधायक बनने के बाद अमरा राम लोकसभा चुनाव भी अपने दम पर लड़ते रहे है। 1998 मे हुये लोकसभा चुनाव मे क्षेत्र मे कुल तेराह लाख मतदाओ मे से करीब सात लाख मतदाओ ने मतदान किया था। जिनमे से करीब दो लाख मत अमरा राम को मिले थे। लोकसभा चुनाव मे अमरा राम को उसी 1998 के लोकसभा चुनाव मे अबतक के सबसे अधिक मत मिले थे।

वर्तमान मे सीकर लोकसभा क्षेत्र मे बाईस लाख साठ हजार मतदाता है। जिनमे से तेराह-चोदाह लाख मत पड़ने की सम्भावना है।क्षेत्र मे छ लाख जाट, दो-ढाई लाख यादव-गुर्जर मतदाता है। चार लाख एससी एसटी व अढाई-तीन लाख मुस्लिम मतदाता है। इसके अलावा मूल ओबीसी व स्वर्ण मतदाता है। कामरेड अमरा राम को खेती किसानी आधारित मतदाताओ के अलावा मजदूर, छोटे व्यापारी, हाथ से काम करने वाला तबके के साथ साथ एससी एसटी व अल्पसंख्यक मतदाताओ का बडा समर्थन मिलता नजर आ रहा है।

2014 व 2019 के चुनाव में लहर के चलते आसानी से जीतने वाले भाजपा उम्मीदवार सुमेधानंद स्वामी के सामने इण्डिया गठबंधन उम्मीदवार अमरा राम ने कड़ी चुनौती खड़ी करके उनके मुकाबले इक्कीस की स्थिति पर आ गये है। अमरा राम का आम मतदाताओं से सीधा सम्बंध व लगाव होने के कारण वो उन्हें करीब मानते है। अमरा राम के मुकाबले सुमेधानंद का व्यवहार थोड़ा रुखा व मुश्किल से उपलब्धता वाला माना जाता है। कांग्रेस नेताओं की एकजुटता व आठ मे से छ विधानसभाओ के कांग्रेस विधायक होने सहित अनेक कारणो से अमरा राम की स्थिति वर्तमान समय मे मजबूत मानी जा रही है।


सीकर के अलावा नागौर लोकसभा सीट पर इण्डिया गठबंधन मे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को सीट मिली है। जहां हनुमान बेनीवाल चुनाव लड़ रहे है। नागौर सीट पर 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मौजूदा दोनो उम्मीदवारों के मध्य ही मुकाबला रहा है। वर्तमान भाजपा उम्मीदवार 2019 मे कांग्रेस की उम्मीदवार थी। तो सामने इण्डिया गठबंधन के तहत लड़ रहे उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल तब भाजपा से समझौता के तहत पाई सीट पर लड़े थे।

किसान आंदोलन के समय हनुमान बेनीवाल एनडीए छोड़कर किसान आंदोलन मे किसान हित मे आवाज बूलंद की थी। उस घटना व लगातार किसान-मजदूर व कमजोर लोगो के लिये संघर्ष करते रहने से आम मतदाता उनको अपने मध्य का नेता मानता है। मतदाताओं का सीधा स्वयं के फोन उठाने व उनके दुख सुख में सरलता से उपलब्ध होने की छवि उनको काफी फायदा पंहुचा रही है। भाजपा उम्मीदवार ज्योति मिर्धा के दल बदलने व बड़े उद्योगपति घराने से ताल्लुक रखने से मतदाताओं को उनकी उपलब्धता मुश्किल से होने से मतदाता उनकी तरफ आकर्षित कम हो रहा है। बेनीवाल के बिना बिचौलियों के स्वयं मतदाताओं के फोन उठाने से भी मतदाताओं के मन में उनके प्रति सहानुभूति देखी जा रही है।


कुल मिलाकर यह है कि इण्डिया गठबंधन में समझोते के तहत सीकर की सीट माकपा व नागौर की सीट रालोपा के मिलने से उनके उम्मीदवार कामरेड अमराराम व हनुमान बेनीवाल भाजपा उम्मीदवारों पर भारी पड़ रहे है। वो अपनी सीट निकालते नजर आ रहे है। जिसमें इनके पक्ष मे कांग्रेस नेताओं की एकजुटता से साथ रहकर वोट दिलाने की हर मुमकिन कोशिश करना एवं दोनो उम्मीदवारों की किसान-मजदूर-मजलूम व परेशान छोटे छोटे व्यापारियों के साथ उनके हित मे खड़े रहने की छवि का लाभ भी काफी मिलता दिख रहा है।

वर्तमान चुनाव मे पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने बेटे दुष्यंत को बांरा-झालावाड़ व पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत को जालोर-सिरोही सीट से जिताने में उलझे हुए है। भाजपा से मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा व कांग्रेस की तरफ से पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने प्रचार का जौरदार मोर्चा सम्भाल रखा है।

राजस्थान की राजनीति के जानकार पत्रकार अवधेश पारीक लिखते हैं कि राजस्थान में पहले चरण की 12 सीटों पर करीब 57.87% वोटिंग हुई जो 2019 के मुकाबले 63.72% वोटिंग से करीब 6% कम है. अब पहले चरण के बाद सबसे ज्यादा चर्चा का केंद्र वोटिंग प्रतिशत का गिरना ही है.

हालांकि वोटिंग प्रतिशत गिरने का सीधा सीधा कोई एक लाइन में जवाब फ्रेम कर पाना थोड़ी जल्दबाजी होगी। लेकिन बीजेपी की सेफ मानी जाने वाली कई सीटों पर कम वोटिंग हुई है, इसके अलावा जयपुर शहर में सांगानेर, मालवीय नगर जैसे इलाकों में वोटर्स बाहर नहीं निकले.

ऐसे में बीजेपी का वोट प्रतिशत गिरना और दूसरा नए वोटर्स का कम बाहर निकलना दोनों में कांग्रेस कई सीटों पर गेम में मजबूती से आ सकती है!

वोटिंग से पहले ही ये तस्वीर साफ हो गई थी कि राजस्थान में चुनाव राष्ट्रीयकृत ना होकर जाति में एकदम अंदर तक चला गया है.

वहीं पार्टी का कोर वोटर भी उत्साह से भाग नहीं ले पाया क्योंकि कई जगह उसका नेता दूसरे पाले से खड़ा था.

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