सचिन पायलट के पद से हटने के बाद यह नेता बन सकते हैं कांग्रेस के नए प्रदेशाध्यक्ष!


आल इण्डिया कांग्रेस कमेटी के शीर्ष नेतृत्व ने राजस्थान में सत्ता व संगठन में कभी खरास व कभी मिठास के माहोल को एक तरफा करके सत्ता को जनहित में पुरी आजादी के साथ लोक कल्याणकारी कदम उठाने का अवसर देने के लिये छ साल से अधिक लम्बे समय से चले आ रहे राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को बदलकर नया अध्यक्ष बनाने का तय कर लिया है।

हालांकि प्रदेश अध्यक्ष को बदलते समय शीर्ष नेतृत्व मध्यप्रदेश मे दूध से जले की तरह अब राजस्थान मे छाछ को भी फूंक फूंक कर हाथी की चाल की तरह धीमे धीमे कदम उठा रहा है।

इसके विपरीत असमंजस के माहोल के बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार को डेढ़ साल पुरे हो चुके है।

लेकिन विधायकों व मंत्रियों के प्रति जनता में 1998 व 2008 की तरह ही कांग्रेस सरकार के  ख़िलाफ़ भारी असंतोष अभी से उबाल मारने लगा है।

विधायकों मे गहलोत के प्रति किसी तरह से विरोध का स्वर ना पनपे इसलिए गहलोत ने  विधायकों और विधानसभा उम्मीदवारों को हमेशा की तरह उनके क्षेत्र का एक तरह का राजा घोषित कर रखा है। वो अपने क्षेत्र मे जो चाहे करे सरकार उनके क्षेत्र के लिये वो ही फैसले लेगी जैसा वो चाहेंगे।

गहलोत की इसी रणनीति के कारण जब जब गहलोत के मुख्यमंत्री काल मे आम विधानसभा चुनाव हुये तब तब कांग्रेस ओंधे मुहं गिरी है। पहले 156 से 56 एवं फिर 98 से 21 सीट पर कांग्रेस लूढकते लूढकते आकर ठहरीं थी।

राजनीतिक समीक्षक व राजस्थान की राजनीति पर नजर रखने वाले मानते है कि स्थानीय स्तर पर विधायकों द्वारा अपनी राजशाही प्रवृति के कारण फैसले करने से उनके प्रति पनप रहे आक्रोश के कारण 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मात्र पांच या छ सीट मुश्किल से जीतने की सम्भावना बनने लगी है।

जिसमे स्वयं मुख्यमंत्री गहलोत भी पहली दफा जोधपुर की सरदारपुरा सीट से चुनाव हारने की सम्भावन बता रहे है।

राहुल गांधी को केरल ले जाकर लोकसभा चुनाव जीताकर लाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले केरल निवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल को राजस्थान से राज्यसभा सदस्य बनाकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने हिसाब से सचिन पायलट के खिलाफ दिल्ली दरबार मे एक मजबूत स्तम्भ खड़ा कर लेने से उनके पक्ष मे अब अधिक तेजी से हवाऐ बहने लगी है।

अभी हाल ही मे सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा कि आसाम व बिहार मे जल्द चुनाव होने के कारण और इनके साथ राजस्थान मे प्रदेशाध्यक्ष को बदला जाकर संगठन को नये सिरे से मजबूत किया जायेगा।

साथ ही वेणुगोपाल ने यह भी कहा कि राजस्थान के नये अध्यक्ष के लिये कुछ मंत्रियों व नेताओं से चर्चा हो चुकी है। अभी अन्य विकल्प पर भी ओर चर्चा होगी।

प्रदेश अध्यक्ष के नये विकल्प के नाम पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हमेशा की तरह तीन चार अलग अलग नाम को अपने समर्थकों के मार्फत आगे बढा रहे है।

वही सचिन पायलट खेमा अध्यक्ष का चेंज होना पुख्ता मानकर अब इस कोशिश मे लग गया है कि हर हाल मे नया अध्यक्ष उनकी पसंद का ही बने।

मुख्यमंत्री खेमा चाहता है कि विकल्प के तौर पर जाट अध्यक्ष के नाम पर पहले कमजोर से कमजोर राजनीतिक तौर पर रीड विहीन नेता डा.चंद्रभान को अजमा चुके है।

अब कोई गैर जाट अध्यक्ष बने जो मुख्यमंत्री द्वारा की जाने वाली राजनीतिक नियुक्तियों व सरकारी फैसले मे किसी भी रुप मे रोड़ा नही बन पाये।

फिर भी अगर किसी जाट को अध्यक्ष बनाने की नोबत आती है तो मुख्यमंत्री खेमा मंत्री लालचंद कटारिया, मंत्री हरीश गोदारा व पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुभाष महरिया के नामो को आगे बढा सकता है।

पायलट खेमा पूर्व मंत्री हेमाराम चोधरी, पूर्व विपक्षी नेता रामेश्वर डूडी व पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा का नाम आगे बढा सकते है। इसके अलावा समय की नजाकत को भांप कर पायलट खेमा गैर जाट के नाम मे मंत्री उदयलाल अंजना, गोपाल सिंह इडवा, रमेश मीणा जैसे कुछ नाम भी आगे कर सकता है।

वही अशोक गहलोत खेमा विकल्प के तौर पर नाम तो कई चर्चा मे चला सकता है लेकिन अंतिम समय मे मोहर पूर्व सांसद रघूवीर मीणा कै नाम पर लगवा सकता है।

कुल मिलाकर यह है कि राजनीतिक हलको मे सरकार व संगठन चलाने के अलावा पार्टी में मोजुद अपने विरोधियों को राजनीतिक तौर पर ठिकाना लगाने मे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कुशल व माहिर माना जाता है। इन सब योग्यताओं के बावजूद सरकार रिपीट करने मे गहलोत की छवि पूरी तरह फिसड्डी बन चुकी है।

साथ ही यह भी है कि मुख्यमंत्री गहलोत ही कांग्रेस में एक मात्र नेता है जिनके पूरे राजस्थान में मौजूद समर्थक हरदम अलर्ट रहते है। उन समर्थकों को साधे रखने के लिये गहलोत उनका विशेष ख्याल रखने मे किसी तरह की कसर नही छोड़ते है।

अपने खिलाफ विधायकों मे किसी तरह के बगावत के सूर नही पनपने देने के लिए गहलोत 1998 मे पहली दफा मुख्यमंत्री बनने के साथ ही एक अलग से परम्परा डालते हुये प्रत्येक विधायक व विधानसभा उम्मीदवार को उनके क्षेत्र का बादशाह बनाकर सरकारी स्तर पर अघोषित रुप से तय कर दिया कि उनके क्षेत्र में उनकी मर्जी मुताबिक ही पत्ता हिलेगा।

अपरोक्ष रुप से विधायको को मिले उक्त अधिकार से वह वो सबकुछ करते है जो उनको सूट करता हो। इससे ज्यादती का पैमाना बढता जाता है। मतदाताओं के मन व दिलो में उस स्थानीय विधायक के प्रति बैठी नाराजगी का उपयोग उसके खिलाफ मतदान करके संतुष्टि पाते है। 2023 के आम विधानसभा चुनाव मे भी कांग्रेस की यही हालात बनने की राजनीतिक समीक्षक सम्भावना जताने लगे है।

अशफ़ाक कायमखानी
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं राजनीतिक विशलेषक है)

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *