रेलवे ने भर्तियां बंद कर दी तो नौजवान बिल्कुल उदास ना हों, पॉजिटिव रहें…व्हाट्सएप्प पर बने रहें !


रेलवे ने पिछली भर्ती के लोगों को ही पूरी तरह ज्वाइन नहीं कराया है। अब नई भर्तियों पर रोक लगा दी गई है। यही नहीं आउट सोर्सिंग के कारण नौकरियाँ ख़त्म की गई, अब उस आउटसोर्सिंग के स्टाफ़ भी कम किए जाएँगे। पहले रेलवे रोज़गार पैदा करती थी, अब बेरोज़गार पैदा कर रही है।

यह मोदी सरकार की लोकप्रियता और साहस ही है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के समय करोड़ों युवाओं को भर्ती के नाम पर दौड़ा दिया और आज तक पास किए हुए सभी छात्रों की ज्वाइनिंग नहीं पूरी हुई। अब बिहार चुनाव आ रहा है। चुनाव के सामने कोई सरकार रेलवे की भर्ती बंद करने का एलान नहीं कर सकती लेकिन युवाओं में अपनी लोकप्रियता का कुछ तो भरोसा होगा कि वह बोल कर उनके बीच आ रही है कि रेलवे में नौकरी नहीं देंगे।

कांग्रेस ने रेलवे के निजीकरण का विरोध कर और भर्तियाँ बंद होने का विरोध कर अपने पाँव में कुल्हाड़ी मारी है। किसी ने उसके इस विरोध को भाव नहीं दिया है। ये सभी नौजवान बिहार चुनाव में बीजेपी को ही वोट देंगे । इस वक्त युवाओं को झटका लगा होगा इसलिए बीजेपी के नेताओं को इनके लिए आवाज़ उठानी चाहिए। कम से कम इन्हें बहलाने फुसलाने के लिए ही सही। काउंसलिंग करें। राष्ट्र की प्रगति के सामने नौकरी कोई चीज़ नहीं है।

 

मेरा मानना है कि रेलवे के करोड़ों परीक्षार्थी सच्चाई देखें। रेलवे भर्ती की हालत में नहीं है। गोयल जी ने इतना विकास कर दिया कि पैसा ही ख़त्म हो गया। रेलवे सैलरी देने की हालत में नहीं होगी।

कर्मचारियों के भत्ते काटे जा रहे हैं। अभी तक पेंशन में कटौती नहीं है पर भविष्य कौन जानता है? वैसे प्रार्थना कीजिए कि पेंशन की राशि को एडजस्ट करने की ज़रूरत न पड़े। पेंशनभोगी ही आगे आकर पेंशन कटवाएँ और रेलवे की मदद करें।

कई लोगों ने कहा कि इस तरह से आरक्षण भी समाप्त हो गया। यह सही है। अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ी जातियाँ और आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को भी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। जब आपने निजीकरण और आउटसोर्सिंग को स्वीकार ही कर लिया तो फिर आपत्ति किस बात की ? वरना आरक्षण के तहत जितनी बड़ी आबादी आती है, किसी सरकार की निजीकरण या भर्ती बंद करने की हिम्मत न होती।

रेलवे की परीक्षा के लिए देश भर के करोड़ों नौजवान कड़ी मेहनत करते हैं। हमने बिहार चुनाव के दौरान देखा था कि आरा शहर में किस तरह ग्रुप बना कर लड़के परीक्षा की तैयारी करते हैं। अद्भुत दृश्य था। यूपी में भी गोरखपुर से लेकर ग़ाज़ीपुर के बेल्ट का नौजवान रेलवे की भर्ती परीक्षाओं में लगा रहता है। राजस्थान से भी पिछली बार देखा था कि किस तरह मीणा समाज हज़ारों अभ्यर्थियों की मदद कर रहा था। अद्भुत दृश्य था।आज करोड़ों लड़के लड़कियाँ उदास हो गए होंगे। समझता हूँ।

अब यह सरकार का फ़ैसला है। जिस तरह से आप कोयला खदानें के निजीकरण को लेकर चुप थे उसी तरह कोई और रेलवे के निजीकरण को लेकर चुप रहेगा।

हमारी राजनीति चाहें सत्ता पक्ष की हो या विपक्ष की, निजीकरण को लेकर साफ़ नहीं बोलती है। बोलती भी होगी तो कोई इन विषयों पर ध्यान नहीं देता। दुख बस इतना है बिहार से लेकर देश के नौजवानों के लिए एक मौक़ा कम हो गया। लेकिन जब पिछली भर्ती पूरी नहीं हुई तो चुनाव के कारण कुछ निकल भी जाए तो क्या फ़र्क़ पड़ता है?

अब आप लोग ही रोज़गार को लेकर नए तरीक़े से सोचिए। मुझे मैसेज करने से क्या होगा। ऐसे फ़ैसले हो जाने के बाद बदलते नहीं है। सरकार नौकरी नहीं देगी। इस सत्य को जानते हुए आपको ही बदलना होगा। यही कह सकता हूँ कि नए अवसरों की तरफ़ देखिए। वैसे वहाँ भी कुछ नहीं है। लेकिन फिर भी। मैं राजनीति में नहीं हूँ । इसलिए आगे का रास्ता उनसे पूछें जिन्हें वोट देते हैं। युवा नेताओं से यही कहूँगा कि नौकरी के मसले को उठा कर भविष्य न बनाएँ । इससे दूर रहें। रोज़गार राजनीतिक मुद्दा नहीं रहा।

– रवीश कुमार

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