दंगा,आगजनी,धार्मिक आधार पर दो समुदायों में दुश्मनी फैलाने के आरोपी को बना दिया सादगी की प्रतिमूर्ति!

एक आम आदमी सा दिखने वाला सांसद 20 साल बाद जब अपनी सादगी के लिए हीरो बन गया, तब एक क्रिश्चियन मिशनरी के साथ जिंदा जलाए गए दो बच्चों की राख मिट्टी में मिल चुकी थी और उनकी चिताओं पर तमाम ​बारिशों का पानी बरस कर बह गया था.

एक आदमी में होते हैं दस बीस आदमी. जो ज्यादा शोर करता है, जो ताकतवर होता है, जिसे सत्ता का साथ मिल जाता है, उसके साथ लोग भी खड़े होते हैं. जो मर गया, जो जिंदा जल गया, जिसके लिए संवेदनाएं कुछ दिन की थीं, उसे इतिहास में भुला दिया गया.

झूठ जीते या हारे, ताकतवर झूठ हमेशा जीता हुआ दिखाई देता है.

जब मोदी मंत्रिमंडल का शपथग्रहण समारोह चल रहा था, तभी अचानक बिखरे बालों में एक आदमी ने शपथ पढ़नी शुरू की. मैं इनको पहले से नहीं जानता था. प्रताप चंद्र षड़ंगी.

इनके व्यक्तित्व ने आकर्षित किया कि अरबपतियों से भरी संसद में ये आदमी कहां से आ गया. कुछ घंटों बाद उनकी सादगी की खूब चर्चा होने लगी. वे सोशल मीडिया पर स्टार बन गए. सोशल मीडिया पर उनके मुरीद हुए लोगों ने खूब लिखा और एक सादगीपसंद, लो प्रोफाइल, साइकिल से सदन जाने वाले, सड़क किनारे खाना खाने वाले, झोपड़ी में रहने वाले, फक्कड़ की तरह रहने वाले नेता के लिए तारीफों की बाढ़ आ गई.

उनके बारे में खोजकर पढ़ना शुरू किया तो पता चला कि प्रताप चंद्र षड़ंगी वाकई सादगीपसंद हैं. साइकिल और रिक्शा से प्रचार करके अमीर प्रत्याशी को हराकर सांसद बन गए हैं.

बीबीसी, हफिंगटन पोस्ट, द वायर, फ्रंटलाइन जैसे संस्थानों ने उनके बारे में जो लिखा है उससे पता चला कि 1999 में ओडिशा में जब ग्राहम स्टैंस नाम के क्रिश्चियन मिशनरी को दो छोटे बच्चों के साथ जिंदा जला दिया था, तब षड़ंगी ओडिशा में बजरंग दल के मुखिया थे.

बजरंग दल पर इस आगजनी और हत्या का आरोप लगा था, लेकिन पुलिस को जांच में किसी ऐसे ग्रुप के शामिल होने के कोई सबूत नहीं मिले. षड़ंगी ईसाईयों को लेकर जहर उगलते रहे हैं. इस केस का मुख्य अभियुक्त दारा सिंह जिसे फांसी की सजा हुई थी, बाद में उसकी सजा को उम्र कैद में बदल दिया गया, वह भी बजरंग दल का था.

फ्रंटलाइन के मुताबिक, केंद्र सरकार ने इस केस की जांच के लिए जो आयोग बनाया, उसने बजरंग दल और षड़ंगी की भूमिका ​की जांच ही नहीं की.

2002 में ओडिशा विधानसभा पर हिंदू कट्टरपंथियों ने हमला किया था. इसमें बजरंग दल के लोग शामिल थे. इस घटना के बाद षड़ंगी को 66 लोगों के साथ दंगा, आगजनी, हमला और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

षड़ंगी विहिप से भी जुड़े रहे हैं. षड़ंगी के हलफनामे के मुताबिक, उनपर 7 आपराधिक मामले हैं जो दंगा, आगजनी, धमकी, धार्मिक आधार पर दो समुदायों में दुश्मनी फैलाने, उगाही आदि के हैं.

एक नागरिक के रूप में पहले हमारे सामने दो विकल्प थे. अच्छा नेता चुन लो या बुरा नेता चुन लो. फिर हमें विकल्प दिया गया कि अरबपति अपराधी चुन लो या अपराधी को संरक्षण देने वाला ईमानदार अपराधी चुन लो.

अब हमें विकल्प दिया जा रहा है कि या तो दंगाई चुन लो या फिर आतंक के आरोपी चुन लो.

यह सिलसिला है, चलता रहेगा. दो समुदायों में देश भर में दंगा करवाकर जब अटल—आडवाणी की जोड़ी हिंदुओं की हीरो हो गई थी, तभी इसकी नींव पड़ गई थी. फिर नरेंद्र मोदी आए, अमित शाह आए, योगी आदित्यनाथ आए. साक्षी, निरंजना ज्योति, गिरिराज, हेगड़े जैसों की भीड़ आई. लिंच मॉब को माला पहनाने वाले आए. फिर आतंक की आरोपी साध्वी प्रज्ञा और षड़ंगी आ गए.

जब जनता ऐसे लोगों के साथ खड़ी हो जिनपर सार्वजनिक रूप से दंगा कराने या बम धमाका कराने का आरोप हो, तब हमें ऐसे लोगों की आलोचना में क्या कहना चाहिए?

बंदरों, गायों, तमाम पशुओं से उनके प्रेम की तारीफ करनी चाहिए या इंसान के प्रति आपराधिक रवैया और सोच रखने के लिए उन्हें बुरा कहना चाहिए?

आप सब क्यों नहीं कहते? क्या एक दागदार इंसानियत, दागदार सियासत, जिसके मकसद इतने तुच्छ हैं, वह आपके साथ अच्छा करेगी? चुनाव आपका है. जय हिंद!

-Krishana Kant

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