130 करोड़ भारतीयों का ये कैसा प्रतिनिधित्व ? भारत के युवा का प्रधानमंत्री मोदी के नाम खुला खत


आदरणीय प्रधानमंत्री,

भारत सरकार।

विषय- आपके द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मंच से १३० करोड़ देशवासियों के आदेशानुसार काम करने का दावा पेश करने वाले बयान से असहमति ज़ाहिर करने हेतु।

श्रीमान प्रधानमंत्री महोदय,

अपार दुःख के साथ मुझे आपको सूचित करना पड़ रहा है कि गहन सोच-विचार के पश्चात् मैं आपको यह ख़त लिखने को विवश हुआ हूँ।

मेरे दिलों दिमाग़ में ये सवाल काफ़ी अरसे से कुलबुला रहा था और जब जब आप भारत में या किसी अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर खड़े हो कर ख़ुद को १३० करोड़ भारतीयों के प्रतिनिधि के तौर पर पेश करते रहे हैं, तब तब मेरे दिल में ये टीस गहरी होती रही है।

हालाँकि भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अन्तर्गत “फ़र्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम” के तहत चुने गए सांसदों के संसदीय दल का चुना हुआ नेता होने के नाते आपको पूरा हक़ है ख़ुद को १३० करोड़ भारतीयों के प्रतिनिधि के तौर पर पेश करने का एवं उनका प्रतिनिधित्व करने का और जो लोग आपके विचारों एवं नीतियों से असहमत हैं उनके ऊपर भी संवैधानिक बाध्यता है आपको अपने प्रतिनिधि के रूप में स्वीकारने की, लेकिन आपको यह समझना होगा कि क़ानूनी तौर पर किसी देश का प्रतिनिधि होना और वास्तविक रूप में सारे देशवासियों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधि होना, दो बिल्कुल अलग अलग बातें हैं।

सनद रहे कि मुझे इस बात से कोई भी गुरेज़ नहीं है और न ही होना चाहिए कि आप भारत की आवाम का प्रतिनिधित्व विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर करने को स्वतंत्र हैं, लेकिन ज्यों ही आप संयुक्त राज्य अमेरिका के ह्युस्टन शहर में आयोजित कार्यक्रम में बयान देते हैं कि आप भारत के १३० करोड़ देशवासियों के आदेशानुसार काम कर रहे हैं, त्यों ही मेरा दिल अपराध बोध से कचोट उठता है।

क्योंकि ऐसा बयान दे कर आप ये ऐलान कर रहे होते हैं कि भारत सरकार द्वारा इन्हीं १३० करोड़ देशवासियों में शामिल लाखों कश्मीरियों के ऊपर एक महीने से भी ज़्यादा समय से लागू पाबंदियों की आड़ में उनको मूल अधिकारों से वंचित रखने का जो कुकर्म किया जा रहा है, उसमें मेरी भी सहमति शामिल है..

साथ ही साथ जब आप इस प्रकार का बयान अपने मुखारविंद से ज़ाहिर करते हैं तो भारत सरकार के उन अमानवीय निर्णयों में भी आप मेरी सहमति शामिल होने की घोषणा करते प्रतीत होते हैं जिनके तहत भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम के लाखों निवासियों को भारत सरकार द्वारा भारत का नागरिक मानने से इनकार कर दिया गया हो और उनके लिए बाक़ायदा हिरासत केंद्रों का निर्माण कराया जा रहा हो, जबकि किसी भी क़ीमत पर भारत सरकार के इन अमानवीय कृत्यों को न तो मैं अपनी सहमति प्रदान करता हूँ बल्कि मैं इन निर्णयों की खुलेआम मुख़ालिफ़त करता हूँ और किसी भी सूरत में मुझे जालिमों की भीड़ का हिस्सा होना गँवारा नहीं है, क्योंकि हो सकता है कि आप भूल चुके हों लेकिन मुझे यह बात अच्छी तरह से कंठस्थ है कि मैं उस सरज़मीं पर पैदा हुआ हूँ जिसने “वसुधैव क़ुटुंबकम” का सिद्धांत प्रतिपादित कर सम्पूर्ण विश्व को मानवता की राह दिखलाई है।

प्रधानमंत्री जी आप शायद ऐसे बयान देते वक़्त ये भूल जाते हैं कि यही १३० करोड़ भारतवासी जिनके आदेशानुसार काम करने का आप दावा पेश करते हैं, आपके प्रधानमंत्री रहते भारत की बदहाल होती अर्थव्यवस्था के चलते गहरे आर्थिक और मानसिक संकट से गुज़रने को अभिशप्त हैं, आप शायद भूल जाते हैं कि आपके शासनकाल के दौरान ही पिछले कई दशकों की तुलना में बेरोज़गारी अपने उरूज पर पहुँच चुकी है और १३० करोड़ देशवासियों में एक बड़ा हिस्सा बेरोज़गारी की मार सहते इन युवक युवतियों का भी है, जिनके बारे में उत्तर प्रदेश सूबे की बरेली लोकसभा सीट से चुने गए सांसद और वर्तमान केन्द्र सरकार में मंत्री श्रीमान सन्तोष गंगवार जी का ये बयान आता है कि उत्तर भारतीय युवाओं में कौशल की कमी है।

आप शायद भूल जाते हैं कि इन १३० करोड़ लोगों में शहीद इंस्पेक्टर सुबोध सिंह से ले कर उन तमाम मरहूम देशवासियों के घरवाले और रिश्तेदार भी शामिल हैं जिनको भीड़ द्वारा कभी गाय के नाम पर और कभी बच्चा चोरी जैसे इल्ज़ामों के चलते मौत के घाट उतारा गया और बीजेपी के कार्यकर्ताओं, नेताओं से ले कर केन्द्र सरकार के मंत्रियों द्वारा इन हत्या आरोपियों के ज़मानत पर रिहा होने पर उनका फूल मालाओं से लाद कर भारत माता की जयकारों के बीच समाज के नायकों सरीखा सम्मान किया गया।

आप शायद भूल चुके हैं कि जिस संसदीय दल ने आपको अपना नेता चुन कर भारत के प्रधानमंत्री के पद पर शुशोभित किया है, उसमें आतंकवाद का आरोप झेल रहीं प्रज्ञा ठाकुर जैसे नगीने भी शामिल हैं जो महात्मा गांधी की हत्या को अंजाम देने वाले व्यक्ति को देशभक्त का दर्जा दे चुकी हैं, हालाँकि मुझे याद है कि आपने तुरन्त इस मसले पर अपनी प्रिय सांसद के प्रति नाराज़गी ज़ाहिर करने सरीखी कड़ी कार्यवाही को अंजाम दिया था।

मेरे द्वारा आपके इस वक्तव्य की आलोचना  का दूसरा पहलू भविष्य में भारत में लोकतांत्रिक विकल्प पैदा होने की सम्भावनाओं को ले कर है। क्योंकि मेरी नज़र में जब जब आप भारत की आवाम का इकलौता प्रतिनिधि होने का उद्घोष करते हैं, तब -तब आप भारत की जनता की लोकतांत्रिक विकल्प पेश करने की इच्छाशक्ति पर गहरा कुठाराघात करने का प्रयास करते नज़र आते हैं, और मुझे भारत के लोकतांत्रिक मुस्तकबिल की चिन्ताएँ विचलित कर जाती हैं।

मेरे द्वारा आपके वक्तव्य की आलोचना का अन्तिम पहलू स्वयं आपकी छवि को ले कर है। जैसा कि सर्वविदित है कि आपके शासनकाल में मुख्यधारा की मीडिया के अधिकांश हिस्से एवं आपकी पार्टी के कार्यकर्ताओं,पदाधिकारियों,नेताओं एवं सरकार के मंत्रियों द्वारा इन्हीं १३० करोड़ देशवासियों में से आपसे असहमत लोगों को “टुकड़े-टुकड़े गैंग” और “देशद्रोही” जैसे विशेषणों से नवाज़ा गया और कई लोगों को पाकिस्तान में जा कर बसने सरीखी सलाहें दी गयीं, अब ऐसे में आप इन तथाकथित देशद्रोहियों एवं अर्बन नक्सलियों के भी प्रतिनिधि बन जाते हैं, जो कि आप जैसे कट्टर देशभक्त के लिए एक शर्मनाक बात है।

इन्हीं सब असहमतियों के चलते मेरा आपको सुझाव है कि आप अगर उन देशवासियों की संख्या का ज़िक्र विभिन्न मंचों से करना ही चाहते हैं जिनके आदेश और आकांक्षाओं के अनुरूप आप कार्य कर रहे हैं तो एक तरीक़ा तो यह होगा कि आप राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को प्राप्त मतों की गणना करवा लें या फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आधिकारिक एवं ग़ैर आधिकारिक सदस्यों की गणना करवा लें लेकिन मेरा आपसे करबद्ध निवेदन है कि कृपया करके आप कमसकम मेरा नाम उस १३० करोड़ की लिस्ट से काट दें, जिससे मुझे अपराध बोध से मुक्ति मिल सके।

आपकी महान कृपा होगी।

सादर धन्यवाद।

मोहित यादव

(भारत का देश प्रेमी एवं इंसानियत पसन्द नागरिक)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *