प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की सच्चाई जानकर चौंक जाएंगे

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना : हजारों परिवारों के घर से LPG सिलेंडर गायब, चूल्हे पर खाना पकाने को हुए मजबूर
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राजस्थान के टोंक जिले के सीतारामपुर गांव की रहने वाली 60 साल की हंसा देवी खुश थी जब उन्हें जून 2016 में प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन मिला। वह तब तक खाना बनाने के लिए लकड़ी का उपयोग कर रही थीं।

दो महीने बाद जब सिलेंडर खाली हो गया तो उसे एहसास हुआ कि उसे खाली रिफिल को वापस भरवाने के लिए 750 रुपये देने की की जरूरत है जो कि उसके लिए असंभव था क्योंकि 6 साल से उसके परिवार की आमदनी का एकमात्र स्रोत उनका बेटा, चोना राम जो 30 साल का है, जो कि एक कृषि मजदूर के रूप में काम करता है और लगभग 4-5,000 रुपये महीने के कमाता है। हंसा देवी फिर से लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाने लग गई।

कुछ ऐसी ही कहानी सोडा बावरी गांव की रहने वाली 45 साल की गायत्री शर्मा की भी है। वह एक विधवा है और उनके परिवार में कमाई करने के लिए उनका 17 साल बेटा राम प्रसाद है। उन्हें नवंबर 2016 में एलपीजी कनेक्शन मिला, लेकिन कुछ ही समय बाद वो लकड़ी का चुल्हा वापस उपयोग करने के लिए मजबूर हो गई।

रामप्रसाद का कहना है कि “मेरी मां को रसोई में हर दिन सांस लेने में समस्या होती है, लेकिन हमारे पास लकड़ी के चूल्हे के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। हम सिर्फ एक ही रिफिल वहन कर सकते हैं,”
जयपुर की फागी तहसील के नायागांव गांव में, 60 साल की मुन्नी देवी ने किसी ना किसी तरह से सिलेंडर को फिर से भरवा लिया लेकिन फिर भी एलपीजी स्टोव के पास हमेशा लकड़ी और गोबर के उपलों का ढेर लगा रहता है, उन्होंने कहा स्टोव का उपयोग तो केवल मेहमानों के लिए चाय बनाने के लिए किया जाता है, रोज का खाना बनाने के लिए तो मिट्टी का चुल्हा ही काम में लिया जाता है।

जयपुर और टोंक जिलों के गांवों में अधिकांश घरों में सिलेंडरों के बगल में लकड़ियों का ढ़ेर आप देख सकते हैं।

आज शनिवार को, जब केंद्रीय और राज्य सरकारों की 12 कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत करने के लिए जयपुर लाया गया तो शायद उस भीड़ में ये परिवार नहीं शामिल होंगे। सरकार उन लोगों को चाहती है जो योजनाओं के बारे में अच्छी बात करें ना कि जो उनकी गलतियां निकालते हों।

इस बीच, जयपुर के श्रीरामगंज गांव की 45 वर्षीय रामपति देवी अपने घर में खाना बनाने के लिए लकड़ी इकट्ठा करने के लिए हर दिन दो किलोमीटर से अधिक चलकर जाती है।
उनका कहना है कि “हम सालों से ऐसे ही कर रहे हैं और उज्ज्वला योजना के आने के बाद भी कुछ नहीं बदला है,”।

नागरिक आपूर्ति राज्य मंत्री बाबूलाल वर्मा का कहना है कि “सरकार ने मुफ्त सिलेंडर देकर गरीबों की मदद की है। रीफिल को वापस भरवाना एक नियमित खर्चा है। पहली बार, सरकार ने ईंधन भरने की लागत कम कर दी है। अभी के लिए, मेरी राय में, सिलेंडर भरवाने के लिए कोई और दूसरा विकल्प नहीं है।”

राज्य में 34 लाख उज्जवला कनेक्शन-

यह योजना 1 मई 2016 को बालिया, उत्तरप्रदेश में एलपीजी के उपयोग किए जाने को लेकर खाना पकाने के पुराने ईंधन के तरीके को बदलने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।

गरीबी रेखा (बीपीएल) परिवारों से नीचे की महिलाओं के लिए कनेक्शन जारी किए गए थे या ग्रामीण इलाकों में जिनके परिवार की मासिक आय 4,860 रुपये से कम है और 1600 रुपये प्रति कनेक्शन की रकम के साथ शहरी इलाकों में 7,035 रुपये तय की गई थी।

इस साल 6 जुलाई तक, राज्य में 34,04,791 उज्ज्वला कनेक्शन जारी कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के बाद, राजस्थान चौथे स्थान पर है जहां उज्ज्वला कनेक्शन की सबसे ज्यादा संख्या है।

(ये हिंदुस्तान टाइम्स के Jaykishan Sharma की ग्राउंड रिपोर्ट है जिसका हिंदी अनुवाद हम यहां छाप रहे हैं।)

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