राजस्थान : निकम्मी सरकारों ने उर्दू का भविष्य काले अक्षरों से लिखने की तैयारी कर ली है !


राजस्थान के एजुकेशन सिस्टम में उर्दू का हर बीतते दिन के साथ गला घोंटा जा रहा है. स्कूलों में खाली होते उर्दू टीचरों के पद, स्कूलों में घटते बच्चों के एडमिशन और सिलेबस की किताबों से उर्दू के पन्ने गायब होना, इन सब घटनाओं को आप एक साथ देखेंगे तो समझ पाएंगे कि किस तरह शिक्षा की भाषा के रूप में उर्दू को हर दिन भारी झटका दिया जा रहा है।

यह मामला कोई यकायक शुरू नहीं हुआ है बल्कि ये नासूर की तरह पिछले कई सालों से राजस्थान में फैला है। गत सरकार और वर्तमान सरकार दोनों में शिक्षा के माध्यम के रूप में उर्दू को खत्म करने की कोशिश अपने-अपने तरीके से हुई है। आज उर्दू पढ़ने और पढ़ाने वाले दोनों को नहीं पता कि ना जाने कौनसी तारीख को उर्दू का भविष्य काले अक्षरों में लिख दिया जाए।

राज्य में उर्दू पढ़ने व बोलने वालों की संख्या भी कम नहीं है भारत सरकार द्वारा आयोजित 2001 की जनगणना के आंकड़े खंगाले तो पता चलता है कि राजस्थान में उर्दू बोलने वालें व्यक्तियों की संख्या 14 लाख से भी अधिक है।

हाल में राजस्थान उर्दू टीचर एंड लेक्चरर्स एसोसिएशन के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की और शिक्षा तंत्र में उर्दू को लेकर आने वाली तमाम समस्याओं से अवगत करवाया। वहीं शिक्षा में उर्दू के नए पदों को लाने की भी मांग रखी।

गौरतलब है कि राज्यभर में कॉलेज शिक्षा में उर्दू पदों की कमी, रिक्त पदों को भरना, स्कूलों में नए उर्दू के पदों को बनाना, उर्दू लेक्चरार, उर्दू के वरिष्ठ अध्यापक, थर्ड ग्रेड उर्दू अध्यापक भर्ती, मदरसा पैराटीचर्स को स्थायी करना व नए पैराटीचर्स भर्ती करना जैसे तमाम मसलों ने उर्दू के बुरे हालातों की पोल खोल कर रख दी है। 

अगर हम सरकार की बात करें तो साल 2012 में स्कूलों में उर्दू के लिए टीचरों के खाली पदों पर नियुक्ति की गई थी लेकिन उसके बाद 7 साल बीत जाने पर भी स्कूलों में उर्दू भाषा सीखने वाले विद्यार्थियों की संख्या पर कोई काम नहीं हुआ है। 

गहलोत सरकार ने स्कूल लेक्चरर भर्ती में नहीं निकाला उर्दू का एक भी पद

पिछली सरकार के पदचिह्नों पर चलते हुए वर्तमान कांग्रेस बहुमत राज्य सरकार ने भी उर्दू भाषा को प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों से मिटाने की ठान ली है। हाल में राजस्थान लोक सेवा आयोग की ओर से निकली हुई स्कूल लेक्चरर भर्ती में उर्दू भाषा का एक भी पद ना होना इसी बात का साक्ष्य है। विगत 19 सितंबर को राजस्थान लोक सेवा आयोग ने अपनी वेसाइट पर विज्ञप्ति जारी कर लगभग 20 अलग अलग विषयों के लिए 5000 हजार पदों पर स्कूल लेक्चरर भर्ती के आवेदन मांगे।

आश्चर्यजनक है कि इन 5000 हजार पदों में से एक भी पद उर्दू भाषा का नहीं है। जबकि परीक्षा में राजस्थान में उपयोग की जाने वाली सभी भाषाओं के लिए पद रखे गए हैं। जिनकी संख्या इस प्रकार है हिन्दी के लिए 849, अंग्रेजी के 304, संस्कृत के 156 पंजाबी के 15 और राजस्थानी के 6 पद है।

पिछली सरकार की शिक्षा नीतियों में बदलाव से प्रदेश के राजकीय विद्यालयों में स्टाफिंग पैटर्न के नए नियम लागू होने के कारण उर्दू के कई पद पहले ही समाप्त हो चुके है। इस कारण उर्दू पढ़ने के इच्छुक विद्यार्थी भी अन्य भाषा पढ़ने पर मजबूर है। नई सरकार से भी उर्दू के चाहने वालों को कोई आशा की किरण नजर नहीं आ रही है।

प्रदेश के राजकीय विद्यालयों में उर्दू विषय व्याख्यता के पहले से सृजित 90 पद वर्तमान में भी रिक्त है। प्रदेश सरकार का इन रिक्त पदों को भरने में कोई रुचि ना लेना उर्दू भाषा के साथ सरकार की भेदभापूर्ण नीति को दर्शाता है। जबकि प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय कार्यक्रम में उर्दू भाषा को उन्नति देने की बात कही गई है।

राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा स्कूल लेक्चरर भर्ती की विज्ञप्ति जारी करने के बाद से राज्य सरकार को उर्दू भाषा प्रेमियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। उर्दू भाषाई लोग और उर्दू विषय के छात्र सोशल मीडिया पर उर्दू विषय पर सरकार की भेदभावपूर्ण नीति के विरूद्ध मुहिम छेड़ें हुए है।

उर्दू को मारने की सालों पहले शुरू हुई कवायद

साल 2016-17 में कक्षा 5 की राज्य स्तरीय परीक्षा राजस्थान सरकार द्वारा सभी सार्वजनिक प्राथमिक स्कूलों में 8 से 13 अप्रैल तक थी। राज्य के शिक्षा विभाग ने गणित और पर्यावरण शिक्षा के लिए पेपर बांटे थे, पेपर हिंदी में बांटे गए थे, इस दौरान सरकार ने भाषाई-अल्पसंख्यक स्कूलों में अपनी मातृभाषा (उर्दू / सिंधी) में पढ़ने वाले हजारों छात्रों को अनदेखा किया।

टाइम टेबल में बताया गया कि उर्दू प्रश्न पत्र केवल मदरसों के लिए थे न कि उर्दू-माध्यम के प्राथमिक स्कूलों के लिए। भ्रम की स्थिति से, कई स्कूलों ने उर्दू में अपनी परीक्षा आयोजित करने से मना कर दिया। शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 की धारा 29 (2) (एफ) में कहा गया है, “शैक्षणिक माहौल, सिलेबस और मूल्यांकन प्रक्रिया को बनाते समय जहां तक व्यावहारिक है, बच्चे की मातृ भाषा का ध्यान रखा जाए”।

भाषाई-अल्पसंख्यक प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले पांच विषयों (अंग्रेजी, हिंदी, गणित, पर्यावरण शिक्षा और उर्दू / सिंधी / पंजाबी / गुजराती) किसी भी हिंदी-माध्यम के स्कूल के समान पाठ्यक्रम का पालन करते हैं, केवल शिक्षा का माध्यम ही छात्र की मातृभाषा है।

इससे पहले, उर्दू-माध्यम प्राथमिक स्कूलों में परीक्षाएं हमेशा उर्दू में ही आयोजित की जाती थीं। 20-25 उर्दू शिक्षकों को उर्दू में पेपर तैयार करने के लिए जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा नामित किया जाता था। यह 2012 में बदल गया, जब सतत और व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) प्रणाली शुरू की गई और स्कूलों को अपने दम पर सभी विषयों के लिए पेपर तैयार करने का अधिकार दिया गया। इसके बाद, राज्य सरकार ने कक्षा पांच के छात्रों के लिए परीक्षा आयोजित करने का फैसला किया और शिक्षा विभाग ने पेपर बनाए।

गत राज्य सरकार ने कक्षा 5 के लिए परीक्षा पैटर्न बदलने से अन्य कक्षाओं का भी शिक्षण पैटर्न प्रभावित हुआ और अंततः उर्दू को स्कूलों से दूर किया गया। राज्य सरकार की इस मंशा से उर्दू को केवल मदरसों तक सीमित करने का इरादा साफ दिखता है।

2014 में सत्ता में आने के एक साल बाद ही, राज्य में वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने सार्वजनिक संसाधनों के अभाव से बचने के आधार पर 17,550 पब्लिक स्कूलों जिनमें ज्यादातर भाषाई-अल्पसंख्यक स्कूलों का विलय कर दिया। पहाडग़ंज के भाषाई-अल्पसंख्यक स्कूल, महावतन, मेहरान, कामनीगरन, दावणखाना, पानो का दरिबा, नीलगरान, मौलाना साहब, मोतीकटला, जालुपुरा और नहरबड़ा कॉलोनियों की स्कूलों को मिला दिया गया जिनमें जयपुर में कुल मिलाकर 1,500 से अधिक छात्र हैं। विलय के बाद, हिंदी-माध्यम और उर्दू-माध्यम के छात्रों को एक कक्षा में बैठाया जाने लगा।

विलय के बाद कम कर दिए गए उर्दू टीचरों के पद

पब्लिक स्कूलों के विलय के बाद नई स्टाफिंग नीति ने राज्य में उर्दू और अन्य अल्पसंख्यक भाषाओं के लिए टीचरों के पदों को कम कर दिया गया। विलय के बाद, प्राथमिक स्तर (कक्षा एक से पांच) के लिए कोई उर्दू टीचर नियुक्त नहीं किया गया है।

वहीं टीचरों का यह भी कहना है कि अगर सरकार स्कूलों में मातृभाषा को केवल एक वैकल्पिक (तीसरी) भाषा के रूप में प्रतिबंधित करना चाहती है, तो वह संस्कृत को क्यों बढ़ावा दे रही है?

वर्तमान में सोशल मीडिया पर चल रहे हैं उर्दू को बचाने का अभियान

वर्तमान में उर्दू को लेकर राज्यभर में कई के विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, लोग सोशल मीडिया पर ऊर्दू बचाने को लेकर कई अभियान चला रहे हैं। कई सामाजिक संगठन और टीचरों के समूह इन प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं। सोशल मीडिया पर उर्दू की अहमियत समझने वाले छात्र और युवा कैंपेन चला रहे हैं।

1 thought on “राजस्थान : निकम्मी सरकारों ने उर्दू का भविष्य काले अक्षरों से लिखने की तैयारी कर ली है !

  1. #उर्दुकेसाथनाइन्साफीक्यो
    #उर्दुलेक्चररभर्तीकरो
    #मदरसपेराटीचरस्थायीकरो

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