त्यौहारों में दर्जी की दुकानें देर तक खोलने की मांग, AIMIM ने दिया ज्ञापन

टोंक । ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रदेश महासचिव एडवोकेट काशिफ जुबैरी ने टोंक जिला कलेक्टर को ज्ञापन देकर त्योहारी समय में सिलाई दुकानों को देर रात तक खुला रखने की मांग की है। ज्ञापन में बताया कि पिछले कुछ माह से त्योहारों पर शांति व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से दुकानों को देर रात तक नहीं खुलने दिया जाता है। रात 8 बजे ही इन्हें बंद कर दिया जाता है। जिससे रात को काम करने वाले मजदूरों खासकर सिलाई का काम करने वालों को आर्थिक परेशानी हो रही है।

बुधवार को एडवोकेट काशिफ़ ज़ुबैरी के नेतृत्व में AIMIM राजस्थान के एक डेलीगेशन ने ईद ओर रमज़ान जैसे त्योहारों के सीज़न में टेलरो व कच्चे कपड़े की सिलाई व कटाई का काम कर जीविका कमाने वाले मज़दूर पेशा लोगो को रात के समय दुकाने खोल कर कार्य किए जाने की छूट की माँग को लेकर ज़िला कलेक्टर कार्यालय में मेमोरंडम सौप प्रशासन द्वारा वैकल्पिक मार्ग निकालने की माँग की है।

ज्ञापन में उन्होंने बताया है कि पिछले कुछ महीनों से लेकर आगामी दिनों में देशभर भर में कई त्यौहार मना लिए गये हैं ओर आने वाले दिनों में भी कई राष्ट्रीय त्यौहार देश भर में खुशियाँ लुटाने और आपसी भाईचारे की सौगात देने के लिए हमारे देश के द्वार पर खड़े है। हमारा देश प्राचीन काल से त्यौहारो का देश भी कहा जाता है। यहाँ देश का हर नागरिक एक दूसरे के धर्म समुदाय के त्यौहार का सम्मान और आदर हमेशा करता रहा है ओर यही हमारे देश की खूबसूरती भी है.

उन्होंने कहा है कि हम भलीभाँति इस बात को जानते है की त्यौहार किसी अमीर ग़रीब अगड़े पिछड़े आदि का भेद किए बिना सभी लोगो के द्वारा मनाया जाता हैं लेकिन हमारे समाज में कई लोग जो की मज़दूर, गरीब, व मध्यम वर्गीय परिवार से आते है। ऐसे लोग त्यौहारी सीज़न में अपनी आजीविका बढ़ाने के लिये ज्यादा और ओवरटाइम काम कर के अपना त्यौहार मानते है.

उन्होंने कहा है कि इस पत्र के माध्यम से में आपका ध्यान शहर टोंक में व्यापत गरीबी ओर दूसरे मानको की ओर दिलाना चाहूँगा.

ज़िला टोंक जो की राजस्थान में चाहे रोज़गार हो, चाहे शिक्षा प्रणाली हो, चाहे इंडस्ट्रियल विकास का मामला पिछले कई सालों से लगातार पिछड़ा हुआ है..

अगर हम बात करे शिक्षा की तो विश्ववि‌द्यालय अनुदान आयोग की रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा के स्तर के अनुसार यह एक पिछड़ा जिला है.

वही अगर हम रोज़गार की बात करे तो टोंक में औ‌द्योगिक एक भी बड़ी इकाई नहीं होने के कारण यहा रोज़गार एक बहुत बड़ी समस्या है.

वही अगर इंडस्ट्रियल विकास में पिछड़े पन की बात करे तो भी टोंक एक बेहद पिछड़ा ज़िला है। ना शिक्षा ना रोज़गार ना तेज़ी से बढ़ती आर्थिक स्थिति के कारण ही पंचायती राज मंत्रालय की वर्ष 2006 की रिपोर्ट के अनुसार देश के 250 सबसे पिछड़े ज़िलों में टोंक को सूचीबद्ध किया था.

यह ऑकड़े दिखाते है की किस तरह टोंक के आम व्यक्ति के पास ना शिक्षा है, ना रोज़गार, ना काम धंधे। लेकिन किसी तरह खुले काम जैसे त्यौहारी सीज़न में कच्चे कपड़े की सिलाई करके कपड़े बनाने, इन कपड़ों की कटाई करने जैसे कार्य करके त्यौहारी सीज़न में अपने परिवार व अपनी जीविकापार्जन का कार्य व त्यौहार ख़ुशी व हर्षोउल्लास से मनाने की वयवस्था करता है। वही दूसरी ओर एक बड़ी आबादी जो की गरीब तबका है उनके पास बेहतर रोज़गार विकल्प नहीं होने के कारण उनकी आमदनी इतनी नहीं होती की वह नये व महेंगे रेडीमेट वस्त्र की ख़रीदारी आसानी से कर सके इसी कारण त्यौहारी सीज़न में कच्चे कपड़े की सिलाई व कटाई का कार्य में भारी बढ़ोतरी व इज़ाफ़ा देखने को मिलता है. 

इस कार्य से कई ग़रीब लोग शहर भर की दर्जी की दुकानों पर सिलाई व कटाई का काम कर कमाई व रोज़गार चलाते है और त्यौहारी सीज़न की आख़िर 15 से 20 दिन काफ़ी कार्य भार बढ़ जाने के कारण लगातार सिलाई व कटाइ का कार्य करते रहते है.

वही दूसरी ओर शहर टोंक काफ़ी ग़रीब और आर्थिक पिछड़ा होने के कारण यहाँ मौजूद एक बड़ा वर्ग जो की ग़रीब है इसी कच्चे कपड़े को सिलाई व कटाई कर बनाये गये कपड़ों को पहन अपना त्यौहार मानते है.

 इसको ऐसे समझा जा सकता है की दोनों वर्ग जो को एक ग़रीब मज़बूत वर्ग है जो दर्जी की दुकानों में कच्चे कपड़ो की सिलाई व कटाई का कार्य कर अपनी जीविकापार्जन करता है वही दूसरी ओर एक बहुत बड़ा ग़रीब वर्ग जो की इन्ही कच्चे माल से तैयार कपड़ों को पहन कर अपना त्यौहार मानता है। दोनों में से किसी भी एक की आवश्यकताओ में कमी शहर टोंक की एक बहुत बड़ी आबादी जो की सुख सुविधाओं, विकास की कमी के कारण ग़रीबी स्तर पर जीवन जीने पर मजबूर है के लिए अपने अपने आस्था के अनुसार मनाये जाने वाले त्यौहार के ख़ुशी के मौके पर एक निराशा का सामना करने जैसा है. जब आगामी त्यौहार के अंतिम दिनों में कार्य भार अधिक है।

जिसकी बानगी आजकल टोंक में देखने को मिल रही होने के कारण रात भर दर्जियों की दुकानों में रहकर सिलाई व कटाई का कार्य करने वाले ग़रीब व ज़रूरतमंद मज़दूर पेशा लोगो को शहर के ला एंड ऑर्डर के नाम पर परेशान करते हुए उनके कामों में व्यवधान व रुकावट पैदा करते हुए पुलिस की गाड़िया दुकानों पर पहुँच कर कार्य व दुकाने बंद करने का दबाव बना रही है जो की कतई न्यायोचित नहीं है। आज से पूर्व भी शहर टोंक में त्यौहारी सीज़न के दौरान इस तरह कार्य भार अधिक होने पर सिलाई का काम किया जाता रहा है, अब अगर इस काम में व्यवधान या रुकावट पैदा की जाती है तो शहर के बहुत बड़े ग़रीब वर्ग को अपने त्यौहार पर निराशा हाथ लगेगी, वही त्यौहार पर कच्चे माल से सिलाई व कटाई कर नये कपड़े सीलकर देने का वादा कर शहर के दर्जीयो व मज़दूर पेशा वर्ग के लिये जवाब देही व मुश्किलें चरम पर पहुँच जाएगी. जिसकी भरपाई नामुमकिन होगी।

इस पत्र को लिखे जाने के कारण व तथ्यों ओर आकड़ो को साथ प्रस्तुत कर आपसे प्रार्थना है की लॉ एंड ऑर्डर यक़ीनन एक बेहद गंभीर मामला है जिसका ध्यान रखा जाना प्रत्येक नागरिक की ज़िम्मेदारी है लेकिन लॉ एंड ऑर्डर के नाम पर एक बहुत बड़े गरीब तबके को उसके त्यौहारिक खुशियों व रोज़गार में कटौती करना व्यावहारिक दिखाई नहीं देता.

त्यौहार के अंतिम दिनों से पहले रोज़गार बंद करवाने से बेहतर कोई विकल्प तलाशा जाये. जैसे प्रत्येक सिलाई मशीन या दर्जी की दुकान पर कटाई सिलाई का कार्य कर रहे मज़दूर पेशा वर्ग के हर एक व्यक्ति की पहचान पत्र /जानकारी दुकान मालिक की पास संग्रहित रखवा कर निर्देश दिया जाये की दुकान पर उसके पहुँचने का समय व निकलने का समय नोट किया जाकर प्रत्येक मज़दूर के आने व जाने की जानकारी अपने पास संगृहीत रखी जाये रात को 12 बजे बाद कोई भी मज़दूर अपनी कार्यरत दुकानों को छोड़कर बाहर सड़को व बाज़ारो में ना घूमे.

अत आपसे इस पत्र के माध्यम से निवेदन है की शहर के एक बहुत बड़े तबके को रोज़गार व त्यौहार पर पारंपरिक खुशियों में कटौती करने बेहतर व व्यावहारिक यह है की बीच का रास्ता निकाल लॉ एंड ऑर्डर जैसे गंभीर व महत्वपूर्ण विषय व आम लोगो के त्यौहार की खुशियों के बीच सामंजस्य बनाया जा सके व दर्जियों की दुकान पर, सिलाई व कटाई का कार्य कर रहे ग़रीब व मज़दूर पेशा लोग बिना किसी रुकावट रात्रि में अपना कार्य कर सके.

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