लॉकडाउन के बाद पैदल ही गुजरात से राजस्थान चल पड़े मज़दूर,ना रोटी ना पानी !


उनके हाथों में हुनर है उनके हाथ भारत में निर्माण करते है
कोई बांध ,कोई बिजलीघर ,हॉस्पिटल और राजमार्ग उन हाथो के बनावट की गाथा सुनाते है

फिर वो लम्हा आया जब उन हाथो ने याचना की ,गुजरात में मेहनत मशक्क्त कर पेट पालते हजारो मजदूरों को बेसहारा छोड़ दिया गया कोरोना के खौफ का साया फैला तो उन्हें घर लौटने को कह दिया गया खबरे है ऐसे दो हजार मजदूर मंगलवार को पैदल ही अपने गांव घरो के लिए चल पड़े !

पथरीले रास्तो पर हजारो कदम ,न कोई रोजी रोटी का इंतजाम न कोई साधन मर्द ,औरत और बच्चे सर पर सामान की पोटली मजदूर अक्सर पूरा सामन लेकर चलते है ,यही उनकी पूंजी है

वे पूरी रात चले कहीं कोई पुलिस वाले ने मदद की तो कही कोई छिटपुट इमदाद मिली पर रास्ते में दुकाने बंद थी ,जिंदगी घरो में कैद थी बांसवाड़ा का दसरथ यादव कहता है,”

वो मंगल रात पैदल चले पड़े ,उनके हमवार साथी मजदूर थे चार घंटे चलने के बाद कही कोई साधन मिला वे हिम्मतनगर पहुंचे ,वहां पुलिस नाकाबंदी थी ,फिर एक ट्रक मिला ,एक सौ लोग उसमे सवार हुए मास्क के नाम रुमाल था ,न पानी न रोटी फिर वे शामलाजी पहुंचे ,इसके बाद दो घंटे का सफर तय कर राजस्थान के बिछीवाड़ा पहुंचे”

उनमें से एक शंकर यादव कहते है ” जैसे ही लोक डाउन का ऐलान हुआ ,हमने निकलने का सोचा। रात नो बजे पैदल ही चल पड़े। साथ में जयपुर ,जोधपुर ,उदयपुर के मजदूर साथी थे। न खाने को कुछ मिला ,न पानी। आखिर राजस्थान के बिच्छीवाड़ा में कुछ खाने को मिला ”

सरकारी सूत्रों के अनुसार बुधवार की सुबह बिछीवाड़ा में दो मजदूर पहुंच चुके थे।

बिछीवाड़ा के तहसीलदार अमृत पटेल के अनुसार ,इन मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए राजस्थान रोडवेज की तीन बसे, पंद्रह बीस प्राइवेट बसे किराये पर ली गई और सोशल डिस्टन्सिंग रखते हुए बसों में बैठाया।

मजदूरों के मुताबिक वे जिन ठेकेदारों के मातहत काम करते थे ,उन्होंने पांच सो रूपये देकर पीछा छुड़ा लिया /

गुजरात एक समृद्ध राज्य है / उन्हें इन मेहनतकशो की तकलीफ समझनी चाहिए थी।उसी गुजरात के गाँधी कहते थे ‘ कोई भी फैसला लेने के पहले यह उस इंसान का चेहरा जरूर जेहन में रखना जो आखिरी कतार में खड़ा है।
किसी के अल्फाज है –

अमीरी के कुत्ते भी चर्बीले है  मजदूर के चेहरे जर्द पीले है।

-नारायण बारेठ

 

 

 

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