सीएए को लागू करना अनुचित व असंवैधानिक-राजस्थान मुस्लिम फोरम

जयपुर। राजस्थान मुस्लिम फोरम (राजस्थान के प्रमुख मुस्लिम संगठनों का संयुक्त मंच) ने बुधवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) को लागू करना अनुचित व असंवैधानिक बताया है।

फोरम के जनरल सेक्रेट्री मुहम्मद नाजिमुद्दीन ने बताया कि राजस्थान मुस्लिम फोरम के सभी घटक एकजुटता के साथ यह संयुक्त प्रेस वक्तव्य जारी करके, समानता और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों को कमजोर करने वाले भेदभावपूर्ण कानून नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 का विरोध करते हैं। हम आम चुनाव की घोषणा से ठीक पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू करने की कड़ी निंदा करते हैं।

इस अधिनियम में ऐसे प्रावधान शामिल है जिनसे भारतीय संविधान में निहित समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत आहत होते हैं। भारतीय संविधान में पहले से वर्णित अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता के सामान्य सिद्धांतों का प्रतीक है और धर्म के आधार पर व्यक्तियों के बीच अनुचित भेदभाव को रोकता है।

नागरिकता अधिनियम् 1955 की धारा 2 में खंड (बी) में संशोधन के बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से पलायन कर के आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों से संबंधित व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है जो नागरिकों के बीच धर्म के आधार पर भेद-भाव करता है। इस कानून के अनुसार उपरोक्त धर्मों से सम्बन्धित ऐसे विदेशी नागरिक जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत की सीमा में प्रवेश किया था को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।

इस अधिनियम में धार्मिक संबद्धता के आधार पर चुनिंदा नागरिकता प्रदान करके भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत समानता और धर्मनिरपेक्षता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया है और खामोशी से मुसलमानों को इससे अलग कर के कानून के समक्ष समता के अधिकार का हनन किया गया है। यह भेदभावपूर्ण कानून देश के सामाजिक ताने-बाने को खतरे में डालता है, जिससे समावेशिता और विविधता के मूलभूत सिद्धांतों को चोट पहुंचती है।

भारतीय संसद द्वारा नागरिक संशोधन विधेयक की मंजूरी ने देश भर के उन सभी लोगों में बेचैनी पैदा कर दी है जो न्याय प्रिय है और संविधान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए चुना गया समय भी सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करता है और साथ ही स्पष्ट रूप से एक राजनीतिक दल द्वारा अपने तुच्छ राजनीतिक हितों के लिए समाज में धर्म के आधार पर विभाजन पैदा करने के उद्देश्य को दर्शाता है।

हमारा मानना है कि नागरिकता धर्म, जाति या पंथ के बजाए समानता के सिद्धांतों के आधार पर दी जानी चाहिए। अधिनियम के प्रावधान सीधे तौर पर इन सिद्धांतों के विरुद्ध हैं और हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को खतरे में डालते हैं।

हम सरकार से नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को वापस लेने और भारतीय संविधान में निहित समावेशिता और समानता के मूल्यों को बनाए रखने की मांग करते हैं।

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