राजस्थान में कांग्रेस क्यों नहीं जीत सकती लोकसभा की सभी 25 सीटें!

राजस्थान में लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अलावा बीटीपी-बसपा व माकपा भी कांग्रेस के रास्ते का रोड़ा बन सकते है।

2014 में राजस्थान की सभी पच्चीस लोकसभा सीटों पर  भाजपा का कब्जा होने के बावजूद इस बार कांग्रेस पार्टी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व मे सरकार गठित होने से उत्साहित होकर प्रदेश में अधिकतम सीट जीतकर भाजपा को पटखनी देना चाहती है।

लेकिन छ विधायकों वाली बसपा के अलावा दो-दो विधायकों वाली भारतीय ट्राईबल पार्टी व माकपा के साथ साथ तीन विधायको वाली हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी कांग्रैस की जीत की राह में रोड़ा बने हुये है।

कांग्रेस और उक्त चारो छोटे दलो का राजनीतिक आधार एक तरह से दलित-मुस्लिम-आदिवासी व किसान वर्ग के मतदाताओं को ही माना जाता है। अगर उक्त पांचो दल के उम्मीदवार आमने सामने लड़ेंगे तो एक दूसरे के मतो को ही प्रभावित करते हुये एक दूसरे के ही वोट काटेंगे। जिसका फायदा सीधा सीधा भाजपा उम्मीदवारो को ही मिलना तय माना जा रहा है। जबकि वोट काटने की बात  कहने पर उक्त छोटे छोटे दल कहते है कि “हम लड़ेगे ओर हम जीतेगे”।

भारतीय ट्राईबल पार्टी ने बांसवाड़ा-डूंगरपुर, उदयपुर व चित्तौडग़ढ़ की तीन लोकसभा सीटो से व माकपा ने सीकर, चूरु व बीकानेर की तीन सीटो से लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। जबकि हनुमान बेनीवाल की पार्टी रालोपा व बसपा ने चुनाव लड़ने की घोषणा के बावजूद सीटो को चिन्हित करके लड़ने का ऐलान अभी तक नही किया है। उक्त चारो दलो के लोकसभा चुनाव लड़ने से कांग्रेस पार्टी मे अंदर खाने काफी घबराहट मचना बताया जा रहा है। पिछले दिनो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बांसवाड़ा-डूंगरपुर दौरे मे भारतीय ट्राइबल पार्टी को लेकर ब्यान दिया कि यह हमारे ही लोग थे। जो राह भटक गये। जो वापिस आ जायेंगे। इस पर पलटवार करते हुये बीटीपी नेताओं ने तीन लोकसभा क्षेत्रो से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।

गुजरात के नेता व विधायक छोटू भाई बसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी ने राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र मे आदिवासियों के मुद्दों व एक आदिवासी क्षेत्र अलग से बनाने की मांग को लेकर किये आंदोलन से अपना बड़ा जनाधार कायम कर लिया है। जिसके कारण आदिवासी क्षेत्र मे कांग्रेस का जनाधार पहले के मुकाबले कमजोर हुवा है। जबकि गुजरात व मध्यप्रदेश के लगते राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र मे विशेषकर पिछले पंद्रह साल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने काम करते हुये भाजपा के लिए बड़ा वोटबैंक तैयार किया है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने पुत्र वैभव गहलोत को राजनीति के पर्दे पर प्रदर्शित करने के लिये किसी मुस्लिम बहुल सुरक्षित लोकसभा सीट की तलाश में है। वही उनके विरोधी उनके पूत्र वैभव को लोकसभा चुनाव मे पटखनी देकर उनसे हिसाब चुकता करने की योजना बना रहे है।

कांग्रेस ने अकेले अपने दम पर सभी पच्चीस सीटो पर चुनाव लड़ना तय करके उम्मीदवार चयन के लिये पहले जिला स्तर कार्यकर्ताओं से चर्चा की, फिर मुख्यमंत्री निवास पर जिले के नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ मंथन किया,उसके बाद दो फरवरी को दिल्ली मे प्रभारी महासचिव व सचिव के अलावा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलेट के साथ सभी सीट पर उम्मीदवार चयन के लिए गहन मंथन करने के बाद, छ फरवरी को जयपुर मे प्रदेश चुनाव समिति की होने वाली बैठक मे चर्चा करके, बीस फरवरी तक हाईकमान को उम्मीदवारों का एक पैनल सोंपा जायेगा। जिनमे कुछ सीटो पर सींगल नाम भी हो सकते है।

राजस्थान के नगर से बसपा विधायक वाजिब अली के अलवर से बसपा के टिकिट पर व सीकर से माकपा राज्य सचिव कामरेड अमराराम के व नागौर से रालोपा विधायक हनुमान बेनीवाल के उम्मीदवार बनने से वहां से होने वाले कांग्रेस उम्मीदवारों को जरा मुश्किल का सामना करना पड़ेगा। वही आदीवासी बेल्ट मे बीटीपी उम्मीदवार कांग्रैस के लिये सरदर्द बन सकते है। कांग्रेस चाहे सतही स्तर पर उक्त चारो छोटे दलो के चुनाव लड़ने की बात को सरदर्द नही बताये। लेकिन विधानसभा चुनाव मे भाजपा से मात्र एक प्रतिशत अधिक मत पाने वाली कांग्रैस पार्टी के दिग्गज नैता अंदर ही अंदर इन पार्टियो के चुनाव लड़ने को लेकर काफी चिंतित बताते है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान मे मजबूत विपक्ष भाजपा के अलावा आगामी लोकसभा चुनावों मे कांग्रैस को जीतने के लिये उक्त छोटे छोटे दलो से भी निपटने की रणनीति बनानी होगी। अन्यथा यह छोटे छोटे दल कांग्रैस की नैया पार होने मे रोड़ा साबित हो सकते है।

-।अशफाक कायमखानी।

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