भारत में रेडियो ऐसा माध्यम है जिसे इस खुले समाज में आज़ादी नहीं है

रेडियो एक ह्रदय स्पर्शी माध्यम है -सर मार्क टुल्ली
पर भारत में रेडियो पिंजरे का पंछी है। आज विश्व रेडियो दिवस है।भारत में सर मार्क टुल्ली एक ऐसा नाम है जो अब भी गांव देहात नगर डगर जाना पहचाना जाता है। वे भारत में बीबीसी के ब्यूरो प्रमुख रहे है और कोई तीन दशक तक लोग उन्हें सुनते रहे है।
वे कहते है ब्रिटैन और अमेरिका में 90 फीसद लोग रेडियो सुनते है। पर भारत में तस्वीर अलग है।सर मार्क टुल्ली को अच्छा लगा कि प्रधान मंत्री मोदी ने मन की बात के लिए टीवी की जगह रेडियो तो तरजीह दी। अपने एक लेख में वे कहते है ‘मोदी को रेडियो की पहुंच का पता है।जब ओबामा भारत आये तो पी एम ने संदेश के लिए रेडियो ही चुना। ओबामा से बातचीत में मोदी ने कहा ‘रेडियो घर घर गली गली अपनी पहुंच रखता है। यह भी कह यह आम आदमी तक पहुंचता है। ओबामा ने सूचनाएं साझा करने वाले एक खुल्ले समाज की पैरवी की। सर मार्क टुल्ली कहते है भारत में रेडियो एक ऐसा माध्यम है जिसे इस खुल्ले समाज में आज़ादी नहीं है।
अपने एक लेख में सर मार्क टुल्ली कहते है रेडियो को इस्तेमाल करने वालो को उसकी उपयोगिता का पता है। शायद यही ताकत रेडियो को समाचार प्रसारण की छूट देने से रोकती है।वे अमेरिकी राष्ट्रपति स्व रूज़वेल्ट को याद करते है।रूजवेल्ट ‘ए फायरसाइड चाट ‘ नाम के रेडियो कार्यक्रम के जरिये अवाम से मुखातिब होते थे।
समाचार माध्यम के रूप में सर मार्क टुल्ली रेडियो को बेहतर मानते है।वे कहते है -श्रोता जब सुनता है तो उस चीज के बारे में अपने मस्तिष्क मे चित्र बनाने लगता है,जब आप तस्वीर बनाने लगते हो तो इंसान ध्यान और मनन में लिप्त हो जाता है। यह दिमाग को सक्रिय करता है।यह इंसान को कल्न्पनाशील बनाता है। बीबीसी के पूर्व रेडियो प्रमुख लिज़ फोरगन ने एक बार कहा ‘ रेडियो का भविष्य बहुत सुनहरा है। बशर्ते आप इसके साथ तस्वीर नत्थी न करे। डिजिटल मीडिया में रेडियो के साथ तस्वीर भी होती है।
[समय समय पर प्रकाशित सर मार्क टुल्ली के विचारो पर आधारित ]
नारायण बारेठ

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