भारतीय सेना के गौरव शहीद वीर अब्दुल हमीद के स्मारक पर भी लड़ने को तैयार हो गए थे लोग !


शहीद अब्दुल हमीद के नाम की वह रात !

1 जुलाई भारतीय सेना के गौरव शहीद अब्दुल हमीद का यौमे विलादत है। जब भी यह दिन आता है, मेरे मन में बीस साल पहले की एक भयानक रात की स्मृतियां कौंध जाती हैं। तब मैं मुंगेर जिले का एस.पी हुआ करता था।

आज ही के दिन आधी रात को शहर के नीलम सिनेमा चौक पर सांप्रदायिक दंगे की भयावह स्थितियां बन गई थीं। संवेदनशील माने जाने वाले उस चौक पर एक तरफ मुसलमानों के मुहल्ले थे और दूसरी ओर हिंदुओं की आबादी।

मैं चौक पर पहुंचा तो देखा कि एक तरफ सैकड़ों मुसलमान जमा थे और दूसरी तरफ सैकड़ों हिन्दू। दोनों तरफ से उत्तेजक नारे लग रहे थे। बीच-बीच में पटाखे भी छूट रहे थे। मेरे साथ सुविधा यह थी कि इस शहर और जिले के लोग मेरा सम्मान बहुत करते थे।

मैं साथी पुलिसकर्मियों के मना करने के बावज़ूद मुसलमानों के मुहल्ले में घुस गया। मुझे अपने बीच पाकर वे लोग शांत होने लगे। कुछ युवा मेरे पास आए तो मैंने बवाल की वजह पूछी। उन्होंने बताया कि वे चौक पर शहीद अब्दुल हमीद के स्मारक की बुनियाद रख रहे थे कि कुछ ही देर में सैकड़ों हिन्दू जमा होकर उसे तोड़ने की कोशिश करने लगे।

मैंने पूछा – ‘क्या आप लोगों ने स्मारक बनाने के लिए प्रशासन से अनुमति ली थी ? क्या लोगों को पता था कि यहां किसके स्मारक की बुनियाद रखी जा रही थी ?’ मेरे सवालों पर वे बगले झांकने लगे। मैं समझ गया। मैंने उन्हें आश्वस्त किया – ‘चौक पर शहीद का स्मारक बनेगा और सबके सहयोग से बनेगा। आप लोग घर जाओ, मैं ख़ुद रात भर यहां रहकर बुनियाद की हिफाज़त करूंगा।’

कुछ ही देर में सभी मुस्लिम घर लौटने लगे। पटाखों की आवाज़ें इधर बंद हुई, मगर दूसरी तरफ अब भी आतिशबाज़ी हो रही थी।

मैं हिंदुओं की तरफ गया तो उत्तेजित लोगों ने बताया कि उन्हें पता चला था कि मुसलमान शहर के व्यस्त चौराहे पर चोरी-चोरी किसी मुस्लिम की मज़ार बना रहे हैं। वे विरोध करने पहुंचे हैं।
मैंने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया तो पल भर में उनका गुस्सा काफ़ूर हो गया। मैंने उन्हें बताया कि सिर्फ संवादहीनता और ग़लतफ़हमी की वजह से ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति बनी है।
अब्दुल हमीद का नाम सुनकर इधर से भी आतिशबाज़ी बंद हो गई और लोग लौटने लगे। मैं अखबार बिछाकर प्रस्तावित स्मारक पर बैठ गया और शहीद को याद कर कहा-माफ़ करना हमारे आज़ाद भारत के अभिमन्यु, वे लोग नहीं जानते कि वे तुम्हारे नाम पर क्या करने जा रहे थे !
आज मुंगेर के नीलम सिनेमा चौक पर आम लोगों के सहयोग से बना शहीद अब्दुल हमीद का स्मारक शान से खड़ा है जिस पर न केवल सभी संप्रदायों के लोग पुष्पांजलि अर्पित करते हैं, बल्कि राष्ट्रीय पर्वों के दिन वहां झंडोत्तोलन भी होता है।
ध्रुव गुप्त
(लेखक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी है)

 

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