राजस्थान : बसपा विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने के क्या हैं मायने, यहां समझे पूरा गणित


16 सितंबर, सोमवार की रात राजस्थान की राजनीतिक जिस उठापटक की गवाह बनी उसने नेशनल लेवल पर खूब सुर्खियां बटोरी, रातोंरात जहां एक तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की राजनीतिक कलाबाजियों के कसीदे पढ़े जाने लगे तो दूसरी ओर दल-बदलू राजनीति की इस घटना ने नेताओं के जन-प्रतिनिधि होने के दावों पर फिर सवालिया निशान लगा दिए।

जी हां, हम बात कर रहे हैं राजस्थान सरकार को बाहरी समर्थन दे रहे बसपा (बहुजन समाजवादी पार्टी) के 6 विधायकों की जिन्होंने सोमवार की रात कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया। अब गहलोत सरकार के पास राज्य विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 106 हो गई है।

राजनीतिक हलचल की यह घटना मुख्यमंत्री गहलोत के नाम दर्ज हुई जिसके बाद विधानसभा में कांग्रेस की स्थिति तो मजबूत हुई ही, इसके साथ ही आगामी स्थानीय निकाय चुनावों (नगर निगम और पंचायत चुनाव) में पार्टी कार्यकर्ताओं को आत्मविश्वास बढ़ाने की घूंटी भी मिली।

गौरतलब है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस को 99 सीटों पर जीत मिली थी, जिसके बाद उपचुनाव में कांग्रेस ने 100 का जादुई आंकड़ा छू लिया था, लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस स्पष्ट बहुमत से 5 सीटें पीछे थी, जिसकी कमी बसपा विधायकों ने पूरी कर दी है।

ये 6 विधायक हुए कांग्रेस में शामिल –

  1. राजेंद्र गुढ़ा (झुंझुनू)
  2. जोगिंदर अवाना (नदबई, भरतपुर)
  3. लखन सिंह (करौली)
  4. दीपचंद खेरिया (किशनगढ़ बास)
  5. संदीप यादव (तिजारा)
  6. वाजिब अली (नगर, भरतपुर)

गहलोत ने दोहराया 10 साल पुराना इतिहास

पिछले कुछ समय से मुख्यमंत्री गहलोत के संपर्क मे रहने वाले बसपा विधायक यकायक कांग्रेस से नहीं जुड़े हैं। विधायकों की मुलाकातों का दौर भी लगातार जारी था।

हालांकि, राजस्थान की राजनीति में यह दूसरी बार है जब मुख्यमंत्री गहलोत के नेतृत्व में बसपा विधायक कांग्रेस में शामिल हुए है। 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 96 सीटें मिलीं जिसके बाद अप्रैल 2009 में बसपा के सभी 6 विधायकों ने कांग्रेस जॉइन कर बहुमत का आंकड़ा पार करवा दिया था।

कांग्रेस में शामिल होने के क्या हैं मायने !

बसपा सभी 6 विधायकों का कांग्रेस में जाना अहम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि नागौर जिले की खींवसर और झुंझुनूं जिले की मंडावा विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव और राज्य में नवंबर में राज्य की 52 नगरपालिकाओं के 2455 वार्डों में चुनाव के साथ जनवरी में पंचायत चुनाव भी हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि इन चुनावों में कांग्रेस के जनाधार को मजबूती मिलेगी। हालांकि बसपा की विचारधारा से जुड़ा वोटबैंक कांग्रेस की तरफ कितना झुकेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

इसके अलावा विधायकों का यह विलय राजस्थान कांग्रेस के सेनापति गहलोत को ही माना जा रहा है ऐसे में आलाकमान स्तर पर गहलोत की छवि और मजबूत होगी। हम जानते हैं कि सरकार बनने के बाद से ही गहलोत और डिप्टी सीएम पायलट के बीच खींचतान की खबरें आती रही है, ऐसे में इस पूरे घटनाक्रम से पायलट का बाहर रहना गहलोत के पॉइंट्स बढ़ा सकता है।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस को बताया अंबेडकर विरोधी पार्टी !

इस पूरे प्रकरण मायावती की भी प्रतिक्रिया सामने आई. मायावती ने कांग्रेस को धोखेबाज पार्टी बताते हुए कहा कि, “राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने एक बार फिर बीएसपी के विधायकों को तोड़कर गैर-भरोसेमन्द व धोखेबाज़ पार्टी होने का प्रमाण दिया है। यह बीएसपी मूवमेन्ट के साथ विश्वासघात है जो दोबारा तब किया गया है जब बीएसपी वहां कांग्रेस सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन दे रही थी।”

आगे बोलते हुए मायावती भीमराव अम्बेडकर की विचारधारा का हवाला दिया और कहा कि कांग्रेस एससी, एसटी, ओबीसी विरोधी पार्टी रही है तथा इन वर्गों के आरक्षण के हक के प्रति कभी गंभीर व ईमानदार नहीं रही है।

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