हनुमान दलित थे कल भीलवाड़ा में एक “हनुमान”को घोड़ी नहीं चढ़ने दिया गया

जब देखूं बन्ने री लाल पीली अँखियाँ …!

दलित दूल्हों का घोड़ी पर बैठकर बिन्दौली निकालना राजपूत समाज के युवाओं को क्यों नागवार गुजरता है,यह मुझे आज तक समझ में नहीं आया ?

आखिर जब पशु प्रजाति की घोड़ी को कोई ऑब्जेक्शन नहीं है तो मानव प्रजाति की किसी जाति को इससे आपत्ति क्यों होनी चाहिये ,यह एक अनुत्तरित प्रश्न है ,जिसका जवाब क्षत्रिय समाज सहित हर उस समाज को देना चाहिए ,जिनको दलित दूल्हों की घुड़चढ़ी से तकलीफ है ।

ताज़ा घटनाक्रम भीलवाड़ा जिले के माण्डल इलाके के करेड़ा थाना क्षेत्र के बटेरी गांव का है,जहां 27 नवम्बर की रात को एक दलित दूल्हे दिनेश सालवी की बिन्दौली को रोका गया और बाद में पुलिस संरक्षण में बिन्दौली निकालनी पड़ी ।

दूल्हे के भाई मदन लाल सालवी ने बताया कि पूर्व में भी उनके गांव में इस प्रकार की घटना कुछ ही माह पहले हो चुकी है,इसलिए उन्होंने ऐहतियात कल ही उपखण्ड अधिकारी व थानाधिकारी करेड़ा को लिखित सूचना दे दी थी कि 27 नवम्बर की शाम निकलने वाली बिन्दौली को रोका जा सकता है,अतः पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाये।

करेड़ा पुलिस की एक छोटी टुकड़ी आज गांव में मौजूद भी थी,पर जब दलित दूल्हे की बिन्दौली शुरू हुई तो राजपूत युवाओं ने आपत्ति जता दी, माहौल बिगड़ने की आशंका के चलते पुलिस ने तुरंत पर्याप्त जाप्ता बुला लिया तथा पुलिसिया संगीनों के साये में दलित दूल्हे की घोड़ी पर बिन्दौली शांतिपूर्ण ढंग से निकल गई, मगर सवाल यही है कि किसी भी समुदाय को दलित दूल्हे की घुड़सवारी से दिक्कत क्या है ?

अकसर दलित समुदाय यह पूछता है कि -” माना कि गाय तुम्हारी माता है ,पर घोड़ी से क्या नाता है”?

चुनाव के इस वक्त में भी दलितों की हालत यह है,जबकि इनके वोट भी चाहिये होते है,अभी भी वोट लेने और सौट (लट्ठ) देने के इच्छुक है तो यह सवाल स्वाभाविक है कि आने वाले वक्त में दलितों का इस इलाके में कहीं जीना ही दूभर तो नहीं हो जाएगा ?

लठैत ओबीसी के जुल्मों से पहले से ही तंग इस इलाके के दलित अब साक्षात सामन्तशाही के सबूत बन्नों की लाल पीली होती अँखियों से आतंकित होने लगे है,यह तो भला हो कि एससी एसटी एक्ट मौजूद है वरना इसी घोड़ी के पैरों तले दलित दूल्हे कुचल दिये जायेंगे और उनकी कहीं भी कोई सुनवाई नहीं हो सकेगी ।

अब वक्त है कि मनुवाद,पूंजीवाद और सामन्तवाद सबको अस्वीकार कर दिया जाना चाहिये ,लोकतंत्र में वैसे भी इन वादों के लिए कोई जगह नहीं होती है, इसलिए यह आवश्यक है कि अब इस घृणित पाशविक जातिवाद को बर्बाद हो जाना चाहिये।

दलित आदिवासी नौजवानों को अब सिर्फ लोकशाही पसन्द है ,वे सामन्तशाही नहीं चाहते है,उन्हें किसी की दया पर नहीं, अपने अधिकारों के साथ सम्पूर्ण स्वाभिमान से जीना अच्छा लगता है ।

– भंवर मेघवंशी
( प्रदेश संयोजक -दलित आदिवासी एवं घुमन्तू अधिकार अभियान राजस्थान “डगर”)

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