स्त्री फ़िल्म समीक्षा:महिला के चुड़ैल होने का कंसेप्ट ही समाज पर तमाचा है!

अवधेश पारीक

स्त्री : समाज में महिलाओं के प्रति नज़रिया बदलेगा तो सारे भूत अपने आप गायब हो जाएंगे.
हम आज उस समय में पहुंच चुके हैं जहां हम समानता, डिजिटलाइजेशन, मॉडर्न होने की बात करते हैं लेकिन असलियत से अगर रूबरू होना चाहे तो सच ये है कि एक छोटी से बात को समझाने के लिए हमारे देश में फ़िल्म बनानी पड़ती है।
जी हां, स्त्री फ़िल्म रिलीज हुई है, फ़िल्म का जॉनर हॉरर-कॉमेडी है। अपने जॉनर के हिसाब से फ़िल्म काफी सटीक बैठती है और बीच में कहीं-कहीं सरकार और सिस्टम पर काफी अच्छे तंज भी कसती है।
जड़ों में बैठे पुरूष प्रधान समाज में एक महिला जीते जी अपने सम्मान और इज्ज़त पाने की खोखली उम्मीद में मर जाती है उसके बाद वो चुड़ैल बनकर भी उसी इज्जत की लड़ाई लड़ती है। चुड़ैल वाला कॉन्सेप्ट हमारे ऊपर एक तमाचा है।
महिला के पेशे से उसको पूरी ज़िन्दगी और मरने के बाद भी आंका जाता है, लेकिन पुरुषों के मामले में ये बात बड़ी ही विरोधाभासी है, जो कि शर्मनाक है। फ़िल्म देखकर आइए राजकुमार राव काफी हंसाते हैं, साथ में अंदर छुपी बात पर भी चिंतन कीजिए।

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