किसान मंगलाराम मेघवाल ने की आत्महत्या ये उम्र नहीं थी जाने की!

ये कोई उम्र नहीं थी
पर वो मौत को गले लगाकर दुनिया से चला गया
नागौर में तीस साल का मंगलाराम मेघवाल किसान था। उसके माथे पर कर्ज था।उस घर में रुदन और विलाप है।लेकिन इस शोकाकुल आवाज को कौन सुनेगा ?
पड़ोस में मध्य प्रदेश है। वहां सीहोर जिले में सरदार कहला के पास बैल नहीं थे।वो छोटा किसान है।उसने जुताई की तो दोनों बेटियां राधिका [14 ] और कुंती [11 ] बैल की जगह जुताई करती दिखी।मध्य प्रदेश में बैल की जगह इंसान के जुतने की यह पहली घटना नहीं थी। इसके पहले देवास के एक गांव में धूल सिंह बैल के स्थान पर अपने बेटे के साथ खेत जोतता हुआ दिखा। मध्य प्रदेश को उन्नत खेती में पुरस्कार भी मिले है। रिपोर्टे कहती है मंदसौर आंदोलन के बाद से अब तक तीस किसान मौत का दामन थाम चुके है।
यकीन नहीं होता किसान तुम्हारे विलाप पर।अगर खेती घाटे का सौदा है तो मध्य प्रदेश में विधायक और सांसद चुने गए माननीय सभासदो के खाते बही इसे लाभ का काम क्यों बता रहे है ? टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक ,शिवराज सिंह चौहान की केबिनेट के कम से कम 18 सदस्य कहते है खेती किसानी बहुत लाभ का काम है।इन मंत्रियो के 2013 में दाखिल चुनावी शपथ पत्र में काश्तकारी को बड़ी आमदनी का जरिया बताया गया है।केबिनट के बीस में 18 मंत्रियो ने खेती को अपनी आय का प्रमुख साधन बताया है। इनमे एक मंत्री ने खेती से सालाना 13 लाख की आमदनी बताया। रिपोर्टर ने पूछा ‘सर आप खेती में कामयाबी के ये नुस्खे किसानो को क्यों नहीं बताते हो ‘ .ये सवाल उन्हें अच्छा नहीं लगा। क्योकि आजकल सवाल पूछा जाना ठीक नही समझा नहीं जाता।
मंत्री जी बोले ‘ तू आ जाना ,बता दूंगा ‘ / लगता है जमीन खुद भेदभाव् बरत रही है। उसी धरती पर मंत्री खेती करते है ,उसी पर धूल सिंह जैसे किसान।एक काश्तकार के मजा है ,एक के लिए खेती सजा है।
महाराष्ट्र में इस साल जून तक 1307 किसान अपनी जान दे चुके है। यानि सात किसान रोज मौत को गले लगा रहे है। मौजूदा संसद के 27 प्रतिशत सदस्यों ने खेती को अपना मुख्य पेशा बताया है। मगर जब गत 25 जुलाई को संसद में सूखे पर चर्चा हुई तो 533 में से महज 61 सांसद ही चर्चा में शिरकत के लिए वक्त निकाल पाए।
खेती घाटे का सौदा होती तो दिल्ली के आसपास 2700 फार्म हाउस नहीं होते। इन फार्म हॉउस में खेती रात को शुरू होती है। वीकेंड या सप्ताहांत में तो खेती सांझ ढले से लेकर भोर तक चलती है। वैसे तो इनमे कोई काश्तकार नेता है ,कोई बिल्डर है ,कोई उद्यमी है और कोई कारोबारी है। लेकिन सिर्फ खेती किसानी से आध्यात्मिक लगाव की वजह से ही कृषि को समर्पित है।इनमे कुछ के बेटे सियासत में है। विदेश की डिग्री ,बी एम डब्लू गाड़ी ,फेब का कुर्ता ,राडो वाच ,उम्मदा जूते। सब कुछ विदेशी। पर चुनाव क्षेत्र देशी चाहिए।
ऐतबार करे तो गाँधी भी किसान थे। गाँधी जब 1927 में कर्णाटक गए तो एक संस्थान में ठहरे। संस्थान की मेहमान पुस्तिका में गाँधी ने खुद को ‘साबरमती का एक किसान ‘ कह कर प्रस्तुत किया।जब चम्पारण में किसानो की दारुण दशा की खबर आई ,काश्तकारों ने साबरमती के इस किसान को अपने बीच पाया।
अब मंगलाराम के गमजदा परिवार को कौन सांत्वना देगा ? सादर

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