क्या बीजेपी के सोशल इंजीनियर साबित हो पाएंगे किरोड़ी और मदनलाल?

-अवधेश पारीक

राजस्थान विधानसभा चुनावों को लेकर रणभेरी बज चुकी है, सभी विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी लहर चरम पर है. ऐसे में पार्टियों ने अपनी-अपनी सोशल इंजीनियरिंग तकनीक को आजमाना शुरू कर दिया है. वसुंधरा राजे को लेकर जहां प्रदेश में एक एंटी इंकमबेंसी फैक्टर है वहीं कांग्रेस जीत के लिए हरसंभव तरीके की तलाश में जुटी है।
देश के तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की जीत या हार अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों की हवा तय करेगी, ऐसे में किसी भी पार्टी के लिए यह विधानसभा चुनाव किसी फाइनल से पहले होने वाले सेमीफाइनल से कम नहीं होगा।
राजस्थान की राजनीति में जातिगत आधार पर वोटों की गोलबंदी हर चुनावों से पहले होती है, जिसको लेकर हर बार चुनावों में अलग-अलग नेता अपने समुदाय के लोगों को एकजुट कर वोट काटने का दावा करते हैं। सोशल इंजीनियरिंग कर वोटों का ध्रुवीकरण करने में बीजेपी को महारथ हासिल है। वहीं इस बार बागियों से बचने के लिए बीजेपी अपने दो सोशल इंजीनियर के भरोसे चुनाव लड़ रही है।
नए मेहमानों की लिस्ट बहुत कुछ कहती है-
कुछ समय पहले उपचुनावों की हार के बाद बीजेपी ने कमर कस ली है, जहां बीजेपी ने पार्टी में किरोड़ीलाल मीणा, मदनलाल सैनी, भूपेन्द्र यादव जैसे नेताओं का पद ऊंचा किया गया वहीं कुछ नेताओं की घर वापसी करवाई गई। मीणा और सैनी समाज से आने वाले इन नेताओं को देखकर पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग का अंदाजा लगाया जा सकता है।
कौन है किरोड़ीलाल मीणा-
डॉ किरोड़ी लाल मीणा की नाराजगी के बाद घर वापसी हुई फिर उन्हें राज्यसभा भेज दिया गया. मौजूदा समय की बात करें तो किरोड़ी को मीणा समाज का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। वसुंधरा राजे के उदय से पहले उनकी राजनीति सक्रिय रही है।

राजस्थान में अनुसूचित जाति से करीब 14% लोग आते हैं. इनमें से आधी जनसंख्या अकेले मीणा समाज से आती है. मीणा जाति के लोगों को प्रदेश की 45 से ज्यादा सीटों पर चुनावों में निर्णायक माना जाता है. कांग्रेस के पारंपरिक वोटबैंक मीणा को किरोड़ी अपने जादू से ही अब बीजेपी के खेमे में डाल सकते हैं।

मदनलाल सैनी पर दिखाया था अचानक भरोसा-
मदन लाल सैनी जिनका नाम भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए सामने आने से पहले काफी लोगों ने सुना तक नहीं था। यहां तक कि खुद उन्हें और उनके घरवालों तक को इस बात का पता नहीं था।
सैनी को अचानक आगे लाने के पीछे राजस्थान की ओबीसी जनसंख्या को टारगेट करना है जो कि 50% से ऊपर मानी जाती है। ओबीसी में माली-सैनी समाज से करीब 6% हिस्सा आता है जो 35 विधानसभा सीटों पर खेल बना और बिगाड़ सकते हैं।

सोशल इंजीनियरिंग के गुणा-भाग से क्या बन पाएगा काम ?
खैर, बीजेपी ने चुनाव आते देख एक बार फिर ओबीसी और मीणा समुदाय के लोगों पर नजर बना दी है लेकिन देखना यह होगा कि पार्टी की यह कोशिश कितनी साकार होती है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनके लेख छपते रहते हैं)

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