क्या अहंकार और फ़र्ज़ी शक्ति प्रदर्शन का पर्याय बन चुके हैं धार्मिक जुलूस!

भारत के कई शहरों और क़स्बों में सांप्रदायिक तनाव की बहुत आम वजह “धार्मिक जुलूस” जुलूस का मार्ग और जुलूस में लगाए जाने वाले नारे बनते हैं ।

पहले धार्मिक जुलूस सिर्फ़ धार्मिक होते थे लेकिन अब धार्मिक जुलूस धार्मिक कम और राजनीतिक व साम्प्रदायिक ज़्यादा होते हैं, धार्मिक जुलूस अब “शौर्य” “अहंकार” और “शक्ति प्रदर्शन” का प्रतीक बनते जा रहे हैं, जब तक दूसरे धर्म पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ न की जाएँ और भड़काऊ नारे न लगाए जाएँ अहँकार की तृप्ति नहीं होती है ।

क्या भारत के विभिन्न सम्प्रदाय के लोगों को इस पर गंभीरता से नहीं सोचना चाहिए…???
साम्प्रदायिकता से निजात के लिए विभिन्न सम्प्रदाय के लोगों को सर जोड़ कर बैठना होगा, अकेले प्रशासन और क़ानून व्यवस्था इस मसअले को हल करने के लिए काफ़ी नहीं है ।

ये फ़ैसला तुमको करना है ए शहर-ए-परीशाँ के लोगों
बरबाद नशेमन हो जाए या रहे आबाद ये काशाना

मुत्तलिब मिर्ज़ा

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