किसानों का थोड़ा क़र्ज़ क्या माफ़ हो गया शहरी मिडिल क्लास अर्थशास्त्र का ज्ञान देने लगा

देश के विनाशकारी झुंड आरएसएस का तो इतिहास रहा है कि वह हमेशा केंद्र में चाहे 1990 हो या फिर 2008 या अब 2018 तीनों ही वक्त किसानों के कर्जा माफ़ी के खिलाफ रहा है!

शहरी मिडिल क्लास का जोड़-घटा-गुणा-भाग सिर्फ किसान के कर्जा-माफ़ी तक ही क्यों ?

✍✍✍… किसानों की कर्ज माफ़ी की घोषणा के बाद ही पता चला कि हमारे देश में तो एक से एक धुरंधर अर्थशास्त्री पड़ें हैं! कर्जा माफ़ी की घोषणा होने से पहले पूरा बही-खाता बता दिया कि इससे देश पर कितना बोझ पड़ेगा, मिडिल क्लास जो टैक्स भरता हैं उसकी कमाई से इस बोझ भरपाई की जाएगी। इन तथाकथित अर्थशास्त्रियों ने और भी न जाने कई तरह की कैलकुलेशन निकाली!

⚫️ व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर इस शहरी मिडिल क्लास के किसी अर्थशास्त्री ने बहरावी कक्षा की शामली-गामली नाम की दो सहेलियों की आपसी वार्तालाप का एक मेसेज बना कर वाइरल किया है।

जिसमें शामली अपनी सहेली गामली से कहती है कि तू बिलकुल भी पढाई नहीं करती है
इस पर गामली कहती है – छोड़ न यार ! पास हुए तो फिर 12 , 13 ,14 , 15वीं की परीक्षा दो और फिर नौकरी वाला पति! शामली – तो ? बढ़िया तो है! गामली – क्या बढ़िया है ? 12 घंटों की नौकरी और तनख्वाह 25-30 हजार! फिर मुंबई-पूना जैसे बड़े शहरों में रहने जाओ। वहां किराए का घर होगा! जिसमें आधी तनख्वाह चली जाएगी। फिर अपना खुद का घर चाहिए तो लोन लेकर 4-5 मंजिल ऊपर घर लो और एक गुफा जैसे बंद घर में रहो। लोन चुकाने में 15-20 साल लगेंगे और बड़ी किल्लत में गृहस्थी चलेगी। न त्यौहार में छुट्टी न गर्मी में। सदा बीमारी का घर। स्वस्थ रहना हो तो आर्गेनिक के नाम पर 3-4 गुना कीमत देकर सामान खरीदों। और फाईनली वो नौकरी करने वाला नौकर ही तो होगा। तू सारा जोड़ घटा गुणा भाग कर ले , तेरी समझ में आ जायेगा। और अगर परीक्षा में फ़ैल हो गई तो किसी खेती किसानी वाले किसान से ब्याह दी जाउंगी। जीवन थोडा तकलीफदेह तो होगा लेकिन वो खुद का सच्चा मालिक होगा और मैं होउंगी मालकिन। पैसे कम ज्यादा होंगे लेकिन सारे अपने होंगे , कोई टैक्स का लफड़ा नहीं। सारा कुछ आर्गेनिक उपजाएंगे और वही खाएंगे। बीमारी की चिंता फ़िक्र ही नहीं , और सबसे बड़ी बात कि , पति 24 घंटे अपने साथ ही रहेगा। और सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात ” हमारा सारा लोन सरकार माफ़ कर देगी “। शामली – फिर तो मैं भी फ़ैल ही हो जाउंगी रे…..

अब ये जो मेसेज है वह किसी शहरी का बनाया हुआ! इसमें इस शहरी के अनुसार तो देहात और खेती-किसान की जिन्दगी थोड़ी बहुत तकलीफदेह बाकी सब मौज है !

⚫️ इसके अनुसार तो किसान के हारी-बीमारी, स्कूल-कॉलेज की शिक्षा आदि सब का कोई खर्चा नहीं है।

⚫️ इस शहरी ने जेठ की गर्मी और पोह का पाला नहीं देखा तभी शायद थोड़ी तकलीफदेह कह गया।

⚫️ इसने तो वही कर दी कि एक गोरी मेम भारत भ्रमण पर आई , वो एक गाँव से गुजर रही थी तो रास्ते में उसने देखा कि एक औरत गोबर पाथ रही थी। उसने पूछा कि ये क्या कर रही है ? उसे बताया कि ये उपलें बना रही है जो जलाने के काम आते हैं। गोरी मेम बोली – तो क्या ये काम ये औरत अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर नहीं कर सकती थी ? यही काम इस शहरी मिडिल क्लास के अर्थशास्त्री ने इस सन्देश में किया कि किसान परिवार की जिन्दगी थोड़ी तकलीफदेह है।

⚫️ अर्थशास्त्री ने एक जुमला और लिखा है कि पति हमेशा साथ रहेगा! इसकी इस बात से इसी की जमात का तो शायद कोई बहक जायेगा पर इसे पता नहीं कि किसानी में कितना जान का जोखिम है! ये मिडिल क्लास शहरी जो सवेरे नो बजे घर से निकलते हैं और शाम को पांच-छह बजे घर वापिस आ जाते हैं , मेरे ख्याल से इनकी जान का जोखिम सिर्फ इतना ही है कि कहीं एक्सीडेंट में जान चली जाए या घायल हो जाए , इसके अलावा इनकी जान को कोई बड़ा जोखिम नहीं, पर एक किसान जिसका दिन खेत में कटता है और रात भी, जहाँ हर तरह के आवारा पशु से जान को जोखिम, खेत में पानी लगाते वक्त सांप-बिच्छू जैसे जिनावारों का खतरा।

⚫️ इन शहरियों की किसी दुर्घटना में जान चली जाए तो इनके पास तरह-तरह की बीमा पोलिसी होती हैं जिनसे इनके परिवार को आर्थिक भरपाई हो जाती है, पर एक किसान की खेत में काम करते वक्त किसी जिनावर के काटने से या किसी मशीन कि वजह से मौत हो जाए तो उसके परिवार को सरकार की तरफ से ? (घंटा) सहायता हो, यदि होगी भी तो नाममात्र! और जो ये शहरी मिडिल क्लास वाले इन फ्लैटो में रात को अँधेरे में एक कमरे से दुसरे में जाते वक्त भी डरते हैं वो एक रात जंगल में काट कर दिखाएं फिर समझ आ आएगा कि कितनी तकलीफदेह या आरामदायक है किसान की जिन्दगी!

⚫️ इस मिडिल क्लास अर्थशास्त्री ने किसान के कर्ज माफ़ी को बहुत बड़ी बात मान लिया पर इसने कभी महंगाई का हिसाब नहीं लगाया कि क्या जिस औसत से तुम्हारी तनख्वाह बढती क्या उस औसत से किसान की ऊपज के भाव बढ़ते हैं ? यदि ये हिसाब लगाया होता तो सोशल मीडिया पर ये लोग इतना हो-हल्ला न करते!

✍✍✍… 1990 में पहली बार देश में किसान का कर्ज माफ़ी हुआ, उसके बाद 2008-09 में, और इस अंतराल के बाद अब 2017-18 में कुछ राज्यों ने किसानों को हलकी रहत देने की घोषणा की तो इस मिडिल क्लास शहरी ने कागज-कलम उठा कर किसान के कर्ज-माफ़ी से देश पर पड़ने वाले बोझ का गणित फला दिया! पर इसने इतने सालों से किसानों को उसके ऊपज का उचित भाव न मिलने से जो हानि हुई उसका गणित नहीं फलाया ?

इसने ये नहीं फलाया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से जो किसान को लाभ होना चाहिए था क्या वो हुआ ?

वरिष्ठ पत्रकार और किसान कार्यकर्ता पी.साईनाथ के अनुसार महाराष्ट्र के एक जिले में फसल बीमा योजना के तहत कुल 173 करोड़ रूपये रिलायंस इंश्योरेंस को दिए गए। फसल बर्बाद होने पर रिलायंस ने किसानों को सिर्फ 30 करोड़ रूपये का भुगतान किया और बिना एक पैसा लगाए 143 करोड़ रूपये का मुनाफा कमा लिया। ये मिडिल क्लास शहरी कभी इस रकम का भी हिसाब लगा दे कि इससे किसान को क्या मिला ? और जिन कंपनियों में ये मिडिल क्लास जॉब कर रहा है वह किसान को मिलने वाले इस बीमा से कितना कमा गया ? पर ये लोग ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि इनको ‘ किसान विरोधी ‘ प्रोपगंडा के तहत सोशल मीडिया पर किसानों की कर्ज-माफ़ी के विरुद्ध प्रचार करना है कि कहीं यह मुद्दा इनकी चहेती केंद्र सरकार तक न पहुँच जाए और उसके गले की फास बन जाए! और संघी सरकार का तो इतिहास रहा है कि वह हमेशा केंद्र में चाहे 1990 हो या फिर 2008 दोनों ही वक्त किसानों के कर्जा माफ़ी के खिलाफ रही है! बात ये है कि किसान को मिलने वाली हर राहत और स्कीम से घुमा-फिर कर आखिर इस मिडिल क्लास शहरी लोगों के ‘ कोर्पोरेट घरानों ‘ जहाँ ये जॉब करते हैं उनको ही मुनाफा होता है!

जैसा कि पी.साईनाथ ने कहा है कि राफेल से भी बड़ा घोटाला है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना! मैं साईनाथ कि इस बात से बिलकुल सहमत हूँ! जिस हिसाब से एक जिले का ये हाल है यदि हम पुरे देश का देखें तो यह वाक्य ही में राफेल से बड़ा घोटाला है, पर कोई भी पार्टी इसको प्रमुखता से नहीं उठा रही। विपक्ष खासकर कांग्रेस का पूरा जोर राफेल वाले मुद्दे पर ही है। वह शायद इसलिए कि इन्हें राफेल डील के जरिये ये अपने पुराने बोफोर्स हो या अगस्ता डील , दोनों का दाग दोना चाहती होगी ! इसलिए शायद प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को ये लोग प्रमुखता से नहीं उठा रहे ! खैर , मेरा तो सिर्फ इस शहरी मिडिल क्लास के अर्थशास्त्रियों से कहना है कि एक बार इन सब पॉइंट्स पर भी अपना जोड़-घटा-गुणा-भाग करके देखना।

-Mahaveer prasad

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