वो भी क्या दिन थे !!!

वो भी क्या दिन थे,
वो साथ – साथ स्कूल जाना, साथ घूमना, साथ खाना
हँसी ठिठोली करना, हंसना और हंसाना!
ना फिक्र जात – धर्म की, ना जिक्र रूप – रंग का
बस इंतजार होता था तो किसी की चूक का !
जम कर उसके मजें उड़ाना, फ़िर मिल कर उसे मनाना!

वो भी क्या दिन थे!…… ना!!

इस बढ़ती उम्र के साथ कितने बदल गए हैं हम
धर्म की बंदिशें, जात की दीवार में बंध गए हैं हम
हंसी ठिठोली और मजाक तो दूर, अब तो सोच समझ कर बात भी करनी पड़ती हैं!
क्या पता किस अस्था में किसकी आत्मा बस्ती हैं

वो भी क्या दिन थे!!… ना!!

डर लगता है कुछ कहने से, पता नहीं किस बात किसकी आस्था आहत हो जाएं
दोस्ती की मिठास में… कही करवाहट हो जाएं
याद आती हैं, बचपन की वो यारी
होली, ईद, क्रिस्मस की वो संग में तैयारी

वो भी क्या दिन थे!…

वक्त की करवट इंसान को इंसान से कितना दूर कर देता है
धर्म ऑर जात के साथ चलने को मजबूर कर देता हैं!
मुझे मालूम हैं, एक ऐसा दिन भी आएगा
इंसान को सिर्फ़ इंसानियत से पहचाना जाएगा !!!

-अभिजीत तिवारी

2 thoughts on “वो भी क्या दिन थे !!!

  1. वाह वो भी क्या दिन थे। बधाई तिवारी जी। कविता की अंतिम पंक्तियाँ लाजवाब।
    वक्त की करवट इंसान को इंसान से कितना दूर कर देता है
    धर्म और जात के साथ चलने को मजबूर कर देता हैं!
    मुझे मालूम हैं, एक ऐसा दिन भी आएगा
    इंसान को सिर्फ़ इंसानियत से पहचाना जाएगा !!!

    1. बहुत धन्यवाद तेजस भाई इसी तरह जनमानस से जुड़े रहें और प्रेरित करते रहें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *