भारतीय अर्थव्यवस्था की दिलचस्प कहानी

-खान शाहीन

भारत एक समय मे सोने की चिडिया कहलाता था। आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन के अनुसार पहली सदी से लेकर दसवीं सदी तक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। पहली सदी में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) विश्व के कुल जीडीपी का 32.9% था।
पन्द्रहवी-सोलहवी सदी मे स्पेन के लोगो ने अमेरिका की खोज के बाद अमेरिका मे लूट-पाट का एक भयानक ताण्डव रचा। अमेरिका से काफी मात्रा मे सोना-चाँदी लूटकर स्वयं के देश लाया गया।इससे यूरोप मे हिंदुस्तान के सामान को खरीदने लायक सम्पन्नता आ गई। पन्द्रहवी सदी के मध्य तक आते आते पुर्तगाल के एक नाविक ने जिसका नाम वास्कोडिगामा था, समुद्री रास्ते से भारत आने का मार्ग ढ़ूँढ निकाला।और यूरोप के व्यापारी ज़्यादा से ज़्यादा तादाद मे हिंदुस्तान आने लगे। अठारहवी सदी के पूर्वाद्ध तक अंग्रेज कम्पनी हिंदुस्तान के साथ व्यापार करने वाली सबसे बड़ी यूरोपीय कम्पनी बन गई। लेकिन इसका भारत के उद्योगों पर गहरा प्रभाव पड़ा।1757 मे प्लासी की लड़ाई के बाद बंगाल का लगभग सारा कपड़ा उद्योग नष्ट हो गया जो कभी कपड़ा बनकर यूरोप के बाजारों मे जाता था।
उन्नीसवी सदी मे यूरोप मे विशेषकर इंग्लैड मे औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हुआ।अब वह मशीनों से सामान बनाया जाने लगा ऐसी स्थिति मे हाथ से बनी वस्तुओ की मांग बाजार मे कम होने लगी परिणाम यह हुआ की हाथ के कारीगर , हस्तशिल्पी अन्य लोग बेरोजगार हो गए और भारत के अनेक क्षेत्रो मे हस्तशिल्पी भी खत्म हो गयी।
इस तरह भारत मे भी औद्योगीकरण प्रारंभ हो गया जो की 19वीं सदी से प्रारम्भ हुआ था।
आज़ादी के बाद से भारत का झुकाव समाजवादी प्रणाली की ओर रहा। सार्वजनिक उद्योगों तथा केंद्रीय आयोजन को बढ़ावा दिया गया। बीसवीं शताब्दी में सोवियत संघ के साथ साथ भारत में भी इस प्रणाली का अंत हो गया। 1991 में भारत को भीषण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा जिसके फलस्वरूप भारत को अपना सोना तक गिरवी रखना पड़ा। उसके बाद नरसिंह राव की सरकार ने वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देशन में आर्थिक सुधारों की लंबी कवायद शुरु की जिसके बाद धीरे धीरे भारत विदेशी पूँजी निवेश का आकर्षण बना और अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी बना।
अप्रत्याशित रूप से वर्ष 2003 में भारत ने 8.4 प्रतिशत की विकास दर प्राप्त की जो दुनिया की अर्थव्यवस्था में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था का एक संकेत समझा गया। यही नहीं 2005-06 और 2007-08 के बीच लगातार तीन वर्षों तक 9 प्रतिशत से अधिक की अभूतपूर्व विकास दर प्राप्त की। कुल मिलाकर 2004-05 से 2011-12 के दौरान भारत की वार्षिक विकास दर औसतन 8.3 प्रतिशत रही किंतु वैश्विक मंदी की मार के चलते 2012-13 और 2013-14 में 4.6 प्रतिशत की औसत पर पहुंच गई।2016 मे भारतीय सरकार ने अर्थव्यवस्था मे सुधार लाने के लिए नोटबन्दी की प्रक्रिया अपनायी लेकिन यह प्रक्रिया विकास की दर को बढ़ाएगी यह अब सुनिश्चित नही है।
बदलते भारत मे अभी भी बहुत कुछ है जो नही बदला।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *