हमारे घर आंगन में फुदकने वाली गौरेया अब नज़र क्यों नहीं आती!

घर आंगन को अपनी चीं चीं से चहकाने वाली सोनी चिरैया अब दिखाई नहीं देती। कभी इंसान के घरों में बसेरा करने वाली गोरैया, जो हमेशा हमारे घर आंगन में फुदकती थी आज विलुप्ति के कगार पर है।

लोगों की जीवन शैली में बदलाव, घरों की बनावट में तब्दीली, खेती के तरीकों में परिवर्तन और मोबाइल टावरों की बढ़ती संख्या जैसे मुख्य कारक गोरैया के विलुप्त होने के लिए जिम्मेदार है।

गोरैया के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाने के लिए प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को “विश्व गोरैया दिवस” मनाया जाता है। इसकी शुरुआत सन् 2010 से हुई। “नेचर फोरेवर सोसायटी” एवं “इकोसिस एक्शन फाउंडेशन” के मिले जुले प्रयास के कारण मनाया जाता है।

गौरतलब है कि महाराष्ट्र के नासिक निवासी मोहम्मद दिलावर ने घरेलू गोरैया पक्षियों की सहायता हेतु नेचर फोरेवर सोसायटी की स्थापना की थी। इनके सराहनीय कार्य को देखते हुए प्रसिद्ध मैग्जीन ” टाईम” ने 2008 में इन्हें ” हिरोज आॅफ द एनवायरनमेंट ” नाम दिया। विश्व गोरैया दिवस मनाने की योजना भी मोहम्मद दिलावर ने अपने कार्यालय के एक सामान्य चर्चा के दौरान बनाई थी।

गोरैया एक ऐसी पक्षी है जो दुनिया में सबसे ज्यादा पाई जाती है। यह न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, नार्थ अमेरिका, यूरोप सहित पूरे भारत में पाई जाती है।कहते हैं कि यह पक्षी जान बचाने के लिए पानी के अंदर तैरने में सक्षम है। 14 से 16सेंटीमीटर लम्बाई और25से 32 ग्राम वजन वाली यह चिड़ैया अपने झुंड में ही रहती है और भोजन की तलाश में अधिकतर दो मील की दूरी तय करती है।

“भारत के बर्ड मैन ” के नाम से प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक “डॉ० सालीम मोईजउद्दीन अब्दुल अली” ने अपनी आत्मकथा “फाॅल आॅफ ए स्पैरो ” नामक पुस्तक में लिखा है कि इस पक्षी से जुड़ी एक घटना हमारे जीवन में टर्निंग प्वाइंट का काम कर गई और उसने पक्षियों के अध्ययन को अपनी पूरी जिंदगी का लक्ष्य बना लिया ।
दरअसल डॉ०सालीम खुद एक बड़े शिकारी बनना चाहते थे। उन्होंने एक बार एक पक्षी को मार गिराया। जब वह उसके करीब गया तो उसके गर्दन पर पीले रंग का एक निशान देखा। वह उस अजनबी पक्षी को अपने चचा अमीर उद्दीन के पास ले गया परंतु वह भी इसे पहचानने में असफल रहे। फलतः उनके चाचा उसे उस पक्षी सहित “बाॅम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी” के सचिव “डब्ल्यू० एस०मिलाॅर्ड” के पास भेज दिया। मिलार्ड छोटे सालीम की इस जिज्ञासा से खुश हुए। उन्होंने न केवल सालिम को उस पक्षी की पहचान सोनकंठी गोरैया के रूप में बताई साथ ही उनको भारत के दूसरे विशिष्ट पक्षी भी दिखाया।इसके पश्चात उन्होंने सालिम को “काॅमन बर्ड्स आॅफ मुम्बई” नाम की एक किताब भी दी।फिर तो उनकी रुचि बढ़ती ही गई और शिकार में रूचि रखने वाले सलीम एक बड़े पक्षी वैज्ञानिक साबित हुए।

कहते हैं चालीस प्रतिशत व्यस्क गोरैया हर साल मर रही है। ब्रिटेन की “रॉयल सोसायटी आॅफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स ” ने भारत सहित विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं के अध्ययन के आधार पर गोरैया को रेड लिस्ट में शामिल किया है।

सन 2012में दिल्ली ने इसे राज्य पक्षी घोषित किया तो सन् 2013 में बिहार में इसे राज्य पक्षी बनाया। भारतीय डाक विभाग ने 9 जुलाई 2010को गोरैया पर डाक टिकट जारी किया। दिवसों के आयोजन, राज्य पक्षी बनाने और टिकट जारी करने भर से काम नहीं चलेगा। हमें अपने छतों पर दाने छिड़कने, बर्तनों में साफ पानी रखना होगा। पेड़ पौधे लगाने होंगे ताकि वह उसे अपना आश्रय बना सके। विद्यालयों में बच्चों के बीच इनकी जागरूकता फैलाई जाए। इस तरह फिर हम अपने आंगन में चहकती फुदकती सोनी चिड़ैया को देख पाएँगे।

-मंजर आलम, बिहार

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