टप्पल गांव के बाहर खड़ी भीड़ को न्याय नहीं कानून हाथ में चाहिए!

अलीगढ़ से रिपोर्टिंग करके लौट रही हूँ. टप्पल गाँव में फ़रीदाबाद, गुरूग्राम और दिल्ली से भर-भर कर गाड़ियाँ जा रही हैं. गाँव में हज़ारों की संख्या में सीआरपीएफ और पुलिस वाले इन बाहरी युवकों को खदेड़ रहे हैं. दंगे की स्थिति हो गई.

मुँह पर भगवा कपड़ा बांधे किसी विशेष समुदाय से बदला लेने की बात करते हुए जय श्री राम के नारे लगा रहे हैं. कई सेना के जवानों से ही भिड़ जा रहे हैं. इनकी गाड़ियों को हाईवे पर ही रोका भी जा रहा है. इलाक़े में कर्फ़्यू जैसे हालात हैं.

ट्विंकल के घर के सामने शोक सभा में कोई टीका लगाए हुए हिंदू आता है और सबको किसी अलग भाषा में कुछ समझा रहा है. अंदर ट्विंकल के पापा मुझसे कह रहे हैं कि हम इन लोगों की बातों में नहीं आ रहे हैं. ट्विंकल की माँ दस दिन से खाना छोड़े बैठी हैं.

माता-पिता चाहते हैं दोषियों को फाँसी की सज़ा हो. मुस्लिम परिवार भी यही कह रहे हैं कि दोषियों को फाँसी से भी ऊपर की सज़ा हो. वो हमारी भी बच्ची थी.

लेकिन बाहर से आए इन युवकों को सजा से ज्यादा कुछ और चाहिए. ये दंगा चाहते हैं. मैं एक दंगे की स्थिति से निकल आ रही हूं. मुझसे तीन बार पूछा गया कि अपनी आईडी कार्ड भगवा रुमाल बांधे युवक को दिखाऊं. क्यों? क्या वो पुलिस है? प्रशासन है? कौन है ये भीड़?

एक और जगह भीड़ से निकलकर एक युवक मुझसे रिपोर्टिंग ना करने और वीडियो ना बनाने की बात धमकी भरे लहजे में कहने आया. पास खड़े ग्रामीणों ने धमकाया तो माना. हजारों की संख्या में खड़ी पुलिस को देखकर भी इन्हें खौफ नहीं है. ये पत्रकारों को धमका रहे हैं कि किस तरह की पत्रकारिता करनी चाहिए.

ये रुमाल बांधे भीड़ ही अब पुलिस है, जज है, वकील है और यही अब न्याय करेगी.

(फोटो : इंटरनेट से लिया गया प्रतीकात्मक फोटो है)

-ज्योति यादव

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *