दो धर्मों की नफ़रत के बीच पनपने वाले सद्भाव से लोगों को परेशानी क्यों है!

सर्फ एक्सल के विज्ञापन के बाद से सोशल मीडिया पर जो गंद फैली है, उसकी जड़ में दोनों तरफ के धर्मांध पुरूषों की निकृष्ट मानसिकता है।

अगर एक बार के लिए इस मसले से धर्म और सांप्रदायिकता को अलग रख कर सोचा जाए तो साफ-साफ समझ आ रहा है कि इन पुरूषों के लिए महिलाएँ किसी ‘ट्राफी’ से कम नहीं जिसे दूसरी तरफ के लोगों से छीनकर ये लोग अपने आप को विजेता साबित करने में लगे हैं। ये लोग निर्लज्जता के इतने निचले स्तर पर पहुंच चुके हैं कि दूसरे धर्म की महिलाओं की अस्मिता को चोट पहुँचाकर इन्हें धार्मिक गर्व की अनुभूति होती है। यह सोच महिलाओं को एक ऐसी असुरक्षा की स्थिति में ला खड़ा करती है जहाँ दो धर्मों के बीच तनाव के माहौल में पहला आक्रमण महिला पर किया जाता है, उसकी शारीरिक और मानसिक अस्मिता पर चोट कर ये जाहिल अपना बदला पूरा करते हैं।

महिलाओं को ये लोग इतना मूर्ख समझते हैं कि कोई भी उन्हें बहला-फुसला लेगा और इसीलिए दो मजहबों के बीच की कटुता के भीतर पनपने वाले प्रेम के रिश्ते को देखकर इन अहंकारी संघियों और मुसंघियों को मानसिक आघात पहुँचता है। इनकी बेहुदा हरकतों को देखकर कभी-कभी लगता है कि इनकी लड़ाई धर्म की लड़ाई है ही नहीं, बल्कि स्त्रियों पर आधिपत्य की लड़ाई है, मानो कह रहे हों कि-“तुमने हमारी इतनी स्त्रियाँ चुराई हैं, अब हम तुम्हारी इतनी चुराऐंगें।”

यह सिर्फ साम्प्रदायिकता नहीं है, बल्कि मनोरोग है, मानसिक दिवालियापन है, वहशीयत है। दोनों तरफ की महिलाऐं अगर धर्म के नाम पर अपने पुरूष साथियों की इस घटिया मानसिकता को बढ़ावा दे रहीं हैं, तो वे अंततः अपनी अस्मिता पर ही हमला कर रही हैं। शर्म आनी चाहिये धर्म के नाम पर अपनी कुंठित मानसिकता का ऐसा नंगा नाच करने वालों को।

खुशबू शर्मा

(लेखिका जेएनयू दिल्ली में राजनीति विज्ञान की छात्रा हैं)

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