रेजीडेंट्स हड़ताल : फर्स्ट इंडिया न्यूज़ के शो “जवाब तो देना पड़ेगा” से जनमानस के कुछ सवाल !


किसी की संवेदनशीलता का पैमाना क्या टीवी स्टूडियो में बैठकर निर्धारित किया जा सकता है? सरकार के महज आश्वासनों के भरोसे पर क्या कोई टीवी चैनल उसके पीआर की भूमिका निभाते हुए एक घंटे बहस कर सकता है ? किसी टीवी चैनल का खुलेआम सरकार के दामन में बैठे होने का प्रदर्शन कितना जायज है ? जी हां, ऐसे कई सवाल हैं जो मीडिया की निष्पक्षता को शक के घेरे में ला खड़ा करते हैं। बहरहाल अब सीधा पॉइंट पर आते हैं।

राजस्थान के नंबर वन कहे जाने फर्स्ट इंडिया न्यूज़ चैनल के कार्यक्रम “जवाब तो देना पड़ेगा” के 4 दिसंबर के प्रसारण में बहस का मुद्दा था राजस्थान के रेजीडेंट्स डॉक्टरों की हड़ताल जिसे चैनल ने “हठताल” की संज्ञा दी।

बहस में रेजीडेंट्स के प्रतिनिधि रामचंद्र जांगू और अजीत बागड़ा को आमंत्रित किया गया, वहीं एक कानूनविद और एक सामाजिक कार्यकर्ता बुलाए गए. इसके अलावा बहस में खुद राजस्थान के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा मौजूद थे।

जैसा कि कार्यक्रम का नाम है जवाब देना पड़ेगा जिसमें यह स्पष्ट नहीं है कि जवाब किससे मांगा जाएगा, ठीक इस बहस में कुछ ऐसा ही देखने को मिला. रेजीडेंट्स एक ऐसे मंच पर पहुंचे जहां उनका पक्ष सरकार तक पहुंचाने वाला मीडिया सरकारी हामी अलापने की सीमाओं को पार कर गया.

1 घंटे चली यह बहस अगर आपने नहीं देखी तो हमनें इसका पूरा शब्द दर शब्द एनालिसिस किया है, आप अपने कीमती 15 मिनट यहां खर्च कर सकते हैं।

बहस की शुरूआत में एंकर कहती है “आप डॉक्टर है, आप जनता नहीं है, आपको धरती का भगवान कहा जाता है, क्यों आप ये बात भूल जाते हैं” ? 1 घंटे चली इस डिबेट में देखते ही देखते रेजीडेंट्स डॉक्टर को जनता का हिस्सा होने से बेदखल कर दिया गया, आपको पता भी नहीं चलता।  

आगे एंकर कहती है सरकार कह तो रही है सब ठीक हो जाएगा, वक्त लगेगा, ऐसे कामों में वक़्त लगता है, एक बार के लिए मानो आप महसूस करेंगे कि एंकर महोदया स्टूडियो के अलावा स्वास्थ्य विभाग औऱ सरकार की कार्यप्रणाली भी संभालती हो।

अब मंत्री रघु शर्मा जुड़ते हैं और कहते हैं अगर सरकार पर यकीन नहीं हैं तो उसका हिस्सा मत बनो, क्या अब एक चुनी हुई सरकार यकीन और भरोसे की मियाद पर अब लोगों की मांगों का निपटारा करेगी ?

इस पर एंकर रेजीडेंट्स से फिर सवाल करती है कि अगर सरकार लिखित आश्वासन दे देती है तो क्या गारंटी है कि आप काम पर लौट जाएंगे बजाय इसके कि सरकार पिछले कई महीनों से जो मौखिक आश्वासन दे रही है वो हवाई क्यों हो गए ?

ऐसे में एक बार फिर एंकर पूरे पैनल को साथ लेकर चिकित्सा मंत्री को यह विश्वास दिलाती है कि देखिए सर, रेजीडेंट्स भले ही हठधर्मिता पर अड़े हैं पर हम हमारे कर्म और धर्म दोनों से रेजीडेंट्स को अब लाइव घेर चुके हैं!

रेजीडेंट्स अपनी बात रखते हुए कहते हैं कि, हमें लगातार आश्वासन मिले हैं जैसे सनी देओल को तारीख पर तारीख मिली थी, वहीं इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आश्वासन सिर्फ आश्वासन होता है, उसके जमीन पर उतरने की कसौटी ठीक वैसी ही होती है जैसे राजनीतिक पार्टियों के चुनावी मेनिफेस्टो होते हैं।

ऐसे में एंकर रेजीडेंट्स से कहती है क्या आप 100 प्रतिशत सही होते हैं हर बार, आपकी कभी कोई गलती नहीं होती, ऐसे में एंकर उसी समय क्यों सरकार से यह सवाल नहीं करती कि क्या सरकारी आश्वासन हमेशा पूरे होते हैं इसकी कोई नजीर हमारे सामने हैं क्या ?

पूरे कार्यक्रम में रेजीडेंट्स के साथ पिछले महीनों हुई मारपीट की घटनाओं पर एक सवाल क्यों नहीं किया गया?  क्यों चिकित्सा मंत्री के आश्वासनों को एक टीवी चैनल रेजीडेंट्स की मांगों पर रखता चला गया ?

कार्यक्रम का विरोधाभास यहीं नहीं रुका चिकित्सा मंत्री कहते हैं कि मैं रेजीडेंट्स से टीवी पर समझौता करुं क्या?  वहीं एंकर रेजीडेंट्स से कहती है आप यहीं टीवी पर ऐलान करें अभी कि आप अपनी हड़ताल खत्म कर रहे हैं?

एंकर फिर कहती है कि करिए हमारे चैनल पर ऐलान हड़ताल खत्म करने का, जाइये काम पर…एक बार के लिए ऐसा लगता है मानो रघु शर्मा के ही शब्द फीमेल टोन में मेरे कानों में गूंजने लग गए हों !

रघु शर्मा फीस बढ़ोतरी पर कहते हैं अभी आपसे कोई फीस ले रहा है क्या, मई में देनी है तब देखेंगे, इस पर रेजीडेंट्स कहते हैं सर मई में भी हम ही आने वाले हैं लेकिन फीस बढ़ोतरी पर हमारे सवाल का ये क्या जवाब हुआ ?

रेजीडेंट्स के प्रतिनिधि यह कहते रह गए कि मंत्री जी, कुछ ग्राउंड लेवल पर काम दिखे तो सही, कुछ कागज तो दीजिये…मंत्री जी आखिर तक कहते रहे, मेरी बात सुनो, नहीं, नहीं ये गलत है आपका तरीका?

ऐसे में रघु शर्मा ने एक राजनीतिज्ञ होने का परिचय दिया और रेजीडेंट्स  पर नेतागिरी का ठप्पा लगा दिया, इसके तुरंत बाद एंकर हामी भरती है कि आप सरासर राजनीति कर रहे हैं। वाह

रघु शर्मा आगे कहते हैं कुछ मामले वितीय विभाग देखता है, जिनमें वक़्त लगता है, ऐसे में रेजीडेंट्स कहते हैं सर, फीस बढ़ोतरी का प्रपोजल मेडिकल डिपार्टमेंट भेजता है, इसमें फाइनेंस का क्या रोल है? लेकिन यह सवाल एंकर एक बार भी नहीं पूछ पाती है।

ये 1 घंटे चली इस बहस का लब्बोलबाब है जिसमें किस तरह एक टीवी चैनल सरकारी तंत्र के खोखलेपन पर सवाल ना करते हुए रेजीडेंट्स की हड़ताल की वजह बेवजह ढूंढता रहता है। वहीं चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा से सीधा एक सवाल तक नहीं पूछा गया कि श्रीमान क्यों तमाम आश्वासन के बावजूद रेजीडेंट्स हड़ताल पर फिर चले गए ?

जनमानस राजस्थान जनता का पक्ष रखने की कसौटी पर चलते हुए फर्स्ट इंडिया चैनल से कुछ सवाल करता है हमें उम्मीद है जिनका जवाब हमें जल्द मिलेगा।

1. क्या एक टीवी चैनल पर एंकर हड़ताली डॉक्टरों को संवेदनहीन और सरकार के आश्वासन के बूते उसे संवेदनशील का चोला पहना सकती है ?

2. अगर जनता के लिए कोई सरकार संवेदनशील है तो फर्स्ट इंडिया उस जनता में से रेजीडेंट्स डॉक्टर को अलग कैसे कर सकता है ?

3. रेजीडेंट्स की हड़ताल को बंदूक की नोक पर काम निकलवाना जैसे संज्ञा देना क्या उनकी जायज मांगों को कमजोर करना नहीं है ?

4. क्या लोकतंत्र में हड़ताल पर बैठना, अपने सवाल उठाना, राजनीति करना (जैसा चैनल की एंकर ने लाइव में कहा) है ?

5. क्या कोई डॉक्टर असामाजिक तत्वों से अपनी सुरक्षा की बात उठाएगा तो वो स्वार्थी (जैसा एंकर ने लाइव कहा) कहलायेगा

आखिर में जब आप यह पढ़ रहे होंगे तब की ताजा खबर यह है कि प्रदेश में रेजीडेंट्स की हड़ताल तीन दिन बाद गुरुवार शाम खत्म हो गई है। रेजीडेंट्स का कहना है कि उनकी मुख्य मांगें मान ली गई है।

आखिरकार रेजीडेंट्स की हड़ताल फिर एक बार वार्ता से ही खत्म हुई है लेकिन इसी बीच सरकार का रूख हड़तालियों के लिए चाहे जैसा रहे लेकिन मीडिया के रूख पर सवालिया निशान लगना कहां तक सही है? यह सवाल अपने आप से पूछिए।

पूरी बहस आप यहां देख सकते हैं-

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