सिर्फ छात्रनेताओं का हो-हल्ला, बिन छात्रों के ये कैसा छात्रसंघ चुनाव !

 


राजनीति की पहली सीढ़ी, राजनीति की पहली पाठशाला और ना जाने हमने छात्रसंघ चुनावों को कितने सुंदर नाम दे रखें हैं, उसी 20 दिनों के उत्सव का आज आखिरी दिन था, जी हां, राज्य के सभी विश्विद्यालयों और कॉलेजों में वोटिंग प्रक्रिया पूरी हुई।

शांतिपूर्ण मतदान और छुटपुट झड़पों की खबरों के बीच वोटिंग प्रतिशत ने एक बार फिर निराश किया। छात्रनेताओं द्वारा वादों की लॉलीपॉप बांटने के बाद भी प्रत्याशियों की किस्मत आधे वोटों से ही लिखी जानी तय हुई।

हर बार की तरह इस साल भी वोट डालने पहुँचे आधे छात्र-छात्राओं ने प्रशासन के तमाम कथित प्रयासों की पोल खोल दी। आगे जो भी बात होगी वह राजस्थान यूनिवर्सिटी के संदर्भ में होगी।

इस साल राजस्थान यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ चुनावों को लेकर 50.53 फीसदी मतदान हुआ, जो कि पिछले साल की तुलना 00.53 फीसदी बढ़ा है। कुछ ज्यादा ही नहीं बढ़ गया क्या ?

महाराजा कॉलेज में 1 फीसदी की बढ़ोतरी तो महारानी में 5 फीसदी की गिरावट !

अगर हम महाराजा कॉलेज की बात करें तो पिछले बार महाराजा कॉलेज में 65.24 फीसदी मतदान हुआ था जो इस बार 66.50 प्रतिशत तक पहुंचा है। यहां कुल 2723 वोटों में 1805 वोट पड़े।

वहीं महारानी में भारी गिरावट देखने को मिली। महारानी कॉलेज में पिछली साल 43 फीसदी मतदान हुआ, जो इस बार 37.95 प्रतिशत ही रहा। यहां 6369 वोटों में से 2417 वोट डाले गए।

वहीं कॉमर्स कॉलेज में 42 फीसदी मतदान तो राजस्थान कॉलेज से 65 फीसदी मतदान हुआ। आरयू में छात्रसंघ चुनावों को लेकर पिछले कुछ सालों से कमोबेश यही हालात देखने को मिल रहे हैं, ऐसे में आइए कुछ ऐसे सम्भव कारणों पर गौर करते हैं, जिनसे यह पता लगाया जा सकता है कि क्यों छात्र चुनावों से दूरी बनाकर रखने लगे हैं।

सिर्फ वादे…वादे और वादे !

हर बार छात्रनेता चुनावों के दौरान हज़ार तरह के वादे करते हैं, एक साल बीत जाने के बाद कोई नया प्रत्याशी उन्हीं वादों को फिर चिपका देता है, ऐसे में छात्रों के मानस से अब चुनावों की सार्थकता धुंधली होने लगी है।

हुड़दंग, भारी पुलिस जाब्ता और छावनी जैसा माहौल

चुनावों को लेकर पुलिस प्रशासन 1 महीने पहले ही मुस्तेद हो जाता है, जो की वाजिब भी है। इसके इतर चुनावों के दौरान बेवजह की जाने वाली हुड़दंग बाजी और कभी भी होने वाले लाठीचार्ज माहौल से आम छात्र खुद को दूर रखना चाहते हैं। खासकर ऐसे माहौल में लड़कियां केम्पस से दूरी बनाए रखती हैं।

जागरूकता अभियान नदारद !

चुनावों को लेकर यूनिवर्सिटी प्रशासन वोटिंग प्रक्रिया संबंधी सभी काम पूरे कर लेता है लेकिन साल भर केम्पस में वोटिंग को लेकर कोई अभियान या मुहिम दिखाई नहीं पड़ती है। छात्रों में छात्रसंघ की जागरूकता बनाने वाले कार्यक्रमों की कमी साफ तौर पर देखी जा सकती है।

खानापूर्ति की हवा !

छात्रसंघ चुनावों को लेकर आम लोगों में यह बात धीरे-धीरे घर कर रही है (जो सच भी हो सकती है) कि छात्रनेता महज विधायकी या राजनीतिक गलियारों में एंट्री पाने के लिए चुनाव लड़ते हैं, ऐसे में छात्रों का इस प्रकिया से दूरी बनाना लाजमी है।

– अवधेश पारीक (स्वतंत्र)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *