राजस्थान: कांग्रेस ने चार नए प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति में मुस्लिम समुदाय को किया निराश !


राजस्थान कांग्रेस मे गहलोत-पायलट के मध्य छिड़ी वर्चस्व की जंग मे घटे घटनाक्रम मे अचानक चार पदो पर हुई नियुक्तियों मे एक बार फिर मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व नदारद है।

राजस्थान की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के मध्य पिछले कुछ महीनों से चल रही राजनीतिक वर्चस्व की जंग मे कल अचानक घटे घटनाक्रम से आये नये मोड़ के बाद सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष पद से बरखास्त करके शिक्षा मंत्री गोविंद डोटासरा को नया पीसीसी चीफ मनोनीत किया गया है।

डोटासरा के अलावा युवा कांग्रेस, सेवादल व एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष भी पार्टी हाईकमान द्वारा नये मनोनीत किये गये है। जिनमे एक भी मुस्लिम को अध्यक्ष पद पर मनोनीत नही करने को कांग्रेस द्वारा अपने परम्परागत वोटबैंक मुस्लिम समुदाय की पूरी तरह अनदेखी करना प्रदेश मे चर्चा का विषय बना हुवा है कि मुस्लिम कांग्रेस राजनीति मे ना तीन मे है ओर ना तेराह मे गिने जा रहे है। जबकि कांग्रेस के वर्तमान समय मे नो मुस्लिम विधायक है जो अभी तक अशोक गहलोत के केम्प मे ही बैठे हुये है।

गहलोत-पायलट के मध्य जारी राजनीतिक वर्चस्व की जंग के आसमान छुने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाईकमान के मार्फत अचानक संगठन स्तर पर बदलाव करवाकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद पर शिक्षा मंत्री गोविंद डोटासरा (जाट), राजस्थान युवा कांग्रेस अध्यक्ष पर विधायक गणेश घोघरा (आदिवासी), एनएसयूआई के अध्यक्ष पद पर अभिषेक चोधरी (जाट) व प्रदेश सेवादल अध्यक्ष पद पर हेमेंद्र शेखावत (राजपूत) को मनोनीत करवा कर पायलट खेमे को मात देने की कोशिश करते हुये केंद्रीय स्तर पर मोजूद कांग्रेस हाईकमान के कोकस पर अभी भी अपनी मजबूत पकड़ होना साबित किया है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वेसे ऊपर से अपने आप को सेक्यूलर व गांधीवादी होने के साथ साथ मुस्लिम हितैषी दिखाने की भरपूर कोशिश करते रहे है। जिसके कारण चाहे प्रदेश स्तर पर ना सही पर राष्ट्रीय स्तर पर इस मामले मे उनकी उजली छवि देखी जाती है। जबकि अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री काल पर नजर दोड़ाये तो मुस्लिम समुदाय के प्रति उनके काम करने का तरीका इससे अलग नजर आता है।

जब से अशोक गहलोत की राजनीति मे चमक-धमक बढी है तब से उनके ग्रह जिले जोधपुर से मुस्लिम विधायक बनने का सिलसिला  खत्म हो चुका है। अशोक गहलोत के पीछले कार्यकाल मे जोधपुर के बालेसर मे मुस्लिम-मालियो मे विवाद हुवा तो उसमे सरकारी स्तर पर मुस्लिम समुदाय को कुचला गया था। जिसकी रिपोर्ट विभिन्न समाचार पत्रो की सुर्खियां बनी थी। इन्ही गहलोत के कार्यकाल मे जैसलमेर-बाडमेर जिले के 32 मुसलमानों को रासुका मे बंद किया गया था।

अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बनने से पहले राजस्थान सरकार मे ग्रहमंत्री रहे है। तब काला कानून “टाडा” के दूरूपयोग होने के खिलाफ आवाज बूलंद होने के मध्य तत्तकालीन ग्रहमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश मे टाडा कानून के तहत पहली गिरफ्तारी एक मुसलमान की करने के आदेश दिये थे।

अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री कार्यकाल मे भरतपुर के गोपालगढ़ कस्बे की मस्जिद मे नमाजियों पर पुलिस द्वारा गोली चलाकर मारने की शर्मनाक घटना घटित हुई थी। जिसमे पीडित मुसलमानों को ही मुलजिम बनाकर गिरफ्तार किया गया था।

सीआई फूल मोहम्मद को सवाईमाधोपुर के सुरवाल कस्बे मे सरेआम डयूटी के समय जलाकर मारने की घटना को कभी भूलाया नही जा सकता है।

इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री गहलोत के वर्तमान कार्यकाल मे महाधिवक्ता व अतिरिक्त महा अधिवक्ताओं के मनोनयन मे मुस्लिम प्रतिनिधित्व नही दिया गया। मंत्रीमण्डल गठन मे एक मात्र शाले मोहम्मद को मंत्री बनाया गया जिसको अल्पसंख्यक मंत्रालय तक सीमित रखा गया है।

कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान मे कांग्रेस की सत्ता लाने मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस के वर्तमान असमंजस वाले हालात मे भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व उनकी कांग्रेस पार्टी की दया द्रष्टि का पात्र नही समझा गया तो माने कांग्रेस व गहलोत के अच्छे दिनो मे तो समुदाय को अछूत बना कर रखा जा सकता है।

कल चारो पदो पर हुये मनोनीत अध्यक्षों के लिये इलेक्सन नही बल्कि मनोनयन (सलेक्शन) हुवा है। मनोनयन मे पार्टी व नेताओं की केवल कृपा दृष्टि व जेहनी सोच निर्भर करती है।

– अशफ़ाक कायमखानी

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक है)


 

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