परीक्षाओं की तय तिथि को आगे बढाने की कहीं परम्परा न पड़ जाये

परीक्षाओं की तय तिथि को आगे बढाने की कहीं परम्परा न पड़ जाये ।
राजस्थान में नई सरकार के गठन के बाद से ही इस सरकार के समक्ष नौकरी की परीक्षाओ के अभ्यर्थियो ने परीक्षा तिथि को आगे बढाने हेतु कई बार धरने, ज्ञापन और सोशल नेटवर्किंग से अभियान चलाकर परीक्षा तिथि को आगे बढाया है।ताजा मामला आरएएस मुख्या परीक्षा की तारीख को आगे बढ़ाने हेतु राजस्थान लोकसेवा आयोग ने फिलहाल परीक्षा स्थागित करके नई तारीख घोषित करने की बात कही है। ज्ञात रहे एक पखवाड़ा पहले प्रथम श्रेणी अध्यापक परीक्षा भर्ती की तिथि को भी आगे बढाया गया है।
इसके पीछे की स्थिति को देखा जाये तो, ज्ञात होगा कि जब इन परीक्षाओं के अभ्यार्थी परीक्षाओं की तैयारी में व्यस्त है तो ,ये आंदोलन कौन कर रहा है?
दरअसल ये आंदोलन सरकार के अंसतुष्ट वर्गों द्वारा आयोजित किये जाते है , जिसमे उन लोगों को भी एक गैर जरूरी मुद्दे पर अपनी राजनीति गतिविधियों में सक्रियता का मौका मिल जाता है, या फिर सरकार ही स्वयं यह चाहती है कि युवाओ की एक बड़ी सँख्या को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में ही उलझाये रखकर बेरोजगारों और युवाओ को शान्त रखना चाहती है कि कहीं सरकार से किसी प्रकार की माँग न करे ।
या फिर कोचिंग संस्थाओ के दबाव से ऐसा किया जाता हो? क्योंकि एक बार परीक्षा डेढ़ से तीन महीने भी आगे बढ़ गई तो कोचिंगों की बल्ले-बल्ले हो जाती है, उन्हें नये बैंच प्रारम्भ करके लाखों कमाने का मौका मिला जाता है ।
कारण कुछ भी हो, नुकसान एक आम परीक्षार्थी को उठाना पड़ता है ।
यह सर्वविदित है कि हमारी व्यवस्था इतनी लेट लतीफ की शिकार है कि इसमें परीक्षा होने और आंसर key जारे होने तथा आपत्तियों लेने और अंत मे न्यायपालिका की भेंट चढ़ने में इतना समय बर्बाद हो जाता है कि सरकारो को सोचना चाहिए कि अधीनस्थ परीक्षा बोर्ड और लोक सेवा आयोग द्वारा एक बार तिथि घोषित होने के बाद उसे परिवर्तित करना गैरजरूरी है । क्योंकि ये उन गरीब विद्यार्थियों के कतई हित मे नही है जो अपने घर छोड़कर परीक्षा की तैयारी हेतु शहर में पड़ाव डाले पड़े हैं ।

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