सरकार बदलते ही कैसे बदल गए जयपुर के मेयर और जिलाप्रमुख!

जयपुर में पिछले 22 व 23 जनवरी के दो दिनो मे घटित दो राजनीतिक घटनाओं से बहुत ही अच्छी तरह से होने व उन्हें समझने के बाद सबको लगता है कि सत्ता मे अपनी हिस्सेदारी बढाने के लिए कम से कम राजनीतिक विज्ञान मे नये नये हो रहे शोध को ठीक से पढना व समझकर उन पर मंथन जरूर करना चाहिये।

राजस्थान मे तत्कालीन समय मे कायम भाजपा सरकार के समय राजधानी जयपुर की नगर निगम मे भारी बहुमत से भाजपा का मेयर चुना गया था एवं इसी तरह जयपुर जिला परिषद मे बहुमत के आधार पर जिला प्रमुख भी भाजपा का बहुमत के बल पर बना हुवा था। लेकिन मेयर अशोक लाहोटी के भाजपा के निशान पर सांगानेर से चुनाव लड़कर विधायक बनने से एवं तत्तकालीन जिला प्रमुख मुलचंद मीणा के पलटी मारकर भाजपा छोड़कर मोजुदा सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी मे शामिल होने से दो घटनाएं घटना लाजिमी हो गया था।

लाहोटी के विधायक बनने से जयपुर मेयर का पद खाली होने पर नये मेयर के लिए हुये चुनाव मे सत्ता व पावर का असल रुप देखने को मिला। कुल 91 सदस्यों वाले नगर निगम मे एक सदस्य के विधायक बनने से एक पद रिक्त होने के चलते बचे कुल नब्बे की तादाद मे कांग्रेस के मात्र 18 सदस्यो के मुकाबले अन्यो को छोड़कर भाजपा के 63 सदस्य होने के बावजूद भाजपा उम्मीदवार मनोज भारद्धाज के मुकाबले कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विष्णु लाटा चुनाव जीतकर मेयर बन गये और बहुमत वाली भाजपा मुहं ताकती रह गई।

इसी तरह जयपुर जिला प्रमुख मुलचंद मीणा के भाजपा छोड़कर कांग्रेस जोईन करने पर ठगा सा महसूस करने वाली भाजपा ने अपने सदस्यों के मार्फत 39 सदस्यों वाली जिला परिषद मे जिला प्रमुख मीणा के खिलाफ रखे अविश्वास प्रस्ताव पर बहस होने के समय आवश्यक तादाद मे सदस्यों के ना जुटा पाने के कारण प्रस्ताव खारिज होने पर दलबदल कर चुके मुलचंद मीणा ही जयपुर जिला प्रमुख बने रहेगें।

जयपुर मे 22 व 23 जनवरी को घटित मेयर चुनाव व जिला प्रमुख के खिलाफ भाजपा द्वारा रखें अविश्वास प्रस्ताव के खारिज होने जैसी उक्त दोनो राजनीतिक घटनाओं पर खासतौर पर सियासी तौर पर निढाल व बेचारगी की तरह राजनीति करने वाले मुस्लिम समुदाय को गहन मंथन करते हुये सत्ता व पावर के सम्बधित राजनीतिक विज्ञान मे हालात के अनुसार नये नये हो चुके शोध को ठीक ठीक समझना चाहिये।

कुल मिलाकर यह है कि राजनीति की शतरंजी चाल को समय के पहले समझकर पासा फैंकने वाले लोग ही आज के समय की राजनीतिक हालात के योद्धा माने जाने लगे है। यानि मारवाड़ी की एक कहावत कांकड़ देख गावं की फसल की दशा बताने वाले लोग ही आज की राजनीति मे सफल कहलाये जाते है। दिवारो से सर टकराने वालो के सर मजबूत होने के बजाय हमेशा फूटे जाते रहे है।

-।अशफाक कायमखानी।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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