घनश्याम तिवाड़ी के कांग्रेस जॉइन करने पर कांग्रेसी कार्यकर्ता ख़ुश क्यों नहीं है!

भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे घनश्याम तिवाड़ी के राहुल गांधी के सामने जयपुर में कांग्रेस का दामन थामने के बाद से ही लोगो में नाराज़गी और आश्चर्य दोनों है।

नाराजगी की एक ख़ास वजह यह भी है कि घनश्याम तिवाड़ी की छवि एक कट्टर हिन्दूवादी नेता की रही है। वो एक जमाने मे भाजपा के दिग्गज नेता रहे, भाजपा की सरकार में मंत्री भी रहे और हमेशा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी जुड़े रहे।

घनश्याम तिवाड़ी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार (2003 से 2008) में वे शिक्षा मंत्री रहे। राजनीति में उन्होंने सफलतापूर्वक 45 साल बिताए हैं। घनश्याम तिवाड़ी सांगानेर से लगातार तीन बार विधायक बने हैं। 2013 विधानसभा में वे राजस्थान के सर्वाधिक मतों से जीतने वाले विधायक भी रहे। लेकिन वसुंधरा राजे की सरकार में उपेक्षा के बाद घनश्याम तिवाड़ी ने भाजपा छोड़कर दिनदयाल वाहिनी राजनीतिक पार्टी बनाई।

दीनदयाल वाहिनी के टिकट पर ही उन्होंने राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कई जगह से उम्मीदवार उतारे और ख़ुद घनश्याम तिवाड़ी ने जयपुर की सांगानेर सीट से चुनाव लड़ा। लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा के अशोक लाहोटी के सामने उनकी करारी हार हुई।

सांगानेर से विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही तिवाड़ी के कांग्रेस मे जाने की चर्चा बराबर चल रही थी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से उनके मधुर सम्बंध होने के चलते उनकी कांग्रेस मे जाने की राह आसान हो गई।

घनश्याम तिवाड़ी राजस्थान के सीकर शहर के रहने वाले है। घनश्याम तिवाड़ी 1980 और 1985 में दो बार सीकर से भाजपा विधायक रहने के बाद वो जयपुर जिले की चौमूं विधानसभा से और फिर सांगानेर विधानसभा से विधायक रहे है। शूरुआती दौर मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता रहने के साथ विद्यार्थी जीवन मे सीकर की श्री कल्याण कॉलेज में छात्रसंघ के पदाधिकारी बने। उसके बाद 1980 मे सीकर से पहली बार भाजपा की टिकट पर विधायक बने थे। तिवाड़ी को राजस्थान के दिग्गज भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री स्व. भैरोंसिंह शेखावत के खास चेले के तौर पर भी पहचाना जाता रहा है।

वसुन्धरा राजे की सरकार में घनश्याम तिवाड़ी पूर्णतया उपेक्षा का शिकार रहे और 5 साल उन्हें कोई मंत्रालय नहीं दिया गया। घनश्याम तिवाड़ी भी पूरे 5 साल विधानसभा में अपनी ही सरकार को घेरते रहे।

भाजपा से अलग होकर तिवाड़ी ने चुनाव भले ही लड़ा हो लेकिन उन्होंने ख़ुद को कभी संघ से अलग नहीं बताया। तिवाड़ी को उम्मीद भी थी कि संघ परिवार विधानसभा चुनावों में जरूर उनकी मदद करेगा,लेकिन ऐसा हुआ नहीं और तिवाड़ी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए।

अब तिवाड़ी को कांग्रेस में शामिल करने पर लोग सवाल उठा रहे हैं कि ऐसे नेता को पार्टी में शामिल करने से क्या फायदा होगा जो खुद अपनी जमानत भी नहीं बचा पाया हो। दूसरा कांग्रेस की सेक्यूलर छवि के विपरीत घनश्याम तिवाड़ी की छवि एक साम्प्रदायिक नेता की रही है। घनश्याम तिवाड़ी के विधानसभा क्षेत्र में बनने वाले हज हाउस का भी तिवाड़ी ने जमकर विरोध किया था और हज हाउस नहीं बनने दिया। इसको लेकर कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक अल्पसंख्यक समुदाय में भी तिवाड़ी को लेकर नाराजगी है।

बताया जा रहा है कि तिवाड़ी खुद तो लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन अपने बेटे के लिए वो कांग्रेस का टिकट लेना चाहते हैं। अगर घनश्याम तिवाड़ी या उनके बेटे को कांग्रेस लोकसभा का टिकट देती है तो उसको कांग्रेस के आम कार्यकर्ता का जरूर विरोध झेलना पड़ेगा।

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