कांग्रेस के चिंतन शिविर से पहले राजस्थान के दलितों में नाराज़गी, जारी किया श्वेत पत्र


जयपुर- राजस्थान में कांग्रेस के उदयपुर में हो रहे नव चिंतन शिविर से ठीक पहले दलित संगठनों ने संयुक्त रूप से एक श्वेत पत्र जारी करके सत्ता, संगठन और प्रशासन में दलितों की कम भागीदारी का सवाल उठाया है.

यह रिपोर्ट 11 मई को सोशल मीडिया पर जारी होने के कुछ ही देर बाद वायरल हो गई और लोग इसे शेयर करते हुए अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर सवाल उठाने लगे हैं.इस रिपोर्ट में राजस्थान में दलितों की आबादी और उनको मिले मौक़ों का सामाजिक अंकेक्षण किया गया है, जिसमें पार्टी के संगठन में दलित नेताओं की नियुक्ति से लेकर दलित आईएएस, आईपीएस की कलेक्टर एसपी के रूप में फ़ील्ड पोस्टिंग और राजनीतिक नियुक्तियों में दलितों की भागीदारी पर गहरा रोष जताया गया है,रिपोर्ट कहती है कि राजनीतिक नियुक्तियों में 30 लोगों को मंत्री का दर्जा दिया गया है, जिसमें सिर्फ़ एक दलित को यह मौका मिला है.

मुख्यमंत्री के ऑफ़िस और निवास में कार्यरत विशेषधिकारियों में एक भी दलित नहीं

रिपोर्ट में मुख्यमंत्री के ऑफ़िस और निवास में कार्यरत विशेषधिकारियों में एक भी दलित नहीं होने पर भी जवाब चाहा गया है. सीएमओ और सीएमआर में केवल एक दलित संयुक्त सचिव होने की बात कही गई है. ब्यूरोक्रेसी में सक्षम दलित अधिकारियों को बर्फ़ से लगा कर रखने का आरोप लगाया गया है और एसीबी को अनुसूचित जाति के वार्ड पंच से लेकर आईएएस तक के पीछे पड़े होने और दुर्भावना पूर्ण कार्यवाही करने की बात कही गई है. दो अप्रेल के दलित आंदोलन के मुक़दमे अभी तक जारी रहने और मुक़दमे वापस नहीं लेने पर भी रोष प्रकट किया गया है.

श्वेत पत्र के नाम से संयुक्त दलित संगठनों द्वारा जारी इस रिपोर्ट को प्रारम्भिक रिपोर्ट कहा गया है और जल्द ही विस्तृत रिपोर्ट जारी करने का एलान किया गया है.

चिंतन शिविर के ठीक पहले इस तरह की क़वायद को लेकर काफ़ी हलचल मची हुई है, कुछ लोग इसे असंतुष्ट ख़ेमे की कार्यवाही बता रहे हैं तो कुछ को यह विपक्षी पार्टियों का बेवजह के मुद्दों को तूल देने का मामला लग रहा है, चाहे जो भी हो पर इस रिपोर्ट पर जमकर चर्चा हो रही है, अगर इस तरह का समाज शास्त्रीय विश्लेषण होने लगा तो राजनीतिक दलों और नेताओं को जवाब देना भारी पड़ सकता हैं.

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