अब दिमाग से हटा दीजिए और भूल जाइए रेलवे में नौकरी को, जो देश मे सबसे ज्यादा उत्तर भारतीय युवाओं खासकर बिहारी युवाओं का सपना हुआ करता था. इंडियन रेलवे जो देश का सबसे बड़ा सार्वजनिक उद्यम और सबसे बड़ा नियोक्ता कभी हुआ करता होगा अब उसको खण्ड खण्ड कर प्राइवेटाइजेशन करने का पूरा रोड मैप मोदी सरकार ने कल जनता के सामने रख दिया है.
रेलवे की दो बड़ी परीक्षाएं 2020 में होने वाली थी पहली थी RRB NTPC Exam इस एनटीपीसी की 35,208 भर्तियों के लिए 1.25 करोड़ से अधिक ऑनलाइन आवेदन प्राप्त हुए थे और रेलवे की ग्रुप डी की ( RRC Group D Exam ) इसमें एक लाख से ज्यादा सीटें बताई गई थी यह इस एग्जाम के बाद होनी थी.
कल रेल मंत्रालय ने 109 जोड़ी प्राइवेट ट्रेन चलाने के लिए प्राइवेट पार्टिसिपेशन को लेकर रिक्वेस्ट मांगा है। पूरे देश के रेलवे नेटवर्क को 12 क्लस्टर में बांटा गया है और इन्हीं 12 क्लस्टर में 109 जोड़ी प्राइवेट ट्रेनें चलेंगी इन ट्रेनों में रेलवे सिर्फ ड्राइवर और गार्ड देगा यानी अब नए पदों की जरूरत ही खत्म कर दी गयी है पर बिहार चुनाव के मद्देनजर सम्भव है कि एग्जाम करवा लिए जाए.
इसी के साथ रेलवे बोर्ड ने गुरूवार 2 जुलाई को एक आदेश जारी किया है, जिसमें उसने कहा है कि नए पदों पर अगले आदेश तक कोई भर्ती नहीं की जाये. इसके अलावा सेफ्टी के पदों को छोड़कर अन्य पदों को 50 फीसदी तक सरेंडर किया जाए.
साथ ही पिछले दो सालों में जितने भी पदों को क्रियेट किया गया, उसे फिर से रिव्यू किया जाए. रेलवे बोर्ड ने स्पष्ट किया है कि उक्त आदेश को नहीं मानने पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जायेगी. साफ़ है कि कोरोना का बहाना बना कर सरकार नए पदों पर भर्ती से बचना चाहती है लेकिन यह काम सिर्फ भर्ती में ही नहीं हुआ है।
आज से ठीक 1 साल पहले जब रेलवे में निगमीकरण की सुगबुगाहट शुरू हुई थी तभी लिख दिया था कि निगमीकरण का आखिरी स्टॉप निजीकरण है लेकिन पूरे साल सरकार के रेलवे मंत्री इस बात को झुठलाते रहे पर एक न एक दिन सच्चाई सामने आनी ही थी।
दरअसल सच तो यह है कि लखनऊ दिल्ली के बीच चलने वाली पहली प्राइवेट ट्रेंन तेजस का प्रयोग बिल्कुल विफल साबित हुआ है तेजस का ऑक्यूपैंसी लेवल केवल 62 फीसद था, जबकि अन्य ट्रेनों में सामान्यतया 70-100 फीसद की आक्यूपैंसी रहती है।अक्टूबर 19 तक उसे महज 7.73 लाख रुपये का मुनाफा हुआ था, लेकिन उसके बावजूद एक फेल मॉडल को सफल बता कर 109 ट्रेंन चलाई जा रही है
जैसे लाभ कमाने वाले एयरपोर्ट को एक एक कर अडानी के हवाले किया जा रहा है उसी प्रकार सबसे फायदेमंद रुट को सबसे पहले बॉम्बार्डियर Hyundai, अडानी ग्रुप, एल्सटम ट्रांसपोर्ट और मैक्वारी आदि को सौप दिया जाएगा, प्राइवेट सेक्टर को अपने ही ट्रेन रेक तैयार करने की भी अनुमति दी जाएगी।
साथ ही निजी ऑपरेटर्स को मार्केट के अनुसार किराया तय करने की अनुमति दी जाएगी। वे इन गाड़ियों में अपनी सुविधा के हिसाब से विभिन्न श्रेणियों की बोगियां लगाने के साथ-साथ रूट पर उनके ठहराव वाले स्टेशनों का भी चयन कर सकेंगे. फ़िलहाल तो मेक इन इंडिया की बात की जा रही हैं लेकिन बाद में ‘प्राइवेट आपरेटर जहां से भी चाहेंगे अपनी ट्रेन हासिल कर सकेंगे। रेलवे से ट्रेन खरीदना उनके लिए जरूरी नहीं होगा यह इनके करार में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है
दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि संचालन में निजी ट्रेनों को वरीयता मिलने से सामान्य ट्रेनों की लेटलतीफी बेहद बढ़ जाएगी जिससे जनता परेशान होगी और इसका दोषी रेलवे को बना कर ओर रूट प्राइवेट प्लेयर्स को दे दिए जाएंगे
हम सभी जानते है कि निजी उद्यमों का मुख्य उद्देश्य केवल ओर केवल लाभ कमाना होता है और उन्हें जिस क्षेत्र से लाभ नहीं होता वे वहाँ कार्य बंद कर देते हैं, पूरी दुनिया मे आज रेलवे निजीकरण से राष्ट्रीयकरण की ओर लौट रहा है लेकिन भारत में अडानी जैसे पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए मोदी सरकार प्राण प्रण से जुटी हुई है रेलवे में रोजगार देने की बात तो दूर रोजगार छीना जा रहा है।
– गिरीश मालवीय (लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं)