बगरू के मुस्लिम प्रोफेसर की BHU में नियुक्ति, छात्रों ने गैर-हिंदू बता शुरू किया विरोध प्रदर्शन !


हमारे देश की बुनियादी मजबूती भारतीय संविधान के हर पन्ने के एक-एक शब्द में दर्ज है, एक संवैधानिक देश होने के नाते यहां हर एक नागरिक को समान अधिकार मिले हैं तो हर किसी को समान अवसर देने की भी आजादी है। लेकिन जब संवैधानिक बराबरी की धज्जियां देश के एक ऐसे विश्वविद्यालय में उड़ाई जाए जिसकी हवा में बौद्धिकता पसरे होने का दावा किया जाता है तो सवाल उठना लाजमी है।  

जी हां, हम बात कर रहे हैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानि बीएचयू जहां के छात्र इन दिनों एक प्रोफेसर की नियुक्ति का इसलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि वह किसी खास धर्म (हिंदू धर्म) का नहीं है।

जी हां, बीएचयू के “संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय जिसमें प्राचीन शास्त्रों, संस्कृत साहित्य, ज्योतिष और वेदों की पढ़ाई करवाई जाती है, में फिरोज खान नाम के एक असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति 5 नवंबर, 2019 को हुई.

असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान

अगली सुबह इस नियुक्ति का कुछ छात्र विरोध करने लगे और हवाला दिया कि जिस व्यक्ति को इस संकाय (विभाग) में नियुक्त किया गया वो हिंदू नहीं है। छात्रों ने इस नियुक्ति को यूजीसी या विश्वविद्यालय के नियम नहीं बल्कि महामना मदन मोहन मालवीय के नियमों के खिलाफ बताया।

आखिर विरोध की वजह क्या है ?

छात्र कुलपति के घर के बाहर दो दिन से जमा है और ढोल-मजीरा लेकर भजन-कीर्तन गाते हुए विरोध कर रहे हैं। छात्र अपने विरोध को जायज ठहराने के लिए विभाग की दीवार पर लगे एक शिलापट (पत्थर पर लिखा) का हवाला दे रहे हैं जिसको महामना का नियम कहा जा रहा है।

इस शिलापट में लिखा है

इस भवन का निर्माण हिंदू सभ्यता, सनातन सभ्यता, सिख, जैन, बौद्ध के सांस्कृतिक कथानकों, व्याख्यानों और देश विदेश के नेताओं के सांस्कृतिक आयोजन किया गया है

मालूम हो कि बीएचयू में संस्कृत के दो तरह के कोर्स हैं. जिनके नाम है आधुनिक संस्कृत और परंपरागत संस्कृत। छात्रों का विरोध परंपरागत संस्कृत विभाग को लेकर है क्योंकि वो इसे परंपरा के खिलाफ मानते हैं।

यूनिवर्सिटी की तरफ से भी बयान आया है

छात्रों के विरोध के इतर यूनिवर्सिटी इस नियुक्ति को एकदम जायज बता रही है। जारी लेटर में कहा गया है कि फिरोज खान की नियुक्ति सभी नियमों और योग्यता को ध्यान में रखकर की गई है।

कुलपति की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने सर्वसम्मति से फिरोज को इस पद के लिए योग्य पाया। वहीं विरोध को लेकर विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि संस्थान की नींव धर्म, जाति, संप्रदाय, लिंग आदि के भेदभाव से ऊपर उठकर राष्ट्रनिर्माण करने के उद्देश्य से रखी गई है।

आखिर में महामना के नियम और मूल्य भी जान लीजिए

आपको बता दें कि जिस शिलापट को महामना के नियम बताए जा रहे हैं उसका कहीं कोई सबूत नहीं है, लेकिन महामना के मूल्य बीएचयू की वेबसाइट पर जरूर है। बीएचयू के संस्थापक मदन मोहन मालवीय के मुताबिक

भारत केवल हिन्दुओं का देश नहीं है बल्कि यह मुस्लिम, ईसाई और पारसियों का भी देश है, देश तभी विकास और गति प्राप्त कर सकता है जब विभिन्न समुदाय के लोग परस्पर प्रेम और भाईचारे के साथ जीवन व्यतीत करें. यह मेरी इच्छा और प्रार्थना है कि प्रकाश और जीवन का केन्द्र बीएचयू ऐसे छात्र प्रदान करें जो ना केवल अपने बौद्धिक रूप से संसार के दूसरे छात्रों से श्रेष्ठता में बराबर हों बल्कि एक श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करें।

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