हौसलों से बहुत कुछ होता है-(कविता)

हौसलों से बहुत कुछ होता है

रुख़सत होती ज़िंदगी को ,
क्यों हर रोज़ खोता है

चंद लम्हों की ज़िंदगी मिली है ,
रो कर उन्हें भी खोता है ।।

ज़्यादा नहीं तो कम सही ,
क्यों मायूस ख़ुदी से होता है

हर चमकते सितारे का सामना ,
अँधेरे से हर रोज़ होता है

लकीरों में ज़िंदगी थोड़ी लिखी है ,
हौसलों से बहुत कुछ होता है ।।

कितनी भी किरने बिख़ेरी हो दिन में ,
सूरज को भी ढ़लना होता है

जीत का नग़मा गूँजेगा जहां में ,
हर हार में लड़ना होता है

गिरकर उठना भी सीख ले तू ,
सिकंदर वही तो होता है ।।

सागर की मौज़े बढ़ती जहाँ हैं ,
रस्ता वहीं पे होता है

औरों के रस्तों पे क्यों चलना ,
जब रस्ता ख़ुदी का होता है

हिम्मत भी रखना कदम – कदम पे ,
आसां कुछ नहीं होता है ।।

लोगों की फिर सुन – सुनकर क्यों ,
अपने वजूद को ख़ोता है

अपनो का अगर साथ हो ,
तो ग़ैरों से क्या कुछ होता है

लकीरों में ज़िंदगी थोड़ी लिखी है ,
हौसलों से बहुत कुछ होता है ।।

रचनाकार परिचय

-उमर सलीम

(इंजीनियरिंग छात्र,SKIT, Jaipur)

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