संजय दत्त के रॉकी से संजू बाबा बनने की कहानी

-तेजस पूनिया

29 जुलाई 1959 को जन्में संजय दत्त भारतीय सिनेमा के सबसे अधिक विवादित कलाकारों में से एक रहे हैं। संजय दत्त 1993 के मुंबई बम हमलों में हथियार रखने, आतंकवादियों की सहायता करने और ए०के 56 रायफ़ल पास रखने के आरोपी भी रहे हैं। कल रात संजय दत्त की पहली फ़िल्म रॉकी देखी जहाँ से संजय ने अपने फ़िल्मी करियर के पायदान पर क़दम रखा था। हालांकि इससे पहले वे बाल कलाकार के रूप में सन् 1972 में रिलीज़ फ़िल्म रेशमा और शेरा में भी नज़र आए थे। लेकिन कौन जानता था कि अपने पिता सुनील दत्त और माँ नरगिस की ही तरह ये भी एक बेहतरीन कलाकार बन पाएंगे। लेकिन पहली ही फ़िल्म में शानदार अभिनय कर संजय दत्त ने अपने फ़िल्मी करियर में सशक्त क़दम रखे। इसके बाद संजय दत्त ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हालांकि संजय दत्त के फिल्मी करियर में एक दौर वह भी था जब एक के बाद एक फिल्में लगातार फ्लॉप भी हुई। लेकिन उसके बाद उन्होंने जल्द ही वापसी की। हाल ही में उन पर बायोपिक भी रिलीज होने जा रही है। जिसके बाद निःसन्देह कुछ अनछुए पहलू भी सामने आएंगे। ख़ैर बात कल रात जो संजय दत्त की पहली फ़िल्म देखी उस पर –

संजय दत्त अभिनीत पहली फ़िल्म रॉकी साल 1981 में रिलीज हुई थी। इस फ़िल्म के रिलीज होने से ठीक 4 दिन पहले उनकी माँ नरगिस की 3 मई 1981 को पैनक्रिएटिक कैंसर (अग्नाशय में कैंसर) होने की वजह से मौत हो गई थी। इस फ़िल्म में संजय दत्त रॉकी के रूप में मुख्य भूमिका में थे। उनके अलावा उनके सहयोगी कलाकारों में टीना अंबानी (रेणुका सेठ) अमज़द खान (रॉबर्ट डिसूजा) रीना रॉय लाजवंती, हीराबाई) शक्ति कपूर (आर०डी०) राखी गुलज़ार (पार्वती) अरुणा ईरानी (कैथी डिसूजा) रणजीत (जगदीश) अनवर हुसैन (रतनलाल) शशिकला ( सोफ़िया) इफ्तेखार (डॉ० भगवान दास) सुनील दत्त (शंकर) आदि जैसे बड़े-बड़े सिने दिग्गज और सीनियर कलाकार भी थे। जिन्होंने शानदार अभिनय कला का परिचय दिया।
फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह थी कि- संजय दत्त यानी रॉकी के असल जिंदगी के पिता पिता सुनील दत्त यानी शंकर जो फ़िल्म में भी उनके पिता ही बने हैं, एक समाजवादी सोच के व्यक्ति हैं। वे फैक्ट्री में काम कर रहे मजदूरों के हकों के लिए लड़ते हैं। लेकिन साजिश के तहत उन्हें मार दिया जाता है। उसके बाद एक से बढ़कर एक खेल शुरू होते हैं। इधर लाजवंती के बलात्कार की कोशिश उसके पिता का फैक्ट्री मालिक रणजीत यानी जगदीश करता है। उसके बाद वह जब आत्महत्या की कोशिश करती है तो कोठेवालों की मदद से बच जाती है और वहीं अपने नाच जिसमें उसकी रुचि भी थी उसे निरन्तर बनाए रखती है। इसके बाद रॉकी श्री नगर पहुंचता है। जहाँ टीना अम्बानी यानी रेणुका सेठ उसे आर० डी मान अपने साथ अपने घर ले आती है। लेकिन वहाँ रॉकी को उससे सचमुच का प्यार हो जाता है। उसे जब असल आर डी (शक्ति कपूर) के श्री नगर आने का मालूम होता है तो वह बहाना बना वापस घर आ जाता है। इस बीच रेणुका सेठ आर डी को बात करते हुए छुपकर सुन लेती है और उसके इरादों को जान जाती है तब वह रॉकी को सब बताती है। इधर रॉकी को जान से मारने की कोशिश भी की जाती है। फ़िल्म में भरपूर एक्शन है, रोमांस है। फ़िल्म कहीं भी भटकती हुई नजर नहीं आती। बेहतरीन कहानी, बेहतरीन अभिनय उससे भी बेहतरीन एडिटिंग और सिनेमेटोग्राफी। फ़िल्म के एक-आध गानों को छोड़ दिया जाए तो सभी गाने सदाबहार हैं।
फ़िल्म रॉकी में अभिनय करने के साथ-साथ ही उनके ड्रग्स लेने की आदत की खबरें भी अखबारों की सुर्खियां बनने लगी थीं। संजय दत्त की पहली फ़िल्म के रिलीज होने के बाद फिल्मों की लाइन सी ही लग गई थी। जान की बाज़ी, जमीन आसमान, बेकसूर, मेरा फैसला, दो दिलो की दास्तान, इत्यादि ऐसी ही फिल्मे रहीं। नशे की आदत को छोड़ने के लिए संजय दत्त ने इंडस्ट्री से कुछ महीने का ब्रेक भी लिया और ब्रेक के बाद महेश भट्ट की फ़िल्म “नाम” से फिर इंडस्ट्री की और रुख किया। यहाँ तक आते आते उनकी अभिनयता में एक स्थिरता आ चुकी थी। संजय दत्त ने इसके बाद एक्शन फिल्मों की और भी रुख किया। क्रोध, युद्ध, कब्जा, हत्यारा और खलनायक वगैरा फिल्मों से उनकी छवि एक्शन हीरो की बन चुकी थी। मगर सुधाकर बोकड़िया की फ़िल्म “साजन” में एक कवि और छुपे रुस्तम प्रेमी की भूमिका को इतने अच्छे से निभाया की उसके बाद उन्होंने ने इस छवि को भी पूरी तरह तोड़ा।
संजय दत्त एक श्रेय इस बात का दिया जा सकता है कि इन्होंने सिनेमा में कॉमेडी को एक अलग तरह से पेश किया। डेविड धवन के निर्देशन में चल मेरे भाई, जोड़ी न.1, हसीना मान जायेंगी, हम किसी से कम नही आदि जैसी फिल्में बताती हैं कि संजय दत्त सिर्फ़ हँसते नही बल्कि और दुनिया को भी को हँसाने की कुव्वत रखते हैं।

लगभग 80 से भी ज्यादा फिल्मों में अभिनय कर चुके संजय दत्त की तूती आज भी बॉलीवुड में बजती है। एक्टिंग के साथ-साथ प्रोडक्शन हाउस व्हाइट फेअथेर के तहत पहली फ़िल्म “काँटे” के वे निर्माता बने जिसका निर्देशन किया उनके दोस्त संजय गुप्त ने।
सड़क, साजन, मुन्नाभाई सीरीज़, धमाल जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले संजय दत्त फिल्मी दुनिया ही नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों में आज भी राज करते हैं। बेसब्री से इंतजार है उनकी जिंदगी के कुछ और पन्ने खोलने जा रही फ़िल्म संजू के रिलीज होने का।

रचनाकार परिचय

तेजस पूनिया

स्नातकोत्तर हिंदी विभाग

बांदरसिंदरी, किशनगढ़, अजमेर- 305817

सम्पर्क- +919166373652 +9198802707162

ई-मेल- tejaspoonia@gmail.com

शिक्षा – स्नातकोत्तर उत्तरार्द्ध, राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय

तेजस पूनिया सिनेमा के अलावा भी विविध विषयों पर लिखते रहते हैं। जैसे कि फ़िल्म समीक्षा, कहानी, कविताएँ, लेख और इनकी कुछ कहानियां और लगभग 30 से भी अधिक लेख जिनका इन्होंने राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में वाचन किया है तथा उनमें से 25 से भी अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।

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