संजय दत्त के रॉकी से संजू बाबा बनने की कहानी: नायक कैसे बना खलनायक

-तेजस पूनिया

संजय दत्त के रॉकी से संजू बाबा बनने तक की कहानी के पहले भाग में उनके जन्म से लेकर उनकी पहली फ़िल्म सिनेमाई पर्दे पर आने तक की कहानी को हमने देखा । इसके साथ ही संक्षेप में यह भी बताया की वे किस तरह के विवादों में फंसे । अब दूसरे भाग में भारतीय सिनेमा के स्वर्णकाल यानी नब्बे के दशक में आई उनकी एक फ़िल्म पर चर्चा और साथ ही उनकी निजी जिंदगी की कुछ कही-अनकही बातें –
भारतीय सिनेमा में अभिनेता अभिनेत्रियों द्वारा नशे की आदत और उसके बाद तोड़-फोड़ या ज्यादा नशे के कारण मौत की खबरें आम बात हैं । संजय दत्त उन्हीं अभिनेताओं में से एक रहे हैं संजय दत्त तकरीबन 9-10 सालों से नशे के आदी थे और एक बार उन्हें उनके पिता सुनील दत्त ने महीने भर तक अमेरिका के साउथ मियानी हॉस्पिटल में भर्ती भी रखा । इसका कारण था संजय दत्त द्वारा जरूरत से अधिक नशा करना और इंजेक्शन आदि लेना किन्तु जीवटता और अदम्य इच्छा शक्ति के बलबूते जब वे हॉस्पिटल से बाहर आए तब वे इसके नकारात्मक प्रभावों को अच्छे तरह से जान चुके थे । तकरीबन 6-7 महीने के लंबे इलाज के बाद नशे से उन्होंने छुटकारा पाया । यह तो हर कोई जानता है कि संजय दत्त पर नशे और देशद्रोह के गंभीर आरोप लगे हैं लेकिन उनकी नब्बे के दशक की एक सुपरहिट फिल्म ‘खलनायक’ जिससे संजय दत्त ने हर सिने प्रेमी के दिल में राज करना शुरू किया उस फिल्म के एक गाने ‘चोली के पीछे क्या है’ का तकरीबन 40 से अधिक राजनीतिक पार्टियों ने एक साथ, एक स्वर में विरोध किया था । यह अब तक किसी भी गाने के लिए किया गया सबसे बड़ा राजनीतिक विरोध है । बॉलीवुड के इस खलनायक ने सैकड़ों हसीनाओं के साथ इश्क फरमाया और तीन शादियाँ की । संजय दत्त का पूरा नाम संजय बलराज दत्त था किन्तु सिनेमा में इतना बड़ा नाम किसी का जमता नहीं इसलिए उन्हें बलराज शब्द को निकालना पड़ा । यह शब्द भी उन्होंने नशे से इलाज कराने के बाद 1985 भारत लौटने पर हटाया और उन्होंने ‘जान की बाज़ी’ फिल्म अपने दम पर सुपरहिट भी करवाई । इस फिल्म के बाद 8 फ़िल्में एक के बाद हिट भी हुई । जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा ।
विधाता , मैं आवारा हूँ फ़िल्में करने के दौरान भी उनकी नशे की आदत बरकरार थी । नशे की हालत में उन्होंने आधी रात को घर से बाहर फायरिंग भी की जिसके बाद उनकी पिस्तौल का लाइसेंस रद्द कर दिया गया । 1993 के मुम्बई धमाके के दौरान वे विदेश में फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थे किन्तु घर पर ए० के० 56 मिलने के कारण उन पर केस दर्ज हुआ । इस केस की सुनवाई के दौरान संजय दत्त ने जो कहा वही उन्होंने कई इंटरव्यूज के दौरान भी दोहराया है । बकौल संजय दत्त बाबरी काण्ड और मुम्बई धमाके से पहले कुख्यात मास्टर माइंड अबू सलेम से उनकी अच्छी दोस्ती थी और जब अबू सलेम उनके घर आया तब संजय दत्त ने अपने परिवार की सुरक्षा के नजरिये से ए० के० 56 को अपने पास रख लिया था । यही बात वे उनकी आने वाली बायोपिक फिल्म के ट्रेलर में देखी, सुनी जा सकती है । ट्रेलर में दिखाया गया है कि – एक पुलिसिया पूछताछ के दौरान रणवीर कपूर जो संजय दत्त का रोल अदा कर रहे हैं कहते हैं “मैं आतंकवादी नहीं हूँ”
बॉलीवुड के इस खलनायक ने हकीकत में पुलिस की मार भी खाई है जिसका भी वर्णन संजू के ट्रेलर में दिखाया गया है । अब यह कितना सच है या झूठ ये तो वही या वह पुलिस वाला ही जानता है । खैर खलनायक फिल्म 1993 में रिलीज हुई थी जिसके निर्माता और निर्देशक थे सुभाष घई । इस फिल्म में संजय दत्त के अलावा माधुरी दीक्षित, अनुपम खेर, राखी गुलजार, ए० के हंगल, अरुण बाली, नीना गुप्ता और जैकी श्राफ भी थे । इस फिल्म ने दो फिल्मफेयर पुरस्कार भी अपने नाम किए थे ।
फिल्म की संक्षिप्त कहानी – फिल्म की शुरुआत फ्लैश बैक से शुरू होती है । जहाँ संजय दत्त (बल्लू) एक प्रसिद्ध अपराधी है । बल्लू को जैकी श्राफ (राम सिन्हा) पकड़ कर जेल में डाल देता है । राम बल्लू से उसके बॉस का नाम उगलवाने में नाकामयाब रहता है । बल्लू जब एक पुलिस वाले पर हाथ उठाता है तब उसके बाद राम और बल्लू के बीच एक्शन सीन फिल्माया जाता है । लहूलुहान बल्लू फिर एक पुलिस वाले पर हाथ उठा देता है । दूसरी ओर राम और गंगा (माधुरी दीक्षित) शादी करने वाले होते हैं कि बल्लू जेल से फरार हो जाता है । उसके जेल से फरार होने पर मिडिया मुर्दाबाद के नारे लगाने लगता है तब गंगा राम की इज्जत के लिए भेष बदल बल्लू की गैंग में तवायफ़, नचनिया बन शामिल हो जाती है । थोड़ी देर बाद फिल्म फ्लैश बैक से निकल कहानी के रूप में वापस फ्लैश बैक में जाती है । जहाँ राम बल्लू की माँ की तस्वीर देखने के बाद उससे मिलता है और उसको बताता है कि बल्लू और राम बचपन में साथ पढ़ा करते थे । जिस स्कूल में बल्लू की माँ टीचर थी । कहानी चलती रहती है और बल्लू की खोज में राम लगा रहता है । रोशन बल्लू का बॉस जिसने उसके बाप को मरवाया और उसकी बहन को मारा वह उसकी माँ को भी मारने का षड्यंत्र रचता है । एक्शन में दौड़ती इस समय कहानी रोचक हो उठती है और फिल्म के अंत में जब अदालत का सीन आता है तब वहाँ बल्लू आकर सारी सच्चाई अदालत के सामने रखता है और अपनी पूरी टीम के साथ वहाँ आत्मसमर्पण कर देता है । फ़िल्म का टाइटल सांग नायक नहीं खलनायक हूँ मैं सदाबहार है । और हर खलनायक में एक नायक छुपा होता है । भारतीय सिनेमा उद्योग के मंत्र अंत भला तो सब भला और सुखद अंत की कहानी बयाँ करता है ।
फिल्म की कहानी के बाद उनकी रियल लाइफ का एक रोचक किस्सा सलमान खान से भी जुड़ा हुआ है । जिसे भी संजय दत्त की बायोपिक में शायद दिखाया गया हो । वह किस्सा संजय दत्त पर टाडा (टेरिरिस्ट एंड डिस्सरप्टिव एक्टिविटीज) कानून के अंतर्गत चल रहे केस के बारे में हैं । इस केस में संजय को 6 साल की सजा हुई थी और इस फैसले के बाद सलमान ने संजय के लिए नकारात्मक बयान दिया । जिस पर संजय और सलमान के बीच खूब कहासुनी हुई । कहा तो यहाँ तक भी जाता है कि संजय और सलमान के बीच आज भी इस मामले के कारण खींच तान बनी हुई है ।

संजय दत्त की बायोपिक और उनकी कुछ सुपरहिट फिल्मों के साथ उनकी निजी और पारिवारिक जिंदगी के कुछ किस्से अगली बार।

रचनाकार परिचय

तेजस पूनिया, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, बांदरसिंदरी, किशनगढ़, अजमेर- 305817

सम्पर्क- +919166373652 +9198802707162

ई-मेल- tejaspoonia@gmail.com

शिक्षा – स्नातकोत्तर उत्तरार्द्ध, राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय

तेजस पूनिया सिनेमा के अलावा भी विविध विषयों पर लिखते रहते हैं। जैसे कि फ़िल्म समीक्षा, कहानी, कविताएँ, लेख और इनकी कुछ कहानियां और लगभग 30 से भी अधिक लेख जिनका इन्होंने राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में वाचन किया है तथा उनमें से 25 से भी अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।

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