दिल्ली की दामिनी से नन्ही आसिफा तक अंधेरों के सफ़र से गुज़र रहे हैं हम!

दिल्ली की दामिनी से नन्ही आसिफा तक…??

16 दिसम्बर 2012 की रात यही कोई 9 से 10 बजे के बीच का वक़्त हुआ होगा।

दिल्ली में रहकर डॉक्टर की पढ़ाई कर रही दामिनी अपने एक दोस्त के साथ साउथ दिल्ली के किसी इलाके से बस में सवार होती है।

बस में उन दोनों के अलावा बस के कंडक्टर,ड्राइवर व उनके अन्य तीन साथी मौजूद थे।

अचानक उन लोगों द्वारा लड़की पर फब्तियाँ कसी जाती हैं,और जब उन दोनों द्वारा इसका विरोध किया जाता है तो उन्हें बुरी तरह पीटा ओर धमकाया जाता है।

मार से जब लड़की का दोस्त बेहोश हो गया तो लड़की के साथ उन्होंने बलात्कार करने की कोशिश की। दामिनी ने उनका डटकर विरोध किया परन्तु जब वह संघर्ष करते-करते थक गयी तब पहले तो उससे बेहोशी की हालत में बलात्कार करने की कोशिश की गई परन्तु सफल न होने पर उन लोगों ने दरिंदगी की हद लांघते हुए जो कुछ किया उस लिख पाने में मैं समर्थ नही हूँ।

बाद में वे सभी उन दोनों को एक शांत स्थान पर बस से नीचे फेंककर भाग गये। किसी तरह उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। वहाँ दरिंदगी का शिकार हुई युवती की हालत में कोई सुधार न होता देख उसे 26 दिसम्बर 2012 को सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल ले जाया गया जहाँ दामिनी ने 29 दिसम्बर 2012 को इस समाज ओर इस देश से एक सवाल करते हुए अपनी सांसों को रोक लिया जिसका जवाब आजतक हम नही दे पाए हैं कि आखिर किस कसूर का वो शिकार हुई थी ?

उस समय दामिनी के इंसाफ को लेकर उठने वाली आवाज़ ये महसूस करा रही थी कि हाँ अब कुछ बदलने वाला है,हम जाग रहे हैं,लेकिन परम्परा की यही कहानी है कि इसे निभाए जाइये,निभाए जाइए ओर बस निभाए ही जाइए।

बदलाव को लेकर हम सोचते ज़रूर हैं।हाथ पैर भी मारते हैं,लेकिन सिर्फ कुछ वक्त के लिए.या किसी नए मुद्दे के इंतेज़ार तक।

आज फिर एक छोटी सी बच्ची से उसकी तीन चार गुना ज़्यादा उम्र के कई लोगों द्वारा कई कई बार बलात्कार किया जाता है.वो मर चुकी है लेकिन हवस ज़िन्दा है और फिर बलात्कार होता है।

मैं दामिनी से किए गए कृत्य की जिस कहानी को लिख पाने में असमर्थ था आसिफ़ा के साथ उससे भी बढ़कर हुआ है।

मैं आपको कैसे बताऊँ की उस माँ के अहसास कैसे होंगे जिसने अपनी चँचल सी जान को इस तरह खोया है।

हवस के पुजारियों के समर्थन में निकाली गई रैली का हर शरीक शख्श मेरी नज़र में दोषी है।

मैं किसी धर्म को नही कोसना चाहता.किसी राजनीति में नही पढ़ना चाहता.बस मेरी शिकायत ओर मेरा गुस्सा एक खास मानसिकता के साथ है,दामिनी के दोषियों के साथ है आसिफा के खिलाफ खड़ी हुई भीड़ के साथ है।

आपसे बहुत दिल से आखिर में एक गुज़ारिश कर रहा हूँ कि ज़रूर खड़े होइए,ज़रूर लड़िए,क्यूंकि हम सबके घर मे एक आसिफा दौड़ती भागती है जिसका भविष्य खतरे में है।

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