चाय की टेबल पर ही संविधान बचाने की क़समें खायी जाती हैं,क्रांति की पटकथा लिखी जाती है

भारत की भूमि आदि काल से ही असंख्य आंदोलनों की गवाह रही है। स्वतंत्रता से पहले भी और उसके बाद भी इस भूमि ने बहुत से आंदोलन देखे हैं। इन सभी आंदोलनों में मुझे एक चीज़ कॉमन लगती है जो शोषक और शोषित दोनों में सामान्य रूप से पायी जाती है। जिससे ऊर्जा हासिल कर के शोषक और भी दमन करता है तथा जिस से ऊर्जा प्राप्त कर के पीड़ित और संघर्ष करता है।

जी हाँ, वो ‘चाय’ ही है जो बड़े बड़े आंदोलनों की रूप रेखा तैयार करने वालों में ऊर्जा का संचार करती है। जितने भी आंदोनल होते हैं वो चाय की टेबल से ही शुरू होते हैं, चाय से ही उन आंदोलनों का ध्वज विजय पथ पर आगे बढ़ता है। चाय की दुकान से ही नए कार्यकर्ताओं को आंदोलन का साथी बनाया जाता है, चाय से ही सलाम, नमस्ते और ख़ैरियत के बाद की पटकथा लिखी जाती है, कॉल कर के चाय की दुकान पर ही नए आंदोलनकारियों को बुलाया जाता है, चाय पी-पी कर के ही System की आलोचना की जाती है, चाय पिला कर के ही System से लड़ने का कर्तव्य याद दिलाया जाता है, चाय की टेबल पर ही संविधान बचाने की क़समें खाई जाती हैं, चाय पीकर ही बाबा साहब अम्बेडकर के कर्म और वचन याद दिलाए जाते हैं।

बहुत से आंदोलन चाय के टेबल से शुरू होते हैं और वहीं दम तोड़ देते, बहुत से कुछ आगे बढ़ते हैं लेकिन ऊर्जा चाय के टेबल से ही प्राप्त करते हैं। कुछ आंदोलन तो हर बार चाय पीने के दरमियान ही शुरू होते हैं और चाय की आख़री घूँट के साथ आख़री साँस लेकर ख़त्म हो जाते हैं और फिर अगली चाय का इंतज़ार होता है।

मुझे भी ‘चाय’ बहुत पसंद है ….इतनी ज़्यादा कि अगर मैं भाजपा शाषित राज्यों की तरह इतिहास बदलने या उसके साथ छेड़-छाड़ की क्षमता रखता तो सबसे पहले मैं मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर के साथ अपना हुनर आज़माता….

‘रगों में दौड़ने फिरने के हम नहीं क़ाएल,
जो आँख ही से न टपके तो फिर ‘चाय’ क्या है’

युग कोई भी हो, सत्ता किसी की भी हो, प्रधानमंत्री कोई हो मगर चाय और चाय का आनंद वही रहेगा जो अतीत में रहा है। हाँ, कुछ चाय पी कर ‘राम राज्य’ की कल्पना को साकार करेंगे और कुछ चाय पी कर अपने अतीत को याद करते हुवे यूँ गुनगुनाएँगें….

‘ऐ आबरु-ए-गंगा, वो दिन है याद तुझको,
उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा…!

-मसीहुज़्ज़मा अंसारी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *