कर्नाटक चुनाव नतीजे: सत्ता का लालच परम्पराओं को कुचल रहा है

कहते हैं परम्पराएँ किसी समाज के बालिग या यूं कहें mature होने की दशा बताती हैं!वो समाज की सामूहिक बुद्धि और सहिष्णुता का आईना होती हैं!जिस संस्कृति में परम्परा स्वस्थ जीती जागती और हँसती खेलती हो वो समाज दुनियाँ को लेकर चलता है!इसीलिए तो ब्रिटेन का संविधान परम्पराओं पर आधारित है क़ानून और नियम उनके लिए होते हैं जो छल कपट करते हैं इसीलिए वो उन्हें तोड़ते भी हैं!हमारा संविधान लिखित है और जब 26 नवंबर 1949 को इसे लागू किया तो कहा कि हम इसे “आत्मार्पित” करते हैं!बिल्कुल ऐसे ही जैसे कोई छात्र पढ़ नहीं पाता तो टाइम टेबल बना लेता है!क्योंकि उसे लगता है कि वो उस दबाव में कुछ पढ़ लेगा!ऐसा ही हमारे साथ भी है!
कल आये कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे और उसके बाद मची राजनीतिक भगदड़ ये बताती है कि हम परम्पराओं को कितना मानते हैं!
एक परम्परा थी कि जिस एक पार्टी के पास सर्वाधिक बहुमत होगा महामहिम राज्यपाल उसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगे!लेकिन सत्ता के लालच ने इस स्वस्थ परम्परा का गला मरोड़ दिया!इसकी शुरुआत की बीजेपी ने!मणिपुर और गोवा में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी कांग्रेस को छका कर बीजेपी ने सरकार बना ली!काँग्रेस देखती रह गयी!नैतिकता और परम्परा मणिपुर की घाटियों और गोवा के बीच पर पैरों तले रुन्द रही थी!लेकिन ऐसा मौक़ा फिर आया इस बार किरदार बदल गए थे!और बीजेपी नैतिकता की बात करके स्वयं सबसे बड़ी पार्टी का दावा कर रही है!लेकिन परम्परा तब तक ही परम्परा रहती है जब तक वो टूट नहीं जाती एक बार टूटने के बाद वो परम्परा रह नहीं जाती!लेकिन अब सवाल राज्यपाल के सामने खड़ा है, ये उनके विवेक पर निर्भर करेगा कि किसे सरकार बनाने का न्यौता दे!लेकिन राज्यपाल जैसलमेर की कठपुतलियों से भी अधिक नाचता है!वो केंद्र सरकार के इशारे संविधान और नैतिकता से अधिक अच्छी तरह समझता है!सच तो ये है कि भारत के संघात्मक ढाँचे और प्रकृति को जितना नुक़सान राज्यपालों ने पहुँचाया है शायद ही किसी और संस्था ने पहुँचाया हो!
खैर जब परम्परायें टूट जाती हैं तो बचता है बस हाहाकार जो साफ दिखाई दे रहा है!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *