राजस्थान में पैरा टीचर्स की दर्दभरी दास्ताँ उन्हीं की ज़ुबानी

राजस्थान में पैरा टीचर की दर्दभरी दास्ताँ उन्हीं की ज़ुबानी
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राजस्थान में पैरा टीचर्स की हालत दिनों दिन बद से बदतर होती जा रही है। काश उनका दर्द प्रदेश के राजनेता समझ पाते कि एक पैरा टीचर कैसे 4000-5000 रुपये में पूरा महीना गुजारा करता होगा।मदरसा जदीद मुस्लिम स्कूल निवाई में पैरा टीचर असरार मोहम्मद अपना दर्द बयां करते हुए कहते है कि उन्होंने बड़े अरमान से 2010 में पैरा टीचर की नौकरी जॉइन की थी। उन्होंने सोचा था कि कुछ सालों बाद सरकार नियमित कर देगी लेकिन सरकारे बदलती रही और किसी ने भी पैरा टीचर्स पर कोई ध्यान नहीं दिया। पैरा टीचर आज भी इसी उम्मीद के साथ काम कर रहें है कि सरकार कभी तो उनकी भी सुनवाई करेगी। आज हालात ये है कि पैरा टीचर्स की तनख्वाह पिछले चार महीने से बकाया है। पैरा टीचर्स कर्ज़ में डूबे हुए हैं, अपनी घर गृहस्थी चलाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। पैरा टीचर्स की तनख्वाह किसी मजदूर की न्यूनतम मजदूरी से भी कम है। आज सरकार ना तो पैरा टीचर्स के बारे में सोच रही है और ना ही मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों के बारे में।
जिन बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है उन्ही बच्चों के भविष्य को संवारने वाले शिक्षकों को एक मजदूर से भी कम वेतन दिया जा रहा है और वो भी समय पर नहीं मिल रहा है। राजस्थान मदरसा बोर्ड द्वारा 3500 विद्यालय संचालित किये जा रहे है जिनमें लगभग 6400 पैराटीचर संविदाकर्मी के रूप में कार्यरत है। इन पैराटीचर को न्यूनतम 4100 से 7500 रूपये का मासिक मानदेय दिया जा रहा है। महंगाई के इस दौर में इतने कम वेतन में मदरसा पैराटीचर का गुजारा करना बहुत मुश्किल है। ना जाने क्यों सरकार मदरसा पैराटीचर के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार कर रही है।
जब #जनमानस_राजस्थान ने राजस्थान मदरसा बोर्ड की चैयरपर्सन मेहरुन्निसा टांक से इस मामले पर सरकार का रुख़ जानने की कोशिश की तो उन्होंने फोन ही नही उठाया, हमने व्हाट्सएप मैसेज के जरिये भी उन तक पैरा टीचर्स की समस्या पहुँचाने का प्रयास किया जिसका भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
पैरा टीचर्स को उनका हक़ दिलवाने के लिए आप भी #जनमानस राजस्थान की इस मुहीम से जुड़िये, आप भी हमे अपने वीडियो संदेश भेज सकते है। हम आपके संदेश को सरकार तक पहुँचाने का पूरा प्रयास करेंगे।

 

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