मेरे जज़्बात-(कविता)

मेरे जज़्बात

लडखडाऊँगी, गिरूंगी, चोट खाऊँगी..
पर टूटने नहीं दूँगी, खुद को, अपने हौसलों को,
अपने जज़्बातों को ।
चाहे लाख बुराई हो मुझमें,
पर दिल तो पाक है।
चाहे हार जाऊँ जिंदगी से,
पर राख बनकर भी तो जीतना है उसे।
चाहे मर जाऊँ इस जहाँ के लिए मैं,
पर मरकर भी सपना तो वो मेरा है।
वो अस्तित्व है मेरा,
मेरी जिंदगी का अहसास,
मेरे सपनों का उदय ।
रब ने दी है नई राह मुझे,
चाहे लाख कोशिश हो,
मुझे हराने की, गिराने की,
मैं गिरूंगी, लडखडाऊँगी, चोट खाऊँगी,
पर टूटने नहीं दूँगी,
अपने जज़्बातों को, अपने सपनों को,
उदय होते मेरे नए हौसलों को।

Aditi Parashar

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