परीक्षा में शर्ट उतार कर बैठाया गया, शर्ट बाहर पेड़ों पर लटकी थी वापस आने पर गायब मिली

-सद्दाम हुसैन

जब तक फेसबुक का लिखने वाला कॉलम नही मिलता लिखना भारी भारी सा लगता हैं। जब देर रात यानी 1-2 या 3-4 बजे या पूरी रात नही सोता तो मन मे बैठा मैं जाग उठता हैं, इसलिए मुझे ये रात बड़ी ठीक ठीक सी लगती हैं।

राजस्थान पुलिस कॉन्स्टेबल की भर्ती 14 जुलाई, हमारे शहर ब्यावर का सरकारी बस स्टेंड- परीक्षा के इंतज़ार में हजारो अभ्यर्थियों का जमावड़ा आज अपने आपको ठगा सा महसूस करने वाला था।
मैं भी घर से निकल बस स्टैंड तक जाती उस सड़क पर अपनी गाड़ी पर भतीजे और बहन को पहली बार जयपुर ले जा रहा था।
बस स्टैंड पहुँचा तो कोई बस गन्तव्य पर सीधा नही लेजा रही थी, इसलिए बीच के किसी स्टैंड की सोच कर वहाँ तक सफर तय किया ।

आज लगभग 5 लाख नोजवानो (लड़के-लडकिया) की मजबूरी का फायदा उठाया जाना था, मजबूरी का फायदा उठाने वाले वहीं लोग हैं जिनका भी मजबूरी में फायदा उठाया जाता हैं।
ये चंद लोग अपने स्तर पर इस काम को अंजाम देने को कमर कस चुके थे, आम जिंदगी बिताने वाले लोग जियो के सस्ते नशे का लुत्फ नही उठा सकते थे कुछ घण्टे। इस दौरान वो इस चकाचौंध में शायद अपने रोजाना के काम (फेसबुक और यूट्यूब पर वक्त बर्बाद करना जो कि इस वक़्त के युवाओं का पेशा ही बन चुका हैं) से थोड़ा एक तरफ होकर कुछ अच्छा कर रहे होंगे।

फिलहाल इस तरह की बलि का मैं तो कई बार शिकार हो चुका हूँ, जिस बलि का शिकार आज राजस्थान के लाखों युवा होने वाले थे.. मुझे मालूम हैं कि जो इस भीड़ में से जीतेंगे वो लोग तो परीक्षा देकर निश्चिंत हो चुके होंगे और बाकी सब अपने नम्बर जोड़ने में लगे जाएंगे ताकि मन को तसल्ली दिला सके।
अब देखो न ये एग्जामिनेशन बोर्ड की ही कारस्तानियां हैं या सरकार की और या फिर सरकार, प्रशासन एवम सब की मिलीभगत तो नही की आज इन सबसे कई महीनों से रुकी वसूली करनी हो।

हम बस में बैठ कर जब अजमेर पहुँचे और यहाँ से सीधे जयपुर को रवाना हुए, तब जाकर कुछ दूरी पर जहाँ शायद एग्जाम सेन्टर्स नही थे इंटरनेट शक्ति का आवागमन हुआ और मैं ऑफलाइन मेप को सेव करने लगा।
इसी बीच रास्ते मे एक ट्रक पलटा हुआ पड़ा था, जिसमे से फंटा FANTA की हजारों बोतलें सड़क पर आ बिखरी थी, लोग बोतले के बंडलों को लिए सरपट भाग रहे थे, कुछ लोग मोटसाइकिल पर तो कोई ट्रेक्टर पर यंहा तक की कुछ तो बस के ड्राइवर भी ऐसा करने से अपने आपको रोक नही पाएं, आज यहाँ मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा था। आरपीसी का एग्जाम देने जा रहे अभ्यर्थी भी शायद इसमें शामिल थे।

मैं इन्ही सब को मन मे लिए इस बात को दोहराए जा रहा था कि “आज तो मजबूरी का फायदा उठाया जाएगा”
हम 200 फिट पर उतरे, मैंने पाया कि नेट बन्द उबेर बन्द ओला बन्द, अभ्यर्थी पैदल ही अपने एग्जाम सेन्टर्स को दौड़े जा रहे हैं।
जबकि रोजाना के मुकाबले आज लो फ्लोर भी कम दिख रही थी, और जिसे देखा था उसको क्रेन खींच कर ले जा रही थी।

मैं अक्सर इस बात का मन ही मन पक्षधर रहा हूँ कि हर मुहल्ले को अपनी एक कमेटी बनाकर, एक सुथरी जगह पर सार्वजनिक शौचालय का निर्माण तो अवश्य ही करना चाहिए क्योंकि आखिर कब तक महिलाएं पेशाब करने के लिए ओट ढूंढती फिरेगी खास कर जब नया शहर हो वो इसलिए क्योकि पुरुषों को तो देखो कुत्ता मूत रहा हैं वाली लाइन लिखी दीवार भी मिल जाये तो भी न छोड़ेंगे, किन्तु ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तंत्र रमन्ते देवता’ जैसे श्लोक का उच्चारण करने या नारा देने वाले लोग महिलाओ को न पूजे पर कम से कम सार्वजनिक महिला शौचालय का तो निर्माण कर ही दे भले वो चार पट्टियों पर टिका ही क्यो न हो।

खैर हमे तो एक भोजनालय में इस प्रसाधन का प्रयोग करने का मौका मिल गया था, तो हम भी उस भोजनालय वाले से खरीददारी भी कर लिए माने सौदे पे सौदा। यहाँ आज हर टेम्पू और कार अभ्यर्थियों से भरी भरी जा रही थी, हमे तो लोडिंग टेम्पू वाला भी सेंटर छोड़ने को तैयार न था जबकि दूना किराया देने को तैयार थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि आज यहाँ मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा था।

जैसे तैसे एक ताऊ जो कि 350 मांग रहा था से भिड़ने के बाद 250 वाला ऑटो मिल गया, दोस्त को अपने सेंटर तक छुड़वाने के बाद बहन के सेंटर पर गए जहाँ पर हम ठीक आधे घण्टे पूर्व पहुच गए थे, एग्जाम शुरू हो चुका था कुछ और लड़कियां भी आयी किन्तु देरी होने के कारण वो एग्जाम में नही बैठ सकती थी। वो रोई की हमारी पूरी तैयारी हैं, बस थोड़ी सी देर हुई हैं हम एग्जाम में बैठने दिया जाए पर आज यहाँ मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा था।

एग्जाम खत्म हुआ, नेटबन्द के कारण आज में प्रधान सेवक के दिये वरदान यानी कैशलेस माने इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा का भी लाभ नहीं उठा पा रहा था और जेब मे मात्र 10 का नोट बचा था जिसका पूरा परिवार, टेम्पू और बस के भाड़े में शहीद हो चुका था। बारिश में भीगते किसी एटीएम से जरूरत के हिसाब से अपनी खर्ची निकाल जब सेंटर से निकलने लगे तो इस ग्रामीण रूपी इलाके से निकलने के लिए ऑटो वाले 400 रुपये मांगने लगने।
हाय ! आज यहाँ मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा था।
खैर चलो एक और सेंटर भी तो चलने वाला था पर मेरा दोस्त हमे रास्ते मे ही मिल गया। हमे लगा कि अब तो किराया तोड़ कर ही लेगा परन्तु ये क्या स्टेशन छोड़ने के पूरे 400 रुपये ही ले लिए
फिर एहसास हुआ आज यहाँ मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा था।
इनके लिए जयपुर नया सा था, भीड़ थी सोचा कि जब तक भीड़ निकले तब तक इन्हें जयपुर घुमा लिया जाये थोड़ा सा।इक्की दुक्की गली में जब पुलिस ट्रैफिक को डायवर्ट कर रही थी तब लगा कि यहाँ तो सिर्फ खड़े खड़े गोल गोल घुमना ही आसान हैं जयपुर में घूमना मुश्किल।जिनके लिए जयपुर की महिलाएं नई थी वो उन्हें घूर घूर कर पुराना कर रहे थे, या कोई उन्हें छेड़ कर अपने आप को संतुष्ट कर रहा था। मुझे ये सब ठीक लगता भी नही हैं तो ठीक लगा भी नही, मैं उन्हें कुछ कह भी नही सकता था तो मैंने कुछ कहा भी नही क्योंकि मेरे खेमे से वो थे नही।
जयपुर आये थे तो एमआई रोड़ और राज मंदिर का चेहरा दिखा मेट्रो का स्पर्श करवा दिया बाकी रही कसर विदेशीयों को देख कर पूरी हो गयी।
मालूम था कि जब बसों में इतनी भीड़ हैं तो ट्रेन में जगह मिलने का तो सवाल ही पैदा नही होता, इसलिए फिर से सिंधी केम्प पहुँच कर बस से ही निकलना था किन्तु ये क्या सिंधी केम्प अब तक नोजवानो की भीड़ से लबालब था। इस गेट से उस गेट लगभग 3-4 चक्कर लगा आखिर में बस के अंदर जाने वाले रास्ते के वही खड़े हो गए, और ब्यावर या अजमेर डिपो का इंतजार करने लगे।

सिंधी केम्प रोज के मुकाबले आज ज्यादा बदबूदार था, मेरी बहन की इस पर बात आई कि इससे बेहतर तो हमारा स्टेशन ही ठीक हैं इतने में पास खड़ी एक महिला, जो शायद परीक्षा देने ही आयी होगी तबियत खराब होने के कारण उल्टियाँ करने लगी, अक्सर जिस भीड़ को महिला की मदद करते देखता हूँ आज वो नदारद थी । इसका कारण सबको घर जाने की जल्दी थी या फिर वो उसके उल्टी करने पर मदद न कर पाना ही था मालूम नहीं, मैं भी इस वक़्त अपने आप को इस लिए रोके खड़ा था क्योंकि भीड़ भरे स्थानों और खास कर स्टेशनों पर कोई भी अनजान व्यक्ति मदद करने आये तो उस पर शक करना वाजिब हो जाता हैं और इसी शक के कारण कही वो मुझे गलत न समझ बैठे। उसके बैग के फिते जमीन से अड़े हुए थे, वो अपने आप को संभाल नही पा रही थी वो एक तरफ आ बैठी। मैं ज्यादा तो क्या मदद करता लेकिन एक पानी की बोतल लाकर मेरी बहन के हाथों उसे पकड़ा दी।

अक्सर औरतो की मदद लोग कभी कभार तब करते हैं जब वो गाड़ी चला रही हो और ब्रेक दबाने के बजाय वो पाव से गाड़ी रोकने की कोशिश कर देती हैं, तब सामने वाले कि सुताई और लड़की की मदद साथ साथ आस पास के लोग कर ही देते है। माना कि दुर्घटना में मदद करनी चाहिए, किन्तु परन्तु, जब लड़कियां- महिलाएं ऐसे हालात में हो जो इससे भी गंभीर हो जैसे- सार्वजनिक स्थानों पर तबियत बिगड़ने, पीरियड्स के दौरान हुई परेशानिया, महिला शौचालय न होने पर कोई प्रबंध इत्यादि तब भी मदद को आना चाहिए, पुरुष तो इनमे से कुछ परेशानियों में मदद न कर सके लेकिन महिलाओं को खुद को ऐसे असहाय महिलाओ और बेटियों की मदद कर ही देनी चाहिए।

शायद अगली दफे जब आपकी बेटी या आप खुद ऐसे असहाय महसूस करे तब वो आपकी मदद कर दे, क्योकि आज जिस तरीके से ये बेटी असहाय थी इन्ही चंद कारणों से ही तो माता पिता अपनी बेटियों को आगे बढ़ने से खुद को एक कदम पीछे खींच लेते हैं। जिससे कि इंसानी समाज बेटियों को सुरक्षित के बजाय और असुरक्षित महसूस करवा देता हैं।

अब रात 8:35 पर जो ये बस हमें मिली हैं, इसमें सीट भी मिली हैं किन्तु ये रवाना होने का नाम नही ले रही हैं आखिर ही आखिर में ये 9:30 पर शुरू हो गयी।
इस दौरान बाते हुई कि मेरे दोस्त वाले सेंटर पर जो लड़के पूरा शर्ट पहन कर आये थे उन्हें शर्ट उतार कर बिठाया गया, और शर्ट जो बाहर पेड़ों पर लटकाये वो वापस आने पर गायब थे।
कभी कभी लगता हैं इन सरकारी परीक्षाओं ने जेब को तो नंगा (खाली) किया ही परन्तु अभ्यर्थियों से ये कपड़े कम पहनने बनियान में परीक्षा देने या कई बार तो सिर्फ कच्छों में एग्जाम देने को कहा हैं, उम्मीद हैं ये हद बस पार न हो और परीक्षायें मर्यादाओं को लांघकर न ली जाए।

परीक्षा लेने वाले भी गजब हैं, जब गत वर्षों में अभ्यर्थी कम थे तब लगातार 5 से 7 दिन परीक्षाएं लेते थे किंतु इस बार जब अभ्यर्थी ज्यादा हैं तब इन्होंने सिर्फ दो दिन में निपटा लिया ।
परीक्षा केंद्र तो पहले भी दूर थे किंतु इन्हें थोड़े से पास भी करने चाहिए थे, एक तो वैसे भी सरकार ने रोजगार के नाम पर लूट मचा रखी हैं ऊपर से एक साथ इतनी समस्यायें जिनमे से प्रमुख रूप से परीक्षा केंद्रों तक जाने का साधन, रुकने की व्यवस्था , नजदीकी शहर में परीक्षा केंद्रों का चयन आदि।
अब इन्ही सब को समेटते हुए मैं इस पन्ने को लिख रहा हूँ, ये समझ रहा हूँ की आज यहाँ मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा हैं मेरी नही सबकी मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा हैं।

अब ब्यावर पहुँच, अपनी गाड़ी लेकर अपने भतीजे और बहन के साथ घर आ रहा हूँ परीक्षार्थी आज की परीक्षा के लिए रात भर जहाँ भिखारी भी न बैठे ऐसी जगह पर बैठे हैं, डिवाइडर वाली लाइन पर बैठे हैं… न जाने कैसे ये लोग इस रात को बिता पाएंगे।
पर अब तो ये बात इन्हें भी समझ जानी चाहिए कि आज यहाँ मजबूरी का फायदा उठाया जाएगा ।

अब इस परीक्षा के रिजल्ट को रोके रखेंगे ये , एलडीसी और रेलवे की भी परीक्षाए बाकी है। इन्हें तुम्हारी हमारी मजबूरियों का जबरदस्त फायदा उठाना हैं और फिर जब कल हम हमारे पदों पर आसीन होंगे तब हम किसी और का फायदा उठायेंगे और ये चक्र शायद इंसानियत का दमन करता रहेगा।

और उस दिन मेरी तरह कोई और विचारक, लेखक या कोई भी जिसकी लेखनी मुझसे बेहतर होगी, वो इस पर विचार करते हुए लिखेगा की “आज यहाँ मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा था।”

✍सद्दाम हुसैन

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