आख़िर हिटलर यहूदियों से इतनी नफरत क्युँ करता था, कि उसने 60 लाख यहूदी मरवा दिए !


मुझसे बहुत लोग यह सवाल करते रहे हैं कि “हिटलर” यहूदियों से इतना नफरत क्युँ करता था ? मैंने इस पर शोध किया तो तथ्य देख कर हिल गया।

एक बारगी तो लगा कि हिटलर सही था। पर बेगुनाहों की हत्या और हिंसा कभी भी उचित नहीं यह सोच कर हिटलर को ही बुरा माना क्युँकि किसी या कुछ इंसानों की के गलत कर्म पर उसके पूरे बेगुनाह समाज को सजा नहीं दी जा सकती।

दरअसल , ऐतिहासिक तथ्य है कि 1930 के दशक में यहूदियों के धोखेबाज स्वभाव और आचरण से ही जर्मनी की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से ने एक ऐसे समाज में रहने की रजामंदी जताई, जो यहुदियों के प्रति नफरत, जातीय श्रेष्ठता की अवधारणा और हिंसा पर आधारित थी और उसी सोच ने हिटलर को जर्मनी में प्रचंड बहुमत दिलाई।

क्युँकि तब तक उनकी धारणा बन गयी कि उनके देश के यहूदी लोग हर उस चीज की नुमाइंदगी करते हैं, जो जर्मनों के खिलाफ है और इसलिए यहूदियों को खत्म कर दिया जाना चाहिए। यहूदियों के खिलाफ यह नफरत तब केवल हिटलर की नहीं बल्कि जर्मनी के सारे नान-यहूदी लोगों की थी। बल्कि ऐसी धारणा पूरे युरोप में बन चुकी थी।

पर सवाल यह है कि यहूदियों ने जर्मनी में ऐसा क्या किया कि उनसे हर कोई उनके जेनोसाईड की हद तक नफरत करने लगा।

“हिटलर” को ज्यूस या यहूदी लोग क्यों नहीं पसंद थे इसके बहुत सारे कारण बताये जाते हैं। पहली बात तो फिर यह समझ लीजिए कि उस समय सिर्फ “हिटलर” ही यहूदियों के विरुद्ध नहीं था बल्कि पूरा युरोप ही इनके विरुद्ध था।

यूरोप में हिटलर के समय से पूर्व ही यहूदियों के विरुद्ध घृणा पैदा हो चुकी थी। और कहा जाता है की यहूदी अक्सर धार्मिक कारणों से भेदभाव और उत्पीड़न का भी शिकार होते थे। तो इसके भी तथ्यात्मक कारण हैं।

दरअसल , ईसा मसीह के आख़िरी धर्मोपदेश के बाद उनकी मुखबिरी कर उन्हें गिरफ़्तार कराने वाला व्यक्ति उनका एक अनुयायी “यहूदी” ही था।

ईसाइयों द्वारा यहूदियों को इसी कारण अविश्वास के रूप में देखा जाता था। यहूदियों को कभी-कभी धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता था या उन्हें कुछ व्यवसायों को करने की अनुमति नहीं दी जाती थी। यहां तक कि यहूदी जो ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे, उनको भी अलग ही माना जाता था।

हिटलर के नफरत का एक और कारण स्वयं हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है की “जब वह विएना में चित्रकार थे, तब वह यहूदियों के विरुद्ध जाना शुरू किया क्युँकि उसे एक यहूदी वैश्या से एक संक्रमण रोग हुआ था।”

मगर यहूदियों से हिटलर के नफरत की जड़ प्रथम विश्व युद्ध में ही छुपी थी। प्रथम विश्वयुद्ध 1918 में जर्मनी की हार उसके देश के यहूदी नागरिकों द्वारा धोखा देने के कारण हुई थी। यह इतिहास हिटलर के दिमाग में बैठ गयी थी।

वैसे तो मनगढ़त बातें बहुत हैं मगर तथ्यात्मक रूप से यही बातें यहूदियों के प्रति हिटलर की नफरत को पैदा करती हैं। और 1920 में जब वह राजनीति में आया तो इनको देश का “किटाणु” कह कर जर्मन लोगों के मतों से सत्ता पाई और 1940 के दशक में 60 लाख यहूदियों का “होलोकाॅस्ट” करा दिया।

दरअसल धोखा ही यहूदियों का चरित्र है। अरब इतिहास इनके धोखे से भरा पड़ा है। “ख़ैबर की जंग” मुस्लिम और यहूदियों के बीच यहूदियों के समझौता तोड़ने और बेईमानी करने के चलते ही हुई थी।

यही नहीं यहूदियों ने अपने नबी “मूसा” की मौजूदगी में ही बार-बार उनके विश्वास को तोड़ा और हमेशा उन्हें शक की नज़र से ही देखा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मूसा लाल सागर को चीर कर उन्हें दूसरी और ले गए थे, जोकि एक असंभव सा काम था फ़िर भी मूसा पर उनका शक कभी कम नही हुआ।

बाकी फिलिस्तीन द्वारा उन पर किए एहसान का बदला चुकाते और उनको धोखा देते हुए आप देख ही रहे हैं। अरबों पर उनकी नमाज़ और इबादत के वक़्त बम फेंक फेंककर वह अपनी इसी दास्तान और इंसानियत का वह 1945 से सुबूत दे रहा है।

हिटलर ने कहा था

“मैंने कुछ यहूदियों को इस लिए जीवित छोड़ दिया , ताकि दुनिया समझ सके कि मैंने उन्हें क्यों मारा”

-M. Zahid

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