गहलोत क्यों नहीं कर रहे हैं अल्पसंख्यकों से संबंधित बोर्ड,आयोग में राजनैतिक नियुक्तियां ?


राजस्थान में कांग्रेस की गहलोत सरकार को बने हुए ढाई साल हो गए है लेकिन प्रदेश में अल्पसंख्यकों से सम्बंधित बोर्ड, निगम और आयोग अब भी राजनैतिक नियुक्तियों के लिए तरस रहे हैं.

हालांकि कुछ संवैधानिक पदों पर मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा अपने कुछ लोगों को एक एक करके नियुक्त दी गई है. लेकिन इन नियुक्तियों में भी रिटायर्ड अधिकारियों को ही प्राथमिकता दी गई है. कुछ नाम मात्र की नियुक्तियों के अलावा अन्य सभी बोर्ड, निगम और आयोग में राजनीतिक नियुक्तियां करने से गहलोत सरकार ने दूरी बनाई हुई है.

दिसंबर 2018 में प्रदेश में सरकार बदलने के बाद से ही कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं को भी राजनीतिक नियुक्तियों के माध्यम से सत्ता में भागीदारी मिलने की उम्मीद थी. कांग्रेस की सरकार बनने के ढाई साल बीत जाने के बाद भी आम कार्यकर्ताओं को सत्ता मे भागीदारी नहीं मिलने से कांग्रेस के नेताओं का गुस्सा अब झलकने लगा है.

राजस्थान में कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक समझा जाने वाले अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बंधित बोर्ड व निगमों में भी किसी तरह की नियुक्तियां अभी तक देखने को नहीं मिली है.

भाजपा सरकार के समय गठित राजस्थान वक्फ बोर्ड का कार्यकाल 8 मार्च 2021 को पुरा हो चुका है. हज जैसे पवित्र सफर का इंतज़ाम करने के लिए गठित राजस्थान राज्य हज कमेटी का गठन गहलोत सरकार ने अभी तक नहीं किया है. उर्दू भाषा की तरक्की और उसके विकास की राह मे आने वाली रुकावटो को दूर करने के लिये गठित होने वाली राज्य उर्दू एकेडमी का भी सरकार ने अभी तक गठन नहीं किया है.

मुस्लिम समुदाय को शिक्षा से जोड़ने में मदरसों का अहम किरदार माना जाता है. मदरसों में शिक्षा का इंतज़ाम करने, मदरसों का आधारभूत ढांचा सुधारने और मदरसा पैराटीचर्स की समस्याओं का हल तलाशने के लिये गठित होने वाले राजस्थान मदरसा बोर्ड का गठन भी सरकार ने अभी तक नहीं किया है. मदरसा पैरा टीचर्स लंबे समय से नियमित किए जाने की मांग कर रहे हैं लेकिन उस पर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है.

अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बंधित मामलों पर संज्ञान लेकर सरकार को सलाह देने के लिये गठित होने वाले राजस्थान अल्पसंख्यक आयोग में भी अब तक कोई नियुक्ति नहीं की गई है. अल्पसंख्यक आयोग का गठन नहीं होने से प्रदेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार की सुनवाई का एक दरवाजा बंद पड़ा हुआ है.

इसी तरह राजस्थान वक्फ विकास परिषद व मेवात विकास बोर्ड का गठन भी अभी तक बकाया चल रहा है. इसके अलावा राजस्थान अल्पसंख्यक विकास एव वित्त विकास परिषद का गठन भी बाकी चल रहा है. इसके अतिरिक्त जिला स्तर पर अल्पसंख्यक उत्थान व उनसे सम्बंधित योजनाओं पर नजर रखने के लिये गठित होने वाली पंद्रह सूत्री कार्यक्रम समितियों में मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ताओं का मनोनयन एक भी जगह नही हुआ है.

सामाजिक कार्यकर्ता अशफ़ाक कायमखानी बताते हैं कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनवाने के लिए अल्पसंख्यक समुदाय ने कांग्रेस के पक्ष मे एक तरफा मतदान किया था. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक तरफ तो खुद को अल्पसंख्यक समुदाय का हितेषी बताते हैं वहीं दूसरी और अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बंधित बोर्ड-निगम व समितियों का गठन अभी तक नहीं किया है. अल्पसंख्यकों से संबंधित राजनीतिक नियुक्तियां नही होने से अब मुख्यमंत्री की अल्पसंख्यक विरोधी छवि समुदाय में बन रही है.

राजस्थान मुस्लिम फोरम के सचिव और जमाते इस्लामी हिंद राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष मोहम्मद नाज़िमुद्दीन कहते हैं कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बने हुए ढाई साल बीत गया है लेकिन अब तक अल्पसंख्यकों से संबंधित बोर्ड, निगम और आयोग में नियुक्तियां नहीं हुई है इसी से पता चलता है कि सरकार को अल्पसंख्यकों की कितनी चिंता है.

वो आगे कहते हैं ऐसा महसूस होता है कि सरकार को अल्पसंख्यकों के मुद्दों की कोई परवाह ही नहीं है. अल्पसंख्यकों से संबंधित विभागों में नियुक्तियां नहीं होने से समुदाय की जो जायज़ मांगें है वो भी हल नहीं हो पा रही है. इससे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में नाराज़गी बढ़ रही है. सरकार को चाहिए कि अब जल्द से जल्द राजनीतिक नियुक्तियां कर देनी चाहिए.

मिल्ली काउंसिल के जनरल सेक्रेटरी और राजस्थान वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन अब्दुल कय्यूम अख्तर इस बारे में कहते हैं कि राजनीतिक नियुक्तियां में देरी की वजह अल्पसंख्यकों का कोई पॉलिटिकल प्रेशर नहीं होना है. सरकार बने हुए इतना वक्त बीत जाने के बाद भी राजनीतिक नियुक्तियों के लिए अब तक समुदाय की तरफ से किसी तरह का कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया गया है.

वो कहते हैं कि राजस्थान में मुस्लिम समुदाय के 9 विधायक सरकार में है लेकिन किसी की तरफ से कोई दबाव अब तक नहीं बनाया गया है. यह राजनीति का मसला नहीं है यह मुस्लिम लीडरशिप की कमजोरी है. मदरसों के हालात खराब है लेकिन मदरसा बोर्ड का कोई चेयरमैन नहीं होने की वजह से कोई काम नहीं हो रहा है.

यह भी एक वजह है देरी की

राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनने के ढाई साल बाद भी राजनीतिक नियुक्तियां नहीं होने की एक बड़ी वजह कांग्रेस की आपसी गुटबाजी भी है. प्रदेश कांग्रेस गहलोत और पायलट गुट में बंटी हुई है. गहलोत और पायलट के बीच सत्ता को लेकर चल रही खींचतान का नुकसान कार्यकर्ताओं को उठाना पड़ रहा है.

राजस्थान में सरकार बनने के बाद से ही सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच सत्ता के बंटवारे को लेकर विवाद चल रहा है. गहलोत और पायलट की आपसी खींचतान की वजह से ही राजस्थान में अब तक मंत्री मंडल विस्तार भी रुका हुआ है. कांग्रेस आलाकमान भी अब तक गहलोत और पायलट में समझौता करवाने में असफल रहा है. जब तक गहलोत और पायलट गुट की लड़ाई किसी निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंच जाती तब तक मंत्रीमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की संभावना नज़र नहीं आ रही है.


 

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