लघुकथा- दीन दुखियों की सेवा करना, यही सबसे बड़ा धर्म

आज उसका इंटरव्यू था। वह सोच रहा था, काश! आज इंटरव्यू में पास हो गया तो जल्दी यह घर छोड़कर शहर शिफ्ट हो जाऊंगा। पिताजी की रोज की किचकिच, नए-नए पाठ से मुक्ति मिल जाएगी।

घर से निकलते वक्त भी पिताजी ने सबक सिखाया कि किसी भी परिस्थिति में दीन दुखियों की सेवा करना। यही सबसे बड़ा धर्म है। वह मन ही मन सोच रहा था- आज इंटरव्यू के दिन भी सबक…. कहीं इस चक्कर में लेट ना हो जाए! हां पापा, सब समझ गया.. कहकर वह घर से निकल गया।पापा ने जाते हुए सर पर हाथ रख कर प्यार भरा आशीर्वाद दिया और फिर याद दिलाया कि अपने संस्कार मत भूलना।

ऑटो में बैठ गंतव्य की ओर चल पड़ा। रास्ते में एक अनजान राहगीर दुर्घटना का शिकार होकर सड़क पर गिरा पड़ा था लेकिन उसे उठाने वाला कोई नहीं था। कोई मदद कर देगा, मुझे तो इंटरव्यू में जाना है। सहसा पापा की बात याद आ गई, कानों में पापा के शब्द गूंजने लगे। तुरंत ऑटो को रोक घायल को हॉस्पिटल पहुंचाने का फैसला कर लिया।

सारे काम निपटा कर ऑफिस पहुंचा तो उसका नाम पुकारा जा रहा था। हाँफते हुए वह अंदर गया, इंटरव्यू लेने वाले ने देर से पहुंचने का कारण पूछा, उसने सच सच बता दिया। ‘ज्वाइनिंग कब ले रहे हो’? मैनेजर ने उसकी फ़ाइल पर साइन कर दिया था। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था, उसे लग रहा था उसके साथ मजाक किया गया हो।

हाँ, जिसके पास इंसानियत, तहजीब व संस्कार न हो, उच्च शिक्षा पाकर भी वह अनपढ़ ही रहता है और जिंदगी के दौड़ में वह कामयाब नहीं हो सकता। तुम्हारी नौकरी पक्की- मैनेजर ने कहा।

वह बहुत खुश था, घर जाकर पापा से माफी मांगी, और गले लगा लिया। आज उसे महसूस हुआ था कि माँ बाप छोटी छोटी बातों पर क्यों टोकते हैं? आज उसे मालूम हुआ था कि तालीम के साथ साथ इंसानियत, तहजीब, संस्कार एवं अच्छे व्यवहार का अपना मकाम है।

ज़फर अहमद

(विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनके लेख,कविता, कहानियां छपती रहती है)

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