प्रथम विश्वयुद्ध के भारतीय वीरों की कहानी – सज्जन सिंह रंगरूट पंजाबी फ़िल्म समीक्षा

-तेजस पूनिया

बॉलीवुड के अलावा पाकिस्तानी ड्रामा और पंजाबी फिल्मों का मैं मुरीद हूँ। हालाँकि पंजाबी फिल्में कम ही देखी हैं और उससे भी कम उन पर लिखा है। परंतु कल रात देखी सज्जन सिंह रंगरूट जो प्रथम विश्वयुद्ध पर आधारित है। युद्ध पर आधारित इससे पहले पंजाबी फिल्मों की बात करें तो एनिमेटेड फिल्में जरूर बनी थीं। किंतु प्रॉपर फ़िल्म सम्भवतः यह पहली है।

सज्जन सिंह अमर रहे…. सज्जन सिंह अमर रहे… सज्जन सिंह जिंदाबाद…. जिंदाबाद…. अरे अरे ये क्या? रुकिए ठहरिए। ये कोई नेता या फ़िल्मी सितारे के लिए नारे नहीं लग रहे। ये नारे लग रहे हैं प्रथम विश्वयुद्ध के नायक और ब्रिटिश सेना के सिपाही रहे महाराज सज्जन सिंह के अमर बलिदान के लिए। प्रथम विश्व युद्ध के संबंध में इतिहास में लिखा मिलता है कि महाराज सज्जन सिंह ब्रिटिश सेना के सिपाही थे और 1893 से 1947 के बीच रतलाम ( वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य का हिस्सा) के पहले महाराज भी रहे थे। महाराज सज्जन सिंह जर्मनी के खिलाफ प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान पश्चिमी मोर्चे पर तैनात थे।

पंकज बत्रा निर्देशित और बॉबी बजाज निर्मित फ़िल्म में मुख्य भूमिका के रूप में सज्जन सिंह दलजीत दोसाँझ बने हैं। दलजीत एक विश्व प्रसिद्ध पंजाबी गायक हैं और पिछले कुछ अर्से से फिल्मों में भी बेहतरीन अभिनय का लोहा मनवाया है। बॉलीवुड की उड़ता पंजाब में बेहतरीन अभिनय के उन्हें काफ़ी सराहा गया। ख़ैर दलजीत के अलावा योगराज सिंह, सुनंदा शर्मा, जगजीत संधू, धीरज कुमार, जरनैल सिंह ने फ़िल्म में सहयोगी कलाकार के रूप में बखूबी काम किया है।

फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह है- सज्जन सिंह अपनी माँ बाप की इकलौती संतान है। और उसके पिता ब्रिटिश हुकूमत के अधीन तत्कालीन भारत के ब्रिटिश अधिकारी का नोकर है। उसके पिता 10 साल की नोकरी के एवज में तथा अपनी अनन्य निष्ठा के बदले अपने बेटे सज्जन सिंह को ब्रिटिश आर्मी में भर्ती कर लेने का अनुनय विनय करते हैं। जिसे स्वीकार कर लिया जाता है। करीब 3 महीने की कठिन आर्मी ट्रेनिंग के बाद प्रथम विश्वयुद्ध में उन्हें भारत की ओर से ब्रिटिश सेना के लिए लड़ने जा रही फ़ौज में भेजा जाता है। यूरोप जाने से पहले उसके पिता उसे रोकना चाहते हैं परंतु माँ कहती है मैंने अपना बेटा घर में रखने के लिए पैदा नहीं किया। माँ के जज़्बे के सामने पिता को झुकना पड़ता है और इस तरह सज्जन सिंह यूरोप पहुँच जाते हैं। वहाँ एक अंग्रेजी मैम्म उन्हें पसंद करने लगती है लेकिन वे उसे यह कहकर मिलने से मना कर देते हैं कि उसका रिश्ता पहले से फिक्स है। पंजाबी भाषा के अनुसार वे बाँधें जा चुके हैं किसी ओर के साथ। कहानी एक बार फ्लैश बैक में आती है और उनके बाल विवाह को दिखाया जाता है। कहानी पुनः लौटती है और युद्ध की विभिन्न विभीषिकाओं, लाखों लोगों सैनिकों की शहादत को दिखाते हुए फ़िल्म आपको रुलाती है, रौंगटे खड़े करती है। इससे भी ज्यादा प्रथम विश्व युद्ध मे मारे गए तमाम लोगों के प्रति संवेदनशील बनाती है। फ़िल्म के अंत में एक बार फिर से फ्लैश बैक आता है और उसके बाद वे अपने ऑफिसर जोरावर सिंह से कहते हैं इस समय वे फ़ौज से बंधे हुए हैं। कहकर वे माइन को उड़ाने चले जाते हैं और ब्रिटिश आर्मी युद्ध जीत जाती है।

फ़िल्म में रोमांस की फुहारें हैं, लगातार चलते पंजाबी हिंदी मिश्रित गाने हैं जो आपको फ़िल्म से एक मिनट के लिए भी दूर नहीं होने देते। फ़िल्म के गानों की बात करें तो “पीपा” गाना ऐसा है जो आपको भंगड़ा करने के लिए मजबूर कर देता है। तो “मेरा कौन मरया” गाना आपको भावुक करता है।

इसके अलावा “सज्जना” टाइटल सांग भी प्यारा लगता है। फ़िल्म के अधिकतर गाने दलजीत की आवाज में ही हैं इसलिए भी ये फ़िल्म में उनके कैरेक्टर के साथ एकदम फिट बैठते हैं।

यह फ़िल्म 23 मार्च को रिलीज हुई थी इसी दिन बॉलीवुड की ‘वेलकम टू न्यूयॉर्क’ भी रिलीज हुई। दोनों फिल्मों की टक्कर में सज्जन सिंह रंगरूट ज्यादा आगे निकलती हुई दिखाई देती है।

समीक्षक परिचय 

लेखक – तेजस पूनिया राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व छात्र हैं और कहानी, कविताएँ , फ़िल्म समीक्षाएं एवं विभिन्न राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं के लिए लेख लिख चुके हैं।

(किसी भी तरह के कॉपीराइट क्लैम की जिम्मेदारी रचनाकार की है)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *