राजकुमार रिणवा की घर वापसी,क्या रफीक़ मंडेलिया के लिए बन पाएंगे बजरंगबली!

 


राजकुमार रिणवा की घर वापसी, क्या मंडेलिया के लिए बन पाएंगे बजरंगबली ?

प्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए जहां एक तरफ प्रत्याशियों का नामांकन दौर शुरू हो चुका है वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दलों में आयाराम-गयाराम का सिलसिला भी चरम पर है।

बेनीवाल और घनश्याम तिवाड़ी के बाद अब खबर आई है कि भाजपा सरकार में मंत्री और रतनगढ़ विधानसभा के पूर्व विधायक राजकुमार रिणवा ने कांग्रेस का झंडा थाम लिया है।

रिणवा पिछली वसुंधरा सरकार में देवस्थान विभाग और खनन विभाग संभाल चुके हैं। इसके अलावा तीन बार भाजपा से रतनगढ़ विधानसभा के विधायक रहे।

क्या रही पार्टी छोड़ने की वजह ?

हाल में हुए विधानसभा चुनाव में आलाकमान ने उनका टिकट काट दिया था जिसके बाद से ही उनके बगावती सुर तेज हो गए थे। हालांकि रिणवा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन कुछ खास नहीं कर पाए।

आपको बता दें कि रिणवा ने अपनी राजनीतिक पारी कांग्रेस से ही शुरू की थी और अब उनके मुताबिक वो अपने घर वापस जा रहे हैं।

राजकुमार रिणवा के बारे में थोड़ा जान लीजिए

24 जून 1953 को चूरू जिले के रतनगढ़ में पैदा हुए रिणवा ने बीकॉम, एलएलबी तक पढ़ाई की जिसके बाद वो इंडियन एयर फोर्स में जाना चाहते थे।

हालांकि ये सपना पूरा नहीं हुआ। रिणवा ने रतनगढ़ विधानसभा में भाजपा को लगातार 2 बार जीतकर मजबूत किया।

चुरू लोकसभा का गणित भी समझिए

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक 27,16,040 वोटर्स में से 75.45 प्रतिशत हिस्सा गांव में और 24.55 प्रतिशत लोग शहरों में रहते हैं। जातिगत आधार पर देखें तो कुल आबादी का 22.35 फीसदी अनुसूचित जाति औऱ 17 फीसदी आबादी अल्पसंख्यक है।

               सचिन पायलट और रफीक़ मंडेलिया


शुरू से ही जाटों का दबदबा रखने वाली चुरू लोकसभा सीट पर भाजपा ने जहां इस बार राहुल कस्वां को टिकट दिया है वहीं कांग्रेस ने रफीक मंडेलिया पर भरोसा जताया है।

चुरू लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें चुरू जिले की 6-सादुलपुर, तारानगर, सुजानगढ़, सरदारशहर, चुरू, रतनगढ़ और हनुमानगढ़ जिले की 2 सीट-नोहार और भादरा शामिल हैं।

हाल में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस का चुरू जिले की 4 सीटों पर और बीजेपी का 2 सीटों पर कब्जा है। रिणवा के कांग्रेस में आने से मंडेलिया को रतनगढ़ और चुरू में फायदा होने की संभावना साफ तौर पर देखी जा रही है।

– अवधेश पारीक

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