राजस्थान:लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की लिस्ट से ग़ायब हो सकता है मुस्लिम उम्मीदवार का नाम!

राजस्थान में लोकसभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस ने समुदाय को अनेक दफा गच्चा भी दिया है। 1962-1967-1972 व 1979 मे किसी भी मुस्लिम को कांग्रैस ने राजस्थान से लोकसभा उम्मीदवार नही बनाया।

भारत मे लोकतांत्रिक तरीको से चुनी जाने वाली सरकार के कायम होने के लिये शुरुआत मे पहला आम लोकसभा चुनाव कुल 489 सीटो के लिये 25-अक्टूबर 1951 से 21-फरवरी 1952 तक के चार माह मे चुनावी प्रक्रिया पुरी होने के बाद लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुवा था। 1952 के इन आम लोकसभा चुनाव मे कांग्रैस ने राजस्थान मे एक मात्र मुस्लिम उम्मीदवार जोधपुर से एम एच यासीन नूरी को बनाया था। लेकिन नूरी चुनाव जीत नही पाये थे।

1952 मे जोधपुर से यासीन नूरी के लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद उन्हें कांग्रैस ने 1957 मे जोधपुर से फिर उम्मीदवार बनाया। 1957 मे ही नूरी के अलावा भीलवाडा से कांग्रैस ने फिरोज शाह को भी उम्मीदवार बनाया लेकिन दोनो ही मुस्लिम उम्मीदवार लोकसभा चुनाव जीत नही पाये तो कांग्रैस ने 1962,1967, व 1972 के लोकसभा चुनाव मे किसी भी मुस्लिम को कांग्रैस ने उम्मीदवार नही बनाकर मुस्लिम समुदाय को केवल मतदाता की हैसियत से नापा। पर 1977 मे जनता पार्टी लहर के चलते कांग्रैस ने मोहम्मद उसमान आरीफ को चूरु से लोकसभा उम्मीदवार बनाया लेकिन वो भी मात खा बैठे।

1977 की जनता पार्टी की आंधी मे कांग्रेस के नागौर से उम्मीदवार नाथूराम मिर्धा को छोड़कर सभी उम्मीदवार चुनाव हार गये थे। चूरु से उसमान आरीफ के 1977 मे चुनाव हारने के बाद 1979 के लोकसभा चुनाव मे कांग्रैस ने फिर किसी मुस्लिम को उम्मीदवार नही बनाया। इसके बाद 1984 के लोकसभा चुनाव मे झूंझुनू से अय्यूब खान को उम्मीदवार बनाया ओर वो चुनाव जीत कर सांसद बने। इसके बाद 1989,1991, 1996 मे भी झूंझुनू से अय्यूब खा को उम्मीदवार बनाया लेकिन अय्यूब खा 1984 के बाद 1991 मे फिर चुनाव जीतकर सांसद बने ओर उस कार्यकाल मे केंद्र सरकार मे मंत्री भी रहे थे।

1996 के चुनाव मे ही भरतपुर से कांग्रैस ने चोधरी तैयब हुसैन को भी लोकसभा उम्मीदवार बनाया। पर 1996 मे तैयब हुसैन व झूझूनु से अय्यूब खान दोनो ही चुनाव हार गये।

1998 मे जयपुर से कांग्रैस के सईद गुडएज को लोकसभा चुनाव मे उम्मीदवार बनाने पर वो भी जीत नही पाये। इसके बाद 1999 मे झालावाड़ से अबरार अहमद को, 2004 मे अजमेर से हबीबुर्रहमान को, 2009 मे चूरु से रफीक मण्डेलीया को एवं 2014 मे टोंक-सवाईमाधोपुर से अजहरुद्दीन को कांग्रैस ने अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन उक्त सभी उम्मीदवार चुनाव जीत नही पाये।

राजस्थान की कुल आबादी का तकरीबन चोदाह प्रतिशत वाला मुस्लिम समुदाय के करीब 11-12 लोकसभा सीटो पर 15-17 प्रतिशत मतदाता होना बताया जाता है।

जिनमे झूंझुनू, सीकर, बाडमेर-जैसलमेर, नागोर, अलवर, कोटा, अजमेर, जोधपुर, चूरू, टोंक-सवाईमाधोपुर व भरतपुर लोकसभा क्षेत्र शामिल है। फिर भी कांग्रैस 2019 के आम लोकसभा चुनाव मे मुस्लिम समुदाय के मत तो हर हालत मे लेना चाहती है। लेकिन सोफ्ट हिंदुत्व के रास्ते पर चलते हुये कांग्रैस नेता 1962, 1967, 1972 व 1979 की तरह 2019 मे भी किसी भी मुस्लिम को उम्मीदवार बनाने से पूरी तरह कतरा रहे है।

28-फरवरी से 2-मार्च तक कांग्रैस वर्किंग कमेटी की उम्मीदवारो के नाम तय करने को लेकर अहम बैठक होने वाली है। उक्त तीन दिन होने वाले मंथन से पहले राजस्थान के मुस्लिम नेता प्रभावी राजनीतिक दवाब बनाने मे कामयाब रहे तो बात बन सकती है। वरना कांग्रैस दल से मुस्लिम उम्मीदवार का नाम सूची से बाहर हो सकता है।

हालांकि राजस्थान के चूरु से खानूखान, रफीक मण्डेलीया, व डा.निजाम व झूझूनु से शब्बीर हुसैन एवं जयपुर शहर हे अश्क अली टांक व दूर्रु मियां का नाम टिकट पाने वालो की दोड़ मे शुमार माना जा रहा है। पर देखना होगा कि उक्त मुस्लिम नेता हाईकमान पर किस हद तक राजनीतिक दवाब बनाने मे कामयाब होते है। प्रदेश मे पहले व अब तक के आखिरी मुस्लिम सांसद मात्र केप्टन अय्यूब खा रहे है। जिन्होंने 1984 व 1991 मे झूंझुनू लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत पाये है।

-।अशफाक कायमखानी।

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